Google AI Chatbot : गूगल एक आर्टिफिशियल चैटबॉट तकनीक पर काम कर रहा है. इस पर काम करने के लिए कंपनी ने डीप माइंड प्रोजेक्ट पर काम किया. इस प्रोजेक्ट के हेड ब्लेक लेमोइन हैं. ब्लेक लेमोइन ने दावा किया है कि यह AI चैटबॉट इंसानी दिमाग की तरह काम करता है. आगे उन्होंने कहा इसे डेवलप पूरी तैयारी हो चुकी है.


हालांकि इसके बाद ब्लेक लेमोइन को पैड लीव पर भेज दिया गया. ब्लेक पर आरोप लगा कि उन्होंने ने थर्ड पार्टी के साथ कंपनी के प्रोजेक्ट के बारे में कॉन्फिडेंशियल इन्फॉर्मेशन को शेयर किया है. ब्लेक ने मीडियम पोस्ट में कहा कि उन्हें एआई एथिक्स पर काम करने के लिए जल्द नौकरी से निकाला जा सकता है. इसके बाद ब्लेक ने गूगल के सर्वर के बारे में अजीब और चौंकाने वाले दावे पेश किए. ब्लेक ने सार्वजनिक तौर पर यह दावा किया कि गूगल के सर्वर पर उन्होंने 'sentient' AI को देखा. ब्लेक ने यह भी दावा किया कि यह AI चैटबॉट एक इंसान की तरह सोच भी सकता है. बातचीत करने वाला यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानी आवाज में लगातार बात कर रहा था. यानी आप इससे लगातार टॉपिक बदलते हुए बात कर सकते हैं जैसे किसी इंसान से करते हैं.


यह मशीनी दिमाग चैटबॉट बिल्कुल इंसान की तरह फीडबैक दिखा रहा है, इसका नाम LaMDA है. ब्लेक लेमोइन ने द वाशिंगटन पोस्ट को बताया कि उन्होंने इंटरफेस LaMDA (लैंग्वेज मॉडल फॉर डायलाग एप्लिकेशन्स) के साथ चैट करना शुरू किया तो उनको बिलकुल ऐसा लगा कि जैसे वे किसी इंसान के साथ बातें कर रहे हैं. जानकारी के अनुसार गूगल ने पिछले साल लामडा (LaMDA) को कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी में अपनी एक खास सफलता बताई थी. गूगल ने कहा है कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सर्च और गूगल असिस्टेंट जैसे टूल में किया जा सकता है. कंपनी ने कहा था कि इस पर रिसर्च और टेस्टिंग चल रही है.


ब्लेक लेमोइन की पेड लीव पर गूगल की सफाई


गूगल के स्पोकपर्सन ब्रियान गैब्रियाल ने कहा जब कंपनी ने लेमोइन के इस दावे का रिव्यू किया, तो उन्होंने जो सबूत दिए हैं काफी नहीं है. गैब्रियाल से जब लेमोइन की छुट्टी के बारे में पूंछा तो उन्होंने कहा हां उन्हें एडमिनिस्ट्रेटिव लीव दी गई है.


गेब्रियल ने आगे कहा, "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्पेस में कंपनियां सेंटीमेंट AI की लंबी अवधि की एक्सपेक्टेशन पर विचार कर रही हैं, लेकिन ऐसा करने का कोई मतलब नहीं है कि एंथ्रोपोमोर्फिंग कंवर्शेसनल डिवाइस संवेदनशील नहीं हैं. उन्होंने समझाया कि "LaMDA जैसी सिस्टम हुमन कन्वर्शेसन के लाखों सेंटेंस में पाए जाने वाले एक्सचेंज के टाइप्स की नकल करके काम करती हैं, जिससे उन्हें काल्पनिक विषयों पर भी बात करने की अनुमति मिलती है."


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