Mysterious Temple : भारत में नामी मंदिरों की संख्या हजारों में हैं. इनमें से कई मंदिर कई तरह के रहस्यों से भरे हैं जिन्हें जानने की जिज्ञासा लोगों में रहती है और इसी जिज्ञासा को लेकर वह उन मंदिरों में जाते भी हैं. आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही एक मंदिर के बारे में जो काफी रहस्यों से भरा है. यह मंदिर चिता पर बना है और दुनिया में अपने तरह का इकलौता मंदिर है. आइए इस मंदिर के बारे में जानते हैं विस्तार से.


कहां है यह मंदिर


श्यामा माई के नाम से मशहूर यह मंदिर बिहार के दरभंगा जिले में स्थित है. यह मंदिर दरभंगा महराज के कैंपस में ही है. वैसे तो इस मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन नवरात्र में यह और भव्य हो जाता है. इस मंदिर के अंदर मां काली की एक भव्य मूर्ति स्थापित है.


क्या है मान्यता


इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है. लोग बताते हैं कि यहां मां काली से अगर नम आंखों से कुछ भी मांगा जाए तो वह उसे जरूर पूरा करती हैं. इस मंदिर में स्थापित मां काली की मूर्ति अलौकि है. मां के दर्शन मात्र से मन को काफी सुकून मिलता है. लोग बताते हैं कि अगर इस मंदिर की आरती में शामिल हो जाएं तो हर इच्छा पूरी होती है.


ये है सबसे हैरान करने वाली बात


यह मंदिर श्मशान भूमि में महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर बना हुआ है और यह असामान्य घटना है. कहा जाता है कि दुनियाभर में चिता पर बनने वाला यह इकलौता मंदिर है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि कोई भी शुभ कार्य श्मशान घाट में नहीं होते, लेकिन इस मंदिर की ऐसी महिमा है कि आपको यहां मुंडन, उपनयन व अन्य शुभ कार्य होते दिख जाएंगे. इस मंदिर में मां काली की पूजा वैदिक और तांत्रिक दोनों ही विधि से होती है. हिंदू धर्म में ये भी मान्यता है कि शादी के 1 साल बाद तक नव दंपति को श्मशान घाट में नहीं जाना चाहिए, लेकिन श्मशान घाट यानी चिता पर बने इस मंदिर में नवविवाहित न सिर्फ आशीर्वाद लेने आते हैं, बल्कि यहां बड़ी संख्या में शादी भी होती है.


किसने बनवाया था यह मंदिर


इस मंदिर को 1933 में दरभंगा महाराजा कामेश्वर सिंह ने अपने पिता रामेश्वर सिंह की चिता पर बनवाया था. इस मंदिर में मां श्यामा की विशाल मूर्ति भगवन शिव की जांघ एवं वक्षस्थल पर अवस्थित है. मां काली की दाहिनी तरफ महाकाल और बाईं ओर भगवान गणेश और बटुक की मूर्ति है.


कौन हैं श्यामा माई


जानकार बताते हैं कि मां श्यामा माई माता सीता का रूप हैं. इस बात का जिक्र राजा रामेश्वर सिंह के सेवक रहे लालदास ने रामेश्वर चरित मिथिला रामायण में किया है. इसमें उन्होंने बताया है कि रावण के वध के बाद मां सीता ने राम से कहा कि सहस्त्रानंद का वध करने वाला ही असली वीर होगा. इसके बाद भगवान राम उसे मारने निकलते हैं. युद्ध के दौरान सहस्त्रानंद का एक तीर राम को लग जाता है. इस पर सीता जी क्रोधित होकर सहस्त्रानंद का वध कर देती हैं. क्रोध से मां सीता का रंग काला पड़ जाता है. सहस्त्रानंद को मारने के बाद भी वह शांत नहीं होती हैं. उन्हें रोकने के लिए भगवान शिव आते हैं. इस दौरान भगवान शिव के सीने पर मां सीता का पैर पड़ जाता है. इससे सीता जी लज्जित होती हैं और उनके मुंह से जीह्वा बाहर आ जाती है. माता के इसी रूप की पूजा यहां की जाती है.


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