Live-in Relationships: सोशल मीडिया पर लोग कहते हैं कि लिव-इन रिलेशनशिप एक सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव की शुरुआत है, जिसने भारतीय समाज में नए रिश्तों की दृष्टि को परिवर्तित किया है. लिव-इन रिलेशनशिप की शुरुआत विभिन्न कारणों से हुई. पश्चिमी सामाजिक प्रणालियों का प्रभाव भी इसमें शामिल था, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तिगत चयन को महत्वपूर्ण मानती हैं. यह आर्थिक स्वतंत्रता, बढ़ती शिक्षा और समाज में महिलाओं के स्थान के साथ जुड़ा हुआ दिखाई देता है. आइए जानते हैं कि लिव-इन रिलेशनशिप कैसे शुरू हुई और यह कैसे भारतीय समाज में एक अहम हिस्सा बन गई.


लिव इन को लेकर अलग-अलग है लोगों की सोच?


कहा जाता है कि लिव-इन रिलेशनशिप ने भारतीय समाज में एक नई सोच को साबित किया है. इसे पहले समाज में अस्वीकार किया जाता था, लेकिन समय के साथ-साथ यह विचार शहरी समाज में तेजी से फैल रहा है. लिव-इन रिलेशनशिप को अब भारतीय समाज में एक स्वाभाविक और स्वीकृत रिश्ता माना जाता है. यह विवादों का केंद्र बना हुआ है, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसे एक सामाजिक बदलाव के रूप में स्वीकार कर रहे हैं. इसने भारतीय समाज को नए मोड़ पर ले जाने में योगदान किया है.


भारत में कब हुई शुरुआत


हालांकि, भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मंजूरी 1978 में मिली थी. सुप्रीम कोर्ट ने बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ़ कंसॉलिडेशन केस में पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को वैध माना था. इसके बाद 2010 में महिलाओं की सुरक्षा पर चर्चा करते हुए लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि जो महिलाएं लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, वे घरेलू हिंसा कानून के तहत संरक्षित हैं. आसान भाषा में इसे दो वयस्कों का अपनी मर्ज़ी से बिना शादी किए एक छत के नीचे साथ रहना कहा जा सकता है. जहां तक रही बात लिव-इन रिलेशनशिप की शुरुआत की तो इसके बारे में स्पष्ट डेटा नहीं मिलता है कि इसकी शुरुआत सबसे पहले कब और कहां हुई थी.


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