UP News: लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) में रह रहे जोड़े को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने बड़ी राहत दी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी गई है. दो बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है. उनके जीवन में किसी प्राधिकारी या व्यक्ति को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे याचियों के खिलाफ बलिया के नरही थाने में दर्ज एफ आई आर को रद्द कर दिया है.


याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने की टिप्पणी


जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सैयद वैज मियां की खंडपीठ ने  याची आकाश राजभर व अन्य की याचिका को स्वीकारते हुए यह फैसला दिया है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट के शाफिन जहां बनाम अशोकन के एम व अन्य केस के फैसले के अनुसार दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी.


दो बालिगों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार


याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने  सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता बिना किसी कानूनी अधिकार के नहीं छीनी जा सकती. दो बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से एक साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है. सरकार का दायित्व है कि वह उनके इस अधिकार की सुरक्षा करे. बालिगों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने व साथ रहने का अधिकार है. उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.


कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब दिल्ली में श्रद्धा नाम की लड़की को लिव इन में रह रहे उसे ब्यॉयफ्रेंड ने बेहरमी से मौत के घाट उतार दिया. ब्यॉयफ्रेंड आफताब में उसके शरीर के 35 टुकड़े कर दिए. इसके बाद से ये सोशल मीडिया पर इस पर बहस शुरू हो गई कि लिव इन रिलेशनशिप कितना सही या गलत है.


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