UP Politics: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव अभियान अपने चरम पर है. हर पार्टी जीत के दावे के साथ सियासी बिसात बिछाने में जुटी हुई है. इस कड़ी में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, भारतीय जनता पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकने की कवायद में अपने चार स्तंभों के साथ चुनावी मैदान में जोरदार लड़ाई लड़ रहे हैं.


बीजेपी के खिलाफ माहौल बनने और उसकी चाल को मात देने का श्रेय इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश के चार बाजुओं को दिया जा रहा है. प्रचार अभियान को धार दे रही हैं पत्नी डिंपल यादव और मीडिया वार रूम की दशा-दिशा को तय कर रहे हैं अनुराग भदौरिया. इसी तरह ग्राणीम इलाकों में जनता के बीच हरेक की जुबान पर सपा की रट लगवाने का काम अंजाम दे रहे हैं चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव और अखिलेश को हर मोड़ पर अपने अनुभव से रोजाना सियासत की नई चाल सीखा रहे हैं चाचा शिवपाल यादव. 


लोकसभा चुनाव के बहाने सत्ता में वापसी को बेताब सपा कई स्तर पर रणनीति के साथ मैदान में है. लखनऊ के वॉर रूम से इसकी मॉनिटरिंग भी की जा रही है. इस स्टोरी में उन नेताओं का जिक्र कर रहे हैं जो जनता के सामने तो हैं, लेकिन असल में पर्दे के पीछे सपा की जीत के लिए स्क्रिप्ट लिख रहे हैं. आज इस स्टोरी में उन 4 नेताओं की कहानी और रणनीति को जानते-समझते हैं.




1. डिंपल यादव- चुनाव अभियान में भीड़ जुटना, पार्टी कार्यकर्ताओं और युवाओं में जोश भरना. और पार्टी के मुद्दों को जोर शोर के साथ जनता की जुबान पर रटवा देने का काम डिंपल बखूबी अंजाम दे रही हैं. उन्होंने अनेक मुद्दों पर पार्टी और गठबंधन का बचाव किया और विरोधियो को जवाब दिए. चाहे मुद्दा वैक्सीन का हो या इंडिया अलायंस की आंतरिक रणनीतियों का, डिंपल हर मोर्चे पर विरोधियों से मुकाबला करती दिख रहीं हैं. सपा से महिलाओं को जोड़ने में भी डिंपल की भूमिका अहम मानी जाती है.




2. अनुराग भदौरिया- सपा का ये सिपाही यूं तो जगह मौजूद है, लेकिन सपा को जीत कैसे मिले, आम और खास के बीच कैसे माहौल खुशगवार रहे. कैसे विपक्ष की धार को कमजोर किया जाए. मीडिया में माहौल बनाने और विपक्ष को धूल चटाने और उसे उसकी पिच पर हराने की काट निकालने वालों के मुखिया और असल हीरो यही हैं. टीवी डिबेट्स में सपा नेताओं की जो सक्रियता दिखती है. जो आक्रामक रूप नजर आता है. इसके आर्किटेक्स कोई और नहीं अनुराग भदौरिया ही हैं. यही वजह है कि स्थानीय से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक सपा के प्रवक्ता अपनी पार्टी का अकाट पक्ष रखते हैं और विरोधियों को धुआंधार जवाब देते हैं. अनुराग खुद भी टीवी डिबेट्स में सपा का मजबूत पक्ष रखते हैं. टीवी डिबेट्स में इनके द्वारा रखी गई बात अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं और चर्चा का विषय बनती हैं.


ऐसा भी नहीं है कि अनुराग सिर्फ टीवी मीडिया के मजबूत खिलाड़ी हैं. वह सोशल मीडिया साइट्स पर भी मजबूती के साथ अपनी बात रखते हैं. चाहे गांव में खेती किसानी करनी हो या शहर में पोलो खेलना, वह इन सबकी तस्वीरें अपने सोशल मीडिया पर मौके-बेमौके साझा करते रहते हैं. इसके अलावा अनुराग चुनाव प्रचार में एक कार्यकर्ता की तरह अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं. अनुराग समय-समय पर छात्रों और युवाओं से बात मुलाकात कर के उनके समय की नब्ज और मुद्दों को समझते हुए टीवी और सोशल मीडिया पर पार्टी की बात रखते हैं. अनुराग न सिर्फ इस लोकसभा में सपा के मीडिया रणनीतिकार हैं, बल्कि अखिलेश के वफादारों में गिने जाते हैं. 




3.धर्मेंद्र यादव- यूं तो ये रिश्ते में अखिलेश यादव के चचेरे भाई हैं, लेकिन जब बात इस चुनावी समर में सपा को जन-जन के बीच ले जाने की रणनीति को लेकर आती है तो पहला इसके आर्किटेक्ट धर्मेंद्र यादव ही माने जाते हैं. पार्टी का जनाधर सूबे के ग्रामीण इलाकों में कैसे बढ़े, पार्टी से युवा कैसे जुड़े, करीब आएं. इस रणनीति को धर्मेंद्र ने अंजाम दिया. इतना ही नहीं, अलायंस के मामलों में भी बढ़चढ़कर पार्टी की भागीदारी सुनिश्चित किया और अधिक से अधिक सीट पाने की कामयाब रणनीति बनाई. ये उनका ही कमाल है कि उन्होंने इस चुनाव में अखिलेश को किंग मेकर की तौर पर स्थापित कर दिया है. इसका उदाहरण देखिए कि जब बीते दिनों उनसे पूछा गया कि अगर इंडिया अलायंस की सरकार आई तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा, धर्मेंद्र ने कहा कि अखिलेश जिसे चाहेंगे पीएम बनेगा.



4. शिवपाल सिंह यादव- अखिलेश यादव के लिए यह पहला ऐसा बड़ा चुनाव है जब उनके सिर पर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का हाथ नहीं है. लेकिन उस कमी को अपने अनुभव और रिश्तों की डोर से पूरा कर रहे हैं चाचा शिवपाल. चाचा शिवपाल ने जहां पार्टी के संगठन का काम संभाल रखा है वहीं पार्टी प्रमुख को विरोधियों की चाल से बचने और उनके खिलाफ आक्रामक होने का पैंतरा भी सिखा रहे हैं. चाहे रामपुर का मामला हो या मुरादाबाद का, चाचा शिवपाल हर मौके पर अग्रिम पंक्ति में रहे और पार्टी के लिए रणनीति तैयार की. जब अपना दल कमेरावादी प्रमुख पल्लवी पटेल ने सपा से नाता तोड़ लिया तब भी शिवपाल ने स्थिति संभाली और सपा का न सिर्फ बचाव किया बल्कि आक्रामक रुख अख्तियार कर जनता के बीच अलायंस टूटने के असर को भी बेअसर कर दिया.


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