Partition Rules:  अक्सर परिवारों में जमीन या संपत्ति को लेकर विवाद हो जाता है. घरवालों की शुरुआत में कोशिश यही रहती है कि मामला आपसी बातचीत से सुलझ जाए. लेकिन जब समझौता नहीं बन पाता. तो कोर्ट का सहारा लेना पड़ता है. कोर्ट सभी लोगों की बात सुनकर और दस्तावेजों की जांच करके फैसला करता है कि किस सदस्य का कितना हिस्सा बनता है. 

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यह पूरी प्रोसेस कानूनी होती है. इसलिए इसका पालन सभी को करना पड़ता है. हालांकि इसमें वक्त और कुछ खर्चा जरूर लगता है, लेकिन जब लोगों के घरों झगड़ों को घर के भीतर झगड़ा सुलझाना मुश्किल हो जाता है. तब कोर्ट का रास्ता ही सबसे सुरक्षित नजर आता है. चलिए आपको बताते हैं कैसे कोर्ट के जरिए किया जा सकता है बंटवारा.

कोर्ट से बंटवारा कराने का तरीका

अगर कोई संपत्ति कई लोगों के नाम पर है और उनमें विवाद है. तो कोई भी सदस्य सिविल कोर्ट में पार्टिशन सूट दाखिल कर सकता है. केस फाइल करते वक्त जमीन या मकान के डाॅक्यूमेंट, मालिकों के नाम, हिस्से की जानकारी और बाकी जरूरी डाॅक्यूमेंट्स जमा करने होते हैं. इसके बाद कोर्ट सभी पक्षों को नोटिस भेजता है.

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जिससे हर किसी को अपनी बात रखने का मौका मिले. जब सभी पक्ष अपने सबूत और बयान पेश कर देते हैं. तो कोर्ट सभी तथ्यों की जांच के बाद फैसला सुनाता है. अगर जमीन को बराबर बांटना संभव न हो. तो कोर्ट आदेश देता है कि उसे बेचकर रकम सभी में बराबर बांट दी जाए. इससे किसी का नुकसान नहीं होता. 

बंटवारे के बाद क्या करना जरूरी है

जब कोर्ट बंटवारे का फैसला दे देता है. तो उसकी कॉपी तहसील में जमा करना जरूरी होता है. जिससे सरकारी रिकॉर्ड में नए मालिक का नाम दर्ज हो सके. इसे म्यूटेशन कहा जाता है. इसके बाद संपत्ति कानूनी तौर पर उस व्यक्ति के नाम पर दर्ज हो जाती है, जिसे कोर्ट ने अधिकार दिया है. 

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इस फैसले के बाद कोई भी दोबारा विवाद नहीं खड़ा कर सकता .क्योंकि कोर्ट का फैसला आखिरी माना जाता है. हालांकि कोर्ट का रास्ता लंबा होता है. इसलिए बेहतर यही है कि पहले आपसी बातचीत से मसला सुलझाने की कोशिश की जाए. लेकिन अगर समझौता न हो सके. तो कोर्ट के जरिए बंटवारा सबसे सही और सुरक्षित तरीका है.

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