Gold Making Charges: भारत में सोने को लेकर लोगों में बड़ी दिलचस्पी रहती है. सोने को भारत में एक स्टेटस सिंबल की तरह माना जाता है. यानी जिसके पास जितना सोना है वह उतना ही बड़ा व्यक्ति है. त्योहारों में भी लोग खूब सोने की ज्वैलरी पहनना पसंद करते हैं. शादी ब्याह में तो महिलाएं खूब सोना पहननती हैं. भारत में शादी होती है तो दुल्हन भी सोने से लदी होती है. लेकिन जब आप सोना खरीदने जाते हैं. या फिर बेचने जाते हैं. तो क्या आपको इस बारे में पता होता है कि सोना खरीदते और बेचते समय एक मेकिंग चार्ज लगता है. नहीं पता तो फिर आपके साथ हो सकती है ठगी. आइए जानते हैं पूरी खबर. 


क्या है सोने का मेकिंग चार्ज?


ज्वैलरी बनाने से पहले सोने को पिघलाया जाता है. फिर इससे अलग-अलग तरह की ज्वैलरी बनाई जाती है. अंगूठी,नेकलेस या फिर और किसी शेप की ज्वैलरी बनाई जाती है. यानी सोने से जो भी ज्वैलरी बनाई जाती है उसमें जो खर्च आता है. उसे मेकिंग चार्ज कहते हैं.


यानी किसी ज्वैलर ने सोने से कोई ज्वैलरी बनाई तो उस बनाने वाले की कारीगर की फीस होती है. बता दें कि यह फीस सिर्फ ज्वैलरी के लिए लगती है. आप सोना या फिर सोने के सिक्के खरीदते हैं तो उस पर ये चार्ज लगता है. 


कितना देना होता है मेकिंग चार्ज?


जब भी कोई ज्वैलरी खरीदता है. उसकी खरीदी पर मेकिंग चार्ज देना पड़ता है. कौनसी ज्वैलरी बनाई गई और उसकी डिजाइन पर मेकिंग चार्ज तय होता है. अगर किसी ज्वैलरी में ज्यादा बारीकी से काम किया गया है. तो उसका मेकिंग चार्ज ज्यादा देना होता है. सामान्य तौर पर किसी भी ज्वैलरी का मेकिंग चार्ज उसकी कीमत का 5 से 10 फीसदी तक होता है. 


जैसे कि आपने अगर 1 लाख रुपये की कोई गोल्ड ज्वैलरी ली है. इसपर अगर 10 फीसदी मेकिंग चार्ज लगता है तो फिर आपको 1 लाख की बजाए 1 लाख 10 हजार देने पड़ेंगे. लेकिन अगर आप दोबारा इस ज्वैलरी को बेचने जाएंगे तो फिर आपके मेकिंग चार्ज के रुपये काट लिए जाएंगे. 


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