Eid Mubarak 2022: ईद एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें लोग अपने सभी गिले-शिकवे भूलाकर एक-दूसरे के साथ मिलकर जश्न मनाते हैं. इस मौके पर लोग अपने घरों में तरह-तरह के पकवानों का लुफ्त उठाते हैं. साथ ही दोस्त और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं. लेकिन हमारे बीच कई ऐसे लोग हैं, जो इस मौके पर किन्हीं कारणों से अपने परिवार, मित्र या फिर पार्टनर के साथ ईद का जश्न नहीं मना पाते हैं. अगर आप भी ऐसे लोगों में हैं, तो परेशान न हों. इस ईद के मौके पर आप अपने शेरों-शायरी से अपने करीबी लोगों को नजदीक ला सकते हैं. इस खुशी के मौके पर आपके सामने पेश हैं, कुछ चुनिंदा और खूबसूरत शायरी.
ईद के लिए शायरी
ईद का चाँद तुम ने देख लिया चाँद की ईद हो गई होगी - इदरीस आज़ाद
उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना ये भी कहना कि मिरी ईद मुबारक कर दे - दिलावर अली आज़र
बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया - जोश मलीहाबादी
माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी- जलील निज़ामी
इश्क़-ए-मिज़्गाँ में हज़ारों ने गले कटवाए ईद-ए-क़ुर्बां में जो वो ले के छुरी बैठ गया - शाद लखनवी
ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है - क़मर बदायुनी
ईद आई तुम न आए क्या मज़ा है ईद काईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का - अज्ञात
ईद का दिन है सो कमरे में पड़ा हूँ 'असलम' अपने दरवाज़े को बाहर से मुक़फ़्फ़ल कर के - असलम कोलसरी
ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा कि तिरे यार को हम तुझ से मिला देते हैं - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ईद तू आ के मिरे जी को जलावे अफ़्सोस जिस के आने की ख़ुशी हो वो न आवे अफ़्सोस - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ईद का चाँद जो देखा तो तमन्ना लिपटीउन से तक़रीब-ए-मुलाक़ात का रिश्ता निकला - रहमत क़रनी
ईद में ईद हुई ऐश का सामाँ देखा देख कर चाँद जो मुँह आप का ऐ जाँ देखा - शाद अज़ीमाबादी
जहाँ न अपने अज़ीज़ों की दीद होती है ज़मीन-ए-हिज्र पे भी कोई ईद होती है - ऐन ताबिश
वहाँ ईद क्या वहाँ दीद क्या जहाँ चाँद रात न आई हो - शारिक़ कैफ़ी
इन खूबसूरत शायरी से आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को अपने करीब महसूस करा सकते हैं. बता दें कि इस साल 3 मई को पूरे देश में ईद बनाया जा रहा है. इस ईद उल-फ़ित्र भी कहा जाता है. यह उत्सव यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी. इस जीत के मौके पर हर किसी को मीठा खिलाया गया था. इसी दिन से मीठी ईद या ईद-उल-फितर की शुरुआत हुई थी.
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