लखनऊ: मिशन 2022 में जुटी समाजवादी पार्टी एक बार फिर पार्टी के पुराने और भरोसेमंद वरिष्ठ नेताओं को अपने पाले में लाने में जुटी हैं. इन नेताओं की घर वापसी में एक बड़ी वजह जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव भी बने हैं. बीते कुछ दिनों में समाजवादी पार्टी में कई ऐसे सीनियर नेताओं ने वापसी की है, जो कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी हुआ करते थे. लेकिन बदली हुई अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में वो खुद को एडजस्ट नहीं कर पाए थे और पार्टी छोड़ कर चले गए थे. लेकिन अब अखिलेश यादव नेताजी की राह पर ही लौटते दिख रहे हैं जहां उनकी भी कोशिश है कि 2022 से पहले इन क्षेत्रीय क्षत्रपों के सहारे पार्टी अपने सारे कील कांटे दुरुस्त करने में जुटी है.


2017 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी परिवार में जो संग्राम हुआ उसका खामियाजा सपा को सत्ता से बेदखल होकर चुकाना पड़ा था. चाचा-भतीजे के अहम का टकराव इतना बढ़ा कि चाचा ने अलग होकर अपनी नई पार्टी बना ली. शिवपाल यादव ने जब प्रसपा बनाई तो उनके साथ समाजवादी पार्टी के कई ऐसे सीनियर और भरोसेमंद नेता साथ हो लिए जो कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी हुआ करते थे और समाजवादी पार्टी को आगे ले जाने में जिनका बड़ा योगदान रहा. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद 2019 में जब बसपा से गठबंधन के बावजूद भी समाजवादी पार्टी महज 5 सीटों पर सिमट गई तब उसके बाद अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति में बदलाव किया. अखिलेश उन नेताओं को अपने पाले में लाने में जुट गए जो कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी हुआ करते थे. 


पंचायत चुनाव घर वापसी कराने की बड़ी वजह साबित हुआ


2022 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर अखिलेश यादव ने अपनी इस कोशिश को और तेज कर दिया है. पंचायत चुनाव इसकी एक बड़ी वजह भी साबित हुआ है. हाल ही में जिस तरीके से बलिया में समाजवादी पार्टी ने पार्टी के कद्दावर नेता रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री अम्बिका चौधरी के बेटे को अपना जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया. उसके बाद अंबिका चौधरी ने बसपा से इस्तीफा दे दिया और इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि वह जल्द सपा ज्वाइन कर सकते हैं. अम्बिका चौधरी समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे हैं और 2017 में वह बसपा में चले गए थे तब से लगातार बहुजन समाज पार्टी में ही बने हुए थे. लेकिन अब नए सियासी माहौल में उनका इस्तीफा देना इस बात का संकेत माना जा रहा है कि जल्द वह घर वापसी कर सकते हैं.


इसके अलावा बीते कुछ समय में जिन सपा के पुराने नेताओं ने पार्टी रीज्वाइन की है उनमें बालकुमार पटेल जो ददुआ के भाई हैं और पूर्व सांसद रहे हैं. वह भी 2019 में समाजवादी पार्टी छोड़ कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े, हार का सामना करना पड़ा और उसके बाद वापस समाजवादी पार्टी जॉइन की. वहीं बसपा के संस्थापकों में शामिल आर के चौधरी ने 2017 में सपा ज्वाइन की थी लेकिन फिर वह कांग्रेस में चले गए थे और जब लोकसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली तो हाल ही में उन्होंने भी सपा में वापसी की है. इसी तरह से राम प्रसाद चौधरी जो कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी हुआ करते थे, लंबे समय तक बसपा में रहने के बाद बीते साल अपनी पुरानी पार्टी में वापस आ गए. 


वहीं हाल ही में समाजवादी पार्टी ने बसपा के पूर्व सांसद बालेश्वर यादव की बेटी को जब जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया, उसके बाद से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि बालेश्वर यादव भी सपा में आ सकते हैं और दो दिन पहले अखिलेश यादव ने उन्हें समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई. बालेश्वर यादव मुलायम सिंह के काफी करीबी रहे हैं और लंबे समय से बसपा में थे. मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे और अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नारद राय भी 2017 में नाराज होकर बसपा में चले गए थे और बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे. लेकिन सफलता नहीं मिली और कुछ समय बाद ही उन्होंने दोबारा समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली थी. इसी तरह अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे राज किशोर सिंह पहले कांग्रेस और उसके बाद बसपा में चले गए. 


जो लोग शिवपाल के साथ गए थे उनकी भी वापसी के रास्ते सपा में खुलेंगे


शिवपाल यादव के साथ पुराने कद्दावर नेता शारदा प्रताप शुक्ला भी प्रसपा में चले गए जो कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी हुआ करते थे. शिवपाल यादव के साथ ही शादाब फातिमा भी प्रसपा में चली गई जो अखिलेश सरकार में मंत्री थीं. अब जब अखिलेश यादव ने खुद इस बात के संकेत दिए हैं कि 2022 के चुनाव से पहले चाचा शिवपाल को उचित सम्मान दिया जाएगा तो साफ है कि जो लोग शिवपाल यादव के साथ गए थे उनकी भी वापसी के रास्ते सपा में खुलेंगे.


बता दें कि 2022 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए डु ऑर डाई का सवाल है. ऐसे में अखिलेश यादव की कोशिश है कि पार्टी के पुराने कद्दावर क्षेत्रीय क्षत्रपों को अपने साथ जोड़ा जाए और उनके सहारे 2022 में साइकिल को चुनावी रेस में सबसे आगे लेकर जाया जाए. इससे एक बात तो साफ है कि सत्ता हासिल करने के लिए चाहे किसी का भी सहारा लेना पड़ा अब अखिलेश यादव को उससे कोई गुरेज नहीं है.


यह भी पढ़ें-


सक्रिय है सरकारी अमला, 15 दिनों में 70 के करीब शवों को कब्र से निकालकर किया गया दाह संस्कार