Uttarakhand News: उत्तराखण्ड के इतिहास और सांस्कृतिक परिवेश से अनजान शासकों और प्रशासकों के कारण भारत की बेमिसाल पटवारी पुलिस जल्दी ही इतिहास के पन्नों में गुम हो जायेगी. ब्रिटिश काल में इस क्षेत्र की विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों और नगण्य अपराधों के कारण ही शेष भारत से इतर यहां अलग तरह का प्रशासन लागू हुआ था. जिसमें पटवारी पुलिस व्यवस्था भी शामिल थी. अब नैनीताल हाईकोर्ट की फटकार के बाद उत्तराखंड सरकार ने लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था को देश के अन्य भागों की तरह सिविल पुलिस को सौंपने की तैयारी शुरू कर दी है.


चूंकि यह हस्तांतरण इतना आसान नहीं है और पहाड़ी जनजीवन में बिना वर्दी और बिना हथियार वाली पटवारी पुलिस व्यवस्था रची बसी है और खाकी पुलिस के प्रति लोगों की अरुचि को देखते हुए हाईकोर्ट के आदेश का पालन न हो सका. दरअसल, धामी सरकार ने प्रदेश के राजस्व क्षेत्रों में सिविल पुलिस की तैनाती की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. इस कड़ी में बुधवार को धामी कैबिनेट में राजस्व क्षेत्रों में छह पुलिस थाने और 20 चौकी खोलने का प्रस्ताव पास हो गया है. ये थाना-चौकी राज्य के नौ जिलों में उन राजस्व क्षेत्र में खोले जाएंगे, जहां पिछले कुछ वर्षों में आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं.


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पटवारी पुलिस के साथ जुड़ा है पहाड़ का अतीत
पटवारी पुलिस महज एक कानून व्यवस्था की मशीन नहीं बल्कि पहाड़ी समाज का एक अंग भी है. इस व्यवस्था की पहचान उत्तराखंड से है तो उत्तराखंड की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान भी पटवारी पुलिस में निहित है. उत्तराखंड की विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों के कारण ही 1861 का अंग्रेजों का पुलिस एक्ट यहां लागू नहीं हुआ था. विशिष्ट सांस्कृतिक परिवेश के कारण ही उत्तराखण्ड का प्रशासन जनजातीय असम की तरह अनुसूचित जिला अधिनियम 1874 के तहत चला था और उसी के अनुसार पटवारियों को पुलिस अधिकार मिले थे. इसलिये शासकों को उत्तराखंड को समझने के लिये पटवारी पुलिस को और उसके अतीत को समझना जरूरी है जिसे समझा नहीं जा रहा है.


कैसे काम करती है राजस्व पुलिस
उत्तराखंड की बेमिसाल पटवारी पुलिस व्यवस्था का श्रेय जी.डब्ल्यू. ट्रेल को ही दिया जा सकता है. ट्रेल ने पटवारियों के 16 पद सृजित कर इन्हें पुलिस, राजस्व कलेक्शन, भू अभिलेख का काम दिया था. कंपनी सरकार के शासनकाल में पहाड़ी क्षेत्र के अल्मोड़ा में 1837 और रानीखेत में 1843 में थाना खोला था.राज्य में राजस्व पुलिस व्यवस्था 1874 से लागू है. वर्तमान में राज्य के लगभग 61 प्रतिशत भाग पर यह व्यवस्था लागू है. इस व्यवस्था में पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, परगनाधिकारी, जिलाधिकारी व कमीश्नर आदि को राजस्व के साथ ही पुलिस का भी काम करना पड़ता है.


अपराधियों को पकड़ने की भी थी जिम्मेदारी
यहां अपराधों की जांच करना, मुकदमा दर्ज करना और अपराधियों को पकड़ना राजस्व पुलिस की ही जिम्मेदारी है. पिछले कुछ समय से राजस्व क्षेत्रों को सिविल पुलिस के हवाले करने की मांग जोरों से उठी है. इस मांग के पीछे राजस्व पुलिस के पास अपराध रोकने की पुखा व्यवस्था न होने और तकनीकी जानकारी के अभाव में अपराधों की जांच प्रभावी ढंग से न कर सकने का तर्क दिया जाता रहा है. अंग्रेजी शासनकाल में कुमाऊं में 19 परगनें तथा 125 पट्टियां (पटवारी क्षेत्र) थे जबकि गढ़वाल में 11 परगनें तथा 86 पट्टियां ( पटवारी क्षेत्र) थें .


अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद उठ रहे थे सवाल
अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद एक बार फिर राजस्व पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई थी. जिसके बाद प्रदेश के मुखिया ने बिना देरी करे राजस्व पुलिस को चरणबद्ध तरीके रेगुलर पुलिस में मिलने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. सरकार के इस निर्णय से इन थानों और चौकियों के अधीन आने वाले राजस्व क्षेत्र में ग्रामीणों को अब समय पर न्याय मिलने की आस बंधी है. उम्मीद है कि अब इन क्षेत्रों में हत्या जैसे गंभीर अपराध फाइलों में दबे नहीं रहेंगे. गंभीर अपराध के मामले पुलिस के पास जाएंगे तो उनका शीघ्रता के साथ निदान हो सकेगा.


केवल उत्तराखंड में है राजस्व पुलिस
वर्तमान में उत्तराखंड देश का इकलौता राज्य हैं, जहां यह व्यवस्था जीवित है. राज्य के 7500 गांव पटवारी पुलिस के दायरे में हैं. पहले प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सिविल पुलिस की आवश्यकता थी भी नहीं. क्योंकि, यहां कभी बड़े स्तर के आपराधिक मामले सामने नहीं आते थे. हाल ही में प्रकाश में आए वनन्तरा रिसार्ट प्रकरण के बाद इस मांग ने जोर पकड़ा तो सरकार को भी राजस्व क्षेत्रों में सिविल पुलिस की तैनाती की आवश्यकता महसूस हुई.


इसको लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में निर्णय लिया गया था कि राजस्व क्षेत्रों को चरणबद्ध तरीके से सिविल पुलिस के दायरे में लिया जाएगा. इसी कड़ी में कैबिनेट में राजस्व क्षेत्रों में छह पुलिस थाने और 20 चौकी खोलने को हरी झंडी दी गई.