निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी NDA से नाता तोड़ने की धमकी दी. इसके बाद उन्होंने पहले उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और फिर बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. निषाद, डिप्टी सीएम से अकेले मिले. जबकि सीएम से मिलते वक्त उनके साथ, संतकबीरनगर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से पूर्व सांसद और उनके बेटे प्रवीण निषाद भी साथ थे.

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संजय निषाद की नाराजगी और धमकी के पीछे 7 सवाल सामने आए. जिनके जवाब जानकर आप को एक ओर जहां सियासी घटनाक्रम की गंभीरता का अंदाजा लगेगा तो वहीं निषाद पार्टी के चीफ की नाराजगी के पीछे की असली वजह के बारे में भी जानकारी मिलेगी. 

आइए जानते हैं उन सवालों और उके जवाब के बारे में जो संजय निषाद, NDA, BJP और निषाद पार्टी के इर्द गिर्द घूम रहे हैं-

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गठबंधन तोड़ने की धमकी क्यों?

राज्य सरकार में मत्सय विभाग के मुखिया संजय निषाद का कहना है कि अगर भारतीय जनता पार्टी को ऐसा लगता है कि उसे निषाद पार्टी के साथ कोई लाभ नहीं है तो वह अलायंस तोड़ सकते हैं. निषाद का यह बयान, इस ओर संकेत करता है कि वह गठबंधन में क्षेत्रीय दलों और उसके नेताओं के सम्मान को लेकर परेशान और नाराज हैं.

नाराजगी की मुख्य वजह क्या?

संजय निषाद की नाराजगी की मुख्य वजह के संदर्भ में दावा किया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेताओं द्वारा निषाद पार्टी और उसके नेताओं पर सियासी जुबानी हमले किए जा रहे थे. जिस पर बीजेपी सतर्क नहीं है. संजय निषाद का दावा है कि बीजेपी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. उनका कहना है कि गठबंधन में सहयोगियों का भी सम्मान आवश्यक है.

क्या सच में तोड़ देंगे अलायंस?

संजय निषाद के इस बयान के बाद सियासी हलचल मच गई. ऐसे में यह सवाल सियासी गलियारों में घूमने लगे कि क्या वास्तव में संजय निषाद अलायंस तोड़ देंगे? इसका भी जवाब खुद संजय निषाद ने दिया. उन्होंने कहा कि वह गठबंधन तोड़ने के मकसद से बयान नहीं दे रहे हैं. उनकी प्राथमिकता अपनी पार्टी और नेताओं का  सम्मान है. सीएम योगी और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक से मुलाकात के बाद निषाद ने स्पष्ट किया था कि वह बीजेपी के साथ हैं.

निषाद पार्टी की आगे की रणनीति क्या?

संजय निषाद के बयान के बाद यह सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर निषाद पार्टी की भविष्य की रणनीति क्या है? वर्ष 2026 में प्रस्तावित पंचायत चुनाव में निषाद पार्टी ने अकेले लड़ने का ऐलान पहले ही कर दिया है. वहीं अब यूपी विधानमंडल में विधान परिषद् की 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी ली है. माना जा रहा है कि अगर संजय 11 सीटों की बात करेंगे तो बीजेपी उन्हें 1-2 सीटों पर मना सकते हैं. इसके अलावा निषाद पार्टी आरक्षण समेत अन्य मुद्दों को जनता के बीच ले जाने की तैयारी में है.

विपक्षी दलों ने इस विवाद पर क्या कहा?

संजय निषाद के इस बयान पर समाजवादी पार्टी ने प्रतिक्रिया दी. सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा 'उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनाव मे लगभग एक साल और मुश्किल से 4 या 5 महीने बाकी है. दिसंबर 2026 मे आचार संहिता लग जायेंगी. उससे पहले भाजपा के सहयोगी दल और राजभर निषाद के बोल बागी होते जा रहे है. जो-जो चुनाव करीब आएगा वो सभी दल जो पिछड़ी जातियों के नाम पर राजनीति करते हैं पिछड़ों के आरक्षण का हक खाने वालों से दूर हो जाएंगे. ये पीडीए की ताकत है.'

संजय निषाद कीक्या मांग?

संजय निषाद की प्रमुख मांग है कि निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए. साथ ही बीजेपी के नेता उनकी पार्टी और अन्य सहयोगी दलों पर बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोप न लगाएं.

किन लोकसभा सीटों और विधानसभा क्षेत्र में है निषाद पार्टी के असर का दावा?

निषाद पार्टी का दावा है कि राज्य की 80 में से 37 लोकसभा सीटों पर उसका असर है. उसका दावा है कि इन सीटों पर निषाद समाज और उसकी सहयोगी जातियों के 3.5 लाख से ज्यादा वोट हैं. विधानसभा की बात करें तो 2022 के चुनाव में निषाद पार्टी ने 16 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. इसमें से उसके 11 जीतकर आए. इसमें 6 निषाद पार्टी और 5 बीजेपी के सिबंल पर जीते. पार्टी का दावा है है कि 150 से अधिक सीटों पर उनका असर है.

घटनाक्रम से वाकिफ जानकारों का दावा है कि निषाद पार्टी और संजय निषाद की भविष्य की रणनीति यह है कि वह किसी भी स्थिति में दबाव बनाए रखे और विधानसभा आते-आते उसे ठीक ठाक सीटें मिले. निषाद पार्टी का मकसद है कि वह ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने सिंबल पर लड़े. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी, निषाद पार्टी की इस रणनीति पर क्या रुख अख्तियार करती है?