समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की. सीतापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम, पहली बार लखनऊ आए. यह मुलाकात सिर्फ आजम और अखिलेश की नहीं बल्कि इस बार अब्दुल्लाहह आजम भी साथ थे. आजम खान ने यूं तो इस मुलाकात के सियासी मकसद से इनकार किया लेकिन राजनीतिक हस्तियों के बीच कोई मुलाकात बिना मतलब के हो, यह लगभग असंभव है.
आजम खान ने अखिलेश से मुलाकात के बाद पत्रकारों से बात भी की. इस दौरान उन्होंने कहा कि- हमने एक-दूसरे से दिल खोलकर बात की. जब एक जैसी सोच वाले दो नेता मिलते हैं, तो अपने आप ही अच्छी बातचीत होती है. विपक्ष अक्सर ऐसी बातें करता है जो उनके राजनीतिक फायदे के लिए होती हैं. हर पार्टी की अपनी विचारधारा और मान्यताएं होती हैं. मैं बस इतना कह सकता हूं कि 2027 में बदलाव की लहर आएगी, और मैं उसका हिस्सा बनूंगा.
आजम की ये बात किसको याद नहीं?
गौरतलब है कि जब आजम खान से मिलने अखिलेश यादव रामपुर पहुंचे तो उस वक्त पूर्व काबीना मंत्री ने स्पष्ट कर दिया था कि यह मुलाकात सिर्फ उन्हीं दो लोगों के बीच होगी. उस वक्त यह बात चर्चा का विषय बनी थी कि आखिर ऐसा क्या था कि आजम खुद तो अखिलेश से मिले लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों को इससे दूर रखा?
अब सियासी हलकों में यह चर्चा हो रही है कि अखिलेश से रामपुर में मुलाकात के वक्त आजम ने पहले अपने गिले शिकवे दूर किए. ऐसे में अब आजम, अब्दुल्लाह को लेकर अखिलेश के पास पहुंचे.
माना जा रहा है कि खुद के गिले शिकवे दूर होने के बाद अब आजम, अपने बेटे की सियासी मुस्तक्बिल के लिए परेशान हैं. ऐसे में वह अखिलेश से मिले, वो भी बेटे के साथ.
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यहां यह भी बताते चलें कि अब्दुल्लाह भी जब मां तंजीन फातिमा के साथ जेल से छूटकर घर लौटे तब भी वह अखिलेश से मिलने लखनऊ नहीं आए थे. न ही सपा चीफ का कोई नुमाइंदा, अब्दुल्लाह और उनकी मां से मिलने रामपुर गया था.
छलका था आजम का दर्द
इस बात का दर्द आजम खान को भी था. तभी जब अखिलेश अक्टूबर में रामपुर आजम से मिलने जा रहे थे, उससे पहले आजम ने कहा था कि ईद के दिन मेरी बीवी अकेली रो रही थी. कोई मिलने आया? किसी ने फोन किया?
अब जब आजम, सपा और अखिलेश के बीच रिश्तों की जमीन पर बर्फ पिघल चुकी है तब अब्दुल्लाह संग उनकी मुलाकात के स्पष्ट राजनीतिक निहितार्थ यही निकाले जा रहे हैं कि वह बेटे के लिए सपा में नए रास्ते खोलने को तैयार हैं.
हालांकि यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि अब्दुल्लाह और आजम, दोनों ही वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में तब तक मैदान में बतौर प्रत्याशी नहीं उतर सकते जब तक कि कोई अदालत उनकी सजा पर रोक न लगा दे या उसे रद्द न कर दे.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आजम, अब्दुल्लाह और अखिलेश की यह मुलाकात- आने वाले वक्त में क्या गुल खिलाएगी?