UP News: उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि 1981-89 के दौरान राजनीतिक रैलियों में समर्थकों को ले जाने के वास्ते उसके वाहनों को किराये पर लेने के लिए कांग्रेस की प्रदेश इकाई पर 2.68 करोड़ रुपये के उसके दावे की गवाही देने के लिए सेवा में कोई गवाह नहीं बचा है.


यूपीएसआरटीसी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ से कहा, 'यह बहुत पुराना मामला है और हमारे पास दावे की गवाही देने के लिए सेवाओं में कोई गवाह नहीं बचा है.'


पीठ ने कहा कि वह इस मामले में मध्यस्थ नियुक्त करने के बारे में सोच रही है क्योंकि 2.68 करोड़ रुपये की राशि को लेकर उप्र कांग्रेस कमेटी (यूपीसीसी) ने आपत्ति जताई है.


पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता से कहा, 'कुछ दस्तावेज होंगे, अन्यथा निर्णय कैसे होगा. वे कुछ अधिक राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं या वे कुछ कम भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं. आप निर्देश मांगें और हमें बताएं.'


प्रसाद ने अदालत से मामले को मध्यस्थता के लिए भेजने का आग्रह किया.


इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली कांग्रेस की उप्र इकाई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि राज्य सरकार को 19 जनवरी को नोटिस जारी किया गया था लेकिन कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है.


मध्यस्थ की नियुक्ति पर निर्देश लेने को कहा
पीठ ने उप्र कांग्रेस के खिलाफ वसूली कार्यवाही पर रोक के आदेश को बढ़ाने का निर्देश देते हुए मामले को चार सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया और प्रसाद से मध्यस्थ की नियुक्ति पर निर्देश लेने को कहा.


शीर्ष अदालत ने 19 जनवरी को उप्र कांग्रेस को 1981 और 1989 के बीच यूपीएसआरटीसी से बस और टैक्सी ​​किराए पर लेने के लिए बकाया के रूप में एक करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया था.


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उस समय राज्य में कांग्रेस सत्ता में थी और इसने तत्कालीन प्रधानमंत्रियों-इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी की रैलियों और दौरों के समय अपने समर्थकों को ले जाने के लिए यूपीएसआरटीसी की बस किराये पर ली थीं.


इसने यूपीसीसी की याचिका पर उप्र सरकार और यूपीएसआरटीसी को नोटिस जारी किया था तथा पार्टी को चार सप्ताह के भीतर एक करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया था.


यूपीसीसी ने उच्च न्यायालय के निष्कर्षों की आलोचना की है और कहा है कि कुल 2.68 करोड़ रुपये की राशि विवादित है.