पूर्वांचल में कड़ाके की ठंड और शीतलहर का प्रभाव साफ दिख रहा है. न्यूनतम पारा 7 डिग्री तक पहुंच चुका है. जगह-जगह अलाव जलाने की व्यवस्था की जा रही है. वहीं धर्म नगरी काशी में आमजन के साथ-साथ भगवान भी उनी वस्त्र पहने नजर आ रहे हैं.

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गंगा किनारे बसे वाराणसी में यह तस्वीर अलग-अलग मंदिरों में देखी जा रही है. इसी बीच वाराणसी के श्री बड़ा गणेश मंदिर में जब एबीपी लाइव की टीम पहुंची तो वहां भी भगवान के गर्भगृह में कम्बल और उनके सवारी के रूप में मूषक को ऊनी वस्त्र पहनाया गया था.

परंपरा की शुरुआत बैकुंठ चतुर्दशी से ही

वाराणसी के प्राचीन धर्मस्थल में से एक श्री बड़ा गणेश मंदिर में मौजूद पं. राजेश तिवारी ने बताया कि इस प्राचीन मंदिर में सबसे पहले इसकी शुरुआत हो जाती है. हालांकि यह परंपरा बैकुंठ चतुर्दशी से ही शुरू होकर बसंत पंचमी तक निर्धारित है. अलग-अलग मंदिरों में अपनी अलग मान्यताएं हैं लेकिन यहां पर सबसे पहले भगवान को ऊनी वस्त्र पहनाया जाता है. पहले के दौर में रुई की मदद से रजाई बनाई जाती थी, जो शुद्धता का प्रतीक है. इसके अलावा उनकी सवारी के रूप में पहचाने जाने वाले मूषक को भी साल पहनाया जाता है.

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अलग-अलग मंदिरों में भी देखी गई तस्वीर

लोहटिया स्थित प्राचीन श्री बड़ा गणेश मंदिर के अलावा उस गली में स्थापित अन्य मंदिरों में भी भगवान को ऊनी वस्त्र पहनाया गया था. जिसमें श्री राधा कृष्ण के अलावा अन्य मंदिर भी शामिल है. वैसे लोगों का मानना है कि हर साल इसे एक परंपरा की तरह निर्वहन किया जाता है. मान्यता यह है कि आमजन की तरह भगवान को भी ठंड ना लगे इसलिए उन्हें ऊनी वस्त्र पहनाए जाते हैं.

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