Uttarakhand News: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में मजिस्ट्रेट पद से बर्खास्त किए जाने के वर्षों बाद 2019 में पहाड़ी राज्य की न्यायिक सेवा परीक्षा में शीर्ष पर रहे उम्मीदवार की नियुक्ति को स्वीकृति देने से इनकार कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने सोमवार को उत्तराखंड में न्यायिक पद पर नियुक्ति की मांग करने वाली राहुल सिंह की याचिका खारिज कर दी.


अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक रिपोर्ट के आधार पर उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी है. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि उन्हें 2014 में नशे की हालत में अपने सहकर्मियों के साथ झगड़ा करने के कारण उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.


जानकारी छुपाने के कारण याचिका खारिज


उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा कि उन्होंने औरैया जिले में न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में अपने पहले कार्यकाल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई थी, याचिका खारिज करने का एक आधार यह भी है. उत्तराखंड उच्च न्यायिक सेवा के लिए 2019 में आवेदन करते समय राहुल सिंह ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि 2014 में उन्हें उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.


अनुशासनात्मक कार्यवाही के कारण हुए थे बर्खास्त


राहुल सिंह उत्तराखंड उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा में टॉप पर रहे. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से उनके बारे में जानकारी मांगी है. अनुशासनात्मक कार्यवाही के कारण राहुल सिंह को उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा से बर्खास्त किए जाने की जानकारी मिलने के बाद फरवरी 2020 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी थी. राहुल सिंह ने इसे चुनौती देने के लिए समीक्षा याचिका के साथ मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया था.


साथियों के साथ की थी मारपीट


हालांकि, हाईकोर्ट ने राहुल सिंह की विशेष अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि न्यायिक अधिकारी होने के बावजूद उन्होंने क्लब में अपने साथियों के साथ दुर्व्यवहार किया था. इसमें कहा गया है कि उन्होंने उत्तराखंड में न्यायिक पदों के लिए आवेदन करते समय भी यह बात छिपाई. अदालत ने समीक्षा याचिका खारिज करते हुए कहा कि उच्च न्यायपालिका सेवा के लिए कम से कम सात साल तक कानून का पालन करना आवश्यक है. यह मानदंड राहुल सिंह ने पूरा नहीं किया.


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