वाराणसी के चौबेपुर स्थित छितौना गांव में जमीनी विवाद कों लेकर दो पक्षों के बीच हुआ मारपीट का मामला जनपद से लेकर लखनऊ तक सुर्खियों में है. मारपीट के बाद दोनों पक्षों की तरफ से लोग घायल हुए थे और दोनों पक्षों की तरफ से एक दूसरे पर मुकदमा पंजीकृत कराया गया था. लेकिन इस मामले के ठीक बाद दो ऐसे घटनाक्रम रहे जिसने छितौना कांड की पूरी दिशा ही बदल दी. और अब यह घटना राजभर समाज बनाम राजपूत समाज के अलावा दो कैबिनेट मंत्री के बीच सियासी वर्चस्व की वजह भी बनता हुआ देखा जा रहा है.
वाराणसी के चौबेपुर स्थित छितौना में जमीनी विवाद को लेकर हुए मारपीट में दोनों पक्ष की तरफ से लोग घायल हुए थे. घटना के बाद सबसे पहले भाजपा नेता और यूपी कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर एक पक्ष से मिलने पहुंचते हैं, इसके बाद दूसरा पक्ष इस बात को लेकर नाराज हो जाता है कि 32 सालों तक जिस कार्यकर्ता ने बीजेपी के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया, उसकों जाति देखकर अनदेखा किया गया है जिसके बाद उसके समर्थन में करणी सेना सहित अन्य क्षत्रिय संगठन खुलकर सामने आ जाते हैं. अब धीरे-धीरे यह मामला राजभर समाज और राजपूत समाज का रूप ले लेता है. लेकिन असली मोड़ तो इस घटना में सुभासपा की एंट्री के बाद आता है.
अरविन्द राजभर ने डीजीपी से की मुलाक़ात
सुभासपा नेता व यूपी कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर न सिर्फ इस मामले में यूपी डीजीपी से मुलाकात करते हैं. बल्कि अगले ही दिन सैकड़ों की संख्या में अपने समर्थकों के साथ वाराणसी के छितौना के लिए रवाना हो जाते हैं. इस दौरान अनेक ऐसे वीडियो भी सामने आते हैं जो दूसरे पक्ष की नाराजगी को बढ़ाने के लिए काफी थी. हालांकि इस मामले को संभालने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ महेंद्र नाथ पांडे दोनों पक्षों से मुलाकात करने के लिए पहुंचते हैं लेकिन क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि शायद देर हो चुकी थी.
दो मंत्रियों के समर्थक नहीं दिखे साथ
राजभर वोटर के जबरदस्त प्रभाव वाले शिवपुर विधानसभा क्षेत्र की इस घटना के बाद कुछ ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या यहां दो कैबिनेट मंत्री का वर्चस्व आमने-सामने हो चुका है. ऐसा इसलिए क्योंकि शिवपुर विधानसभा से ही विधायक बनकर भाजपा नेता अनिल राजभर यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और यहां से ही उन्होंने 2022 में सुभासपा नेता औऱ कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को हराया था. वर्चस्व की चर्चा इसलिए भी औऱ तेज हो गई क्योंकि इस घटना के बाद कहीं भी मंत्री अनिल राजभर और सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर के समर्थक साथ नहीं दिखे. वैसे क्षेत्रीय जनता का साफ कहना है कि 2027 विधानसभा चुनाव में इस घटना के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता.