इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट की आड़ में झूठी शिकायत कर सरकारी मुआवजा प्राप्त करने के मामले में सख्त टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि यह कानून कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, न कि इसे निजी लाभ या दबाव बनाने के साधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए. अदालत ने स्पष्ट चेतावनी दी कि ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई की जाएगी.

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प्रयागराज की रामकली और उसकी दो बहुएँ कविता और सविता ने पहले कोर्ट में कहा था कि उन्होंने ही एफआईआर कराई है और उन पर अत्याचार हुआ है. इसके आधार पर इन्हें सरकार से मुआवजा भी दिया गया. लेकिन बाद में हाईकोर्ट में बयान बदलते हुए कहा गया कि उनके अंगूठे के निशान खाली कागज पर लिए गए थे और उन्होंने जानबूझकर शिकायत नहीं की थी. इसी विरोधाभास ने मामले का रुख बदल दिया.

सरकारी मुआवजा वापस करने का आदेश

कोर्ट ने कहा कि जब शिकायत ही वास्तविक नहीं थी तो मुआवजा लेना राज्य के साथ सीधी धोखाधड़ी है. इसलिए अदालत ने तीनों को दिए गए कुल 4 लाख 50 हजार रुपये तत्काल सरकार को लौटाने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि मुआवजा सरकारी धन है और इसका गलत उपयोग अपराध की श्रेणी में आता है.

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आरोपी पक्ष पर भी लगाया गया हर्जाना

अदालत ने इस मामले में अपील करने वाले आरोपितों की याचिका खारिज कर दी, इसके साथ ही उन पर 5 लाख रुपये का हर्जाना भी लगाया. यह राशि 20 दिनों में हाईकोर्ट वेलफेयर फंड में जमा करनी होगी. राशि न लौटाने पर रजिस्ट्रार जनरल को वसूली की कार्रवाई करने को कहा गया है.

ट्रायल कोर्ट को निष्पक्ष सुनवाई का निर्देश

हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट अब मुकदमे की आगे की सुनवाई किसी भी नए बयान या पलटी से प्रभावित हुए बिना, केवल उपलब्ध साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर करेगा. अदालत ने चेताया कि कानूनी व्यवस्था को कमजोर करने वाले मामलों पर सख्त रुख जारी रहेगा.