Whiskey Factory Business Tips: भारत में अल्कोहल इंडस्ट्री हमेशा से एक बड़ा बिजनेस सेक्टर रही है और पिछले कुछ सालों में इसकी मांग और भी बढ़ी है. WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दशक से लेकर अब तक भारत में शराब की खपत में 38% बढ़ोतरी दर्ज की गई है. ऐसे माहौल में कई लोग अपनी खुद की व्हिस्की यूनिट शुरू करने का प्लान बनाते हैं. लेकिन असली चुनौती यह समझना होता है कि लाइसेंसिंग से लेकर प्रोडक्शन तक पूरा सेटअप कैसे खड़ा होता है. 

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यह काम जितना फायदेमंद लगता है. उतना ही नियम-कानून, टेक्निकल प्रोसेस और शुरुआती निवेश भी मांगता है. लेकिन अगर कोई इसे सही प्लानिंग गाइडेंस और मजबूत फाइनेंशियल तैयारी के साथ करता है. तो व्हिस्की फैक्ट्री एक बड़ा प्रॉफिटेबल बिजनेस बन सकती है. चलिए आपको इसका पूरा प्रोसेस आसान भाषा में समझते हैं.

कैसे होता है फैक्ट्री का शुरुआती सेटअप?

व्हिस्की की फैक्ट्री शुरू करने के लिए सबसे पहले आपको कानूनी मंजूरियां हासिल करनी होती है. इसके लिए राज्य सरकार के एक्साइज विभाग से  मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस लेना जरूरी है. इसके लिए हर राज्य की अलग फीस, अलग डॉक्यूमेंट और अलग शर्तें होती हैं. इसके बाद  पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की परमिशन लेनी पड़ती है. क्योंकि फैक्ट्री में पानी, केमिकल्स और वेस्ट मैनेजमेंट का बड़ा रोल होता है. 

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ज़मीन इंडस्ट्रियल एरिया में होनी चाहिए और बिजली-पानी की हाई कैपेसिटी कनेक्टिविटी जरूरी रहती है. शुरुआती सेटअप में मॉल्ट स्टोरेज, फर्मेंटेशन टैंक्स, डिस्टिलेशन यूनिट, एजिंग बैरल्स और बॉटलिंग लाइन जैसे बड़े उपकरण लगाए जाते हैं. यह सब मिलकर एक करोड़ से लेकर कई करोड़ रुपये तक का निवेश मांग सकता है.

प्रोडक्शन, स्टाफ और मार्केट तक पहुंचने का तरीका

फैक्ट्री मिलने के बाद असली काम शुरू होता है. यानी व्हिस्की बनाने की प्रोसेस. इसमें पहले अनाज से मॉल्ट तैयार होता है, फिर उसे फर्मेंटेशन टैंक में भेजा जाता है. जहां यीस्ट उसे अल्कोहल में बदलता है. इसके बाद डिस्टिलेशन यूनिट में कच्ची शराब को refine किया जाता है और फिर उसे लकड़ी के बैरल में कई महीनों या सालों तक एजिंग के लिए रखा जाता है. 

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यह एजिंग ही व्हिस्की का फ्लेवर, रंग और क्वालिटी तय करती है. एक प्रोफेशनल टीम जरूरी होती है जिसमें मास्टर डिस्टिलर, क्वालिटी कंट्रोल मैनेजर, मशीन ऑपरेटर और मार्केटिंग टीम शामिल होती है. तैयार प्रोडक्ट को ब्रांडिंग और पैकेजिंग के बाद रिटेल मार्केट, बार, क्लब और डिस्ट्रीब्यूशन चैनलों तक भेजा जाता है. अगर स्ट्रॉन्ग सप्लाई चेन और सही ब्रांड आइडेंटिटी तैयार हो जाए तो यह बिजनेस बहुत तेजी से ग्रो करता है.

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