UP Assembly Election 2022: यूपी में कुछ महीनों बाद होने जा रहे विधानसभा के चुनावों में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य प्रयागराज की शहर उत्तरी सीट से ताल ठोंकते हुए नज़र आ सकते हैं. शहर उत्तरी को यूपी में सबसे ज़्यादा शिक्षित और बुद्धिजीवी वोटर वाली सीट कहा जाता है. ऐसे में केशव मौर्य यहां से जीत हासिल कर कई संदेश देने की जुगत में हैं. वह ब्राह्मणों के साथ ही दूसरी अगड़ी जातियों के दबदबे वाली इस सीट से विधायक बनकर खुद पर लगे बैकवर्ड लीडर के ठप्पे को हटाना चाहते हैं. वैसे केशव मौर्य के लिए यहां मुकाबला उतना आसान नहीं होगा, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने इसी सीट से चार बार विधायक रहे प्रभावशाली नेता अनुग्रह नारायण सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.


यूपी विधानसभा चुनाव में योगी सरकार में बड़ी कुर्सियों पर काबिज बीजेपी के दिग्गज नेता इस बार जनता के बीच से चुनकर आना पसंद करेंगे या एक बार फिर बैकडोर के सहारे सदन में इंट्री मारेंगे, यह अभी तय नहीं है, लेकिन बीजेपी खेमे से संकेत यही मिल रहे हैं कि बड़े नेताओं को इस बार चुनाव लड़ना ही होगा. यह संकेत मिलते ही बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने अपने लिए सुरक्षित सीटों की तलाश शुरू कर दी है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बारे में चर्चा यह है कि वह अपने गृहनगर प्रयागराज की शहर उत्तरी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. इस सीट पर हुए पिछले सात चुनावों में पांच बार बीजेपी को जीत मिली है तो दो बार कांग्रेस पार्टी को. सपा और बसपा अभी तक यहां खाता भी नहीं खोल सकी हैं.


90 फीसदी से ज़्यादा वोटर्स शिक्षित हैं


केशव मौर्य इसी सीट के ज्वाला देवी इंटर कालेज पोलिंग सेंटर पर वोटर भी हैं. यहीं से वह पार्टी के पन्ना प्रमुख भी बनाए गए हैं. केशव ने पिछले हफ्ते इसी सीट के एक बूथ के पन्ना प्रमुख होने की बात वीडियो संदेश के साथ ट्वीट कर अपनी मंशा भी साफ़ कर दी है. यहां के चार लाख बीस हज़ार वोटर्स में से 90 फीसदी से ज़्यादा शिक्षित हैं. उत्तरी सीट को सरकारी बाबुओं और बुद्धिजीवियों की सीट भी कहा जाता है. इस सीट के ज़्यादातर वोटर या तो सरकारी व प्राइवेट नौकरियों में हैं या फिर वकील-डॉक्टर-टीचर अथवा इसी तरह के दूसरे सम्मानित पेशे से जुड़े हुए हैं. पिछले नौ चुनावों की बात करें तो उत्तरी सीट से लगातार चार बार इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डॉ नरेंद्र कुमार सिंह गौर चुनाव जीते हैं. इसके अलावा चार बार ही इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अनुग्रह नारायण सिंह. मौजूदा विधायक हर्ष बाजपेई ने भी इंग्लैंड से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. ऐसे में यहां के वोटरों के मिजाज़ को बखूबी समझा जा सकता है.


प्रयागराज की शहर उत्तरी सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां के चार लाख बीस हज़ार वोटरों में से सबसे ज़्यादा करीब 90 हज़ार ब्राह्मण हैं. इसके साथ ही तकरीबन 65 हज़ार कायस्थ और 18 हज़ार ठाकुर भी हैं. इस तरह यहां पैंतालीस फीसदी के करीब अगड़ी जातियों के वोटर हैं. उत्तरी सीट पर करीब 80 हज़ार दलित, 22 हज़ार मुस्लिम, 18 हज़ार यादव, 12 हज़ार कुर्मी, चार हज़ार निषाद, तीन हज़ार पाल, पांच हज़ार मौर्य -कुशवाहा वोटर भी हैं. वैसे राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़ यहां का पढ़ा-लिखा व बुद्धिजीवी वोटर जाति के बजाय पार्टी और प्रत्याशी के आधार पर वोट करता हैं. उत्तरी भले ही सूबे में सबसे ज़्यादा बुद्धिजीवियों की सीट कही जाती हो, लेकिन यहां के वोटर वोट डालने के मामले में सूबे में अक्सर ही सबसे फिसड्डी साबित होते हैं. कई बार तो ऐसा हुआ कि यहां एक चौथाई वोटर्स ने भी वोट डालने के लिए पोलिंग सेंटर्स तक जाने की तकलीफ नहीं की.


केशव मौर्य एक तीर से कई निशाना साधना चाहते हैं


जानकारों का मानना है कि शहर उत्तरी सीट से विधायक बनकर केशव मौर्य एक तीर से कई निशाना साधना चाहते हैं. वह अपने ऊपर लगे बैकवर्ड लीडर के ठप्पे को मिटाना चाहते हैं और साथ ही खुद को सर्वसमाज के नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं. केशव मौर्य इसके साथ ही बुद्धिजीवियों व फारवर्ड वोटरों के बीच अपनी पैठ को भी दिखाना चाहते हैं. शहर उत्तरी सीट पूरी तरह शहरी सीट है. तकरीबन सवा चार लाख वोटर होने के बावजूद इस सीट के एक से दूसरे छोर पर किसी भी वाहन से सिर्फ पंद्रह से बीस मिनट में पहुंचा जा सकता है. क्षेत्रफल कम होने से उम्मीदवारों को प्रचार करने और घर-घर जाकर वोटरों से सीधे संपर्क साधने में कोई ख़ास दिक्कत नहीं होती. उत्तरी सीट बीजेपी के साथ ही आरएसएस और दूसरे संगठनों का भी मजबूत गढ़ है. केशव मौर्य यहां से बड़े अंतर से जीत हासिल कर साल 2014 में सांसद भी बन चुके हैं. इसी सीट पर उनका घर भी है. केशव ने डिप्टी सीएम रहते हुए इस सीट पर विकास के काफी काम कराए हैं. कई ओवर ब्रिज की सौगात दी है. रेलवे क्रासिंग पर पुल बनवाए हैं. सड़कों का चौड़ीकरण कराया है. उत्तरी सीट की ही दारागंज पीएचसी को ही उन्होंने गोद भी ले रखा है.


हालांकि केशव मौर्य शहर उत्तरी सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर अभी खुलकर कुछ नहीं बोलना चाहते. पन्ना प्रमुख बनने के सवाल पर तो वह खुलकर बोलते  हैं, लेकिन चुनाव लड़ने के सवाल पर टालमटोल वाले जवाब देते हैं. वैसे अनौपचारिक बातचीत में वह प्रयागराज की उत्तरी सीट से ही चुनाव लड़ने का इशारा करते हैं. उनके नजदीकी भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि वह यहीं से ताल ठोकेंगे. वैसे प्रयागराज की फाफामऊ और कौशाम्बी जिले की सिराथू सीट को भी उन्होंने विकल्प के तौर पर छोड़ रखा है. सिराथू से वह साल 2012 में विधायक चुने गए थे, जबकि फाफामऊ सीट जातीय समीकरण के हिसाब से केशव मौर्य के लिए खासी मुफीद मानी जा रही है.


उत्तरी सीट से जुड़े पार्टी नेता और कार्यकर्ता खासे उत्साहित हैं


केशव मौर्य के चुनाव लड़ने की संभावना से उत्तरी सीट से जुड़े पार्टी नेता और कार्यकर्ता खासे उत्साहित हैं. पार्टी के काशी प्रांत के उपाध्यक्ष अवधेश गुप्ता के मुताबिक़ केशव मौर्य का जो कद है, उससे वह कहीं से भी चुनाव लड़कर बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं. उनका दावा है कि केशव मौर्य के चुनाव लड़ने की सूरत में यहां विपक्षी उम्मीदवारों की जमानत तक नहीं बचेगी. दूसरी तरफ इस सीट से चार बार विधायक रहे कांग्रेस उम्मीदवार अनुग्रह नारायण सिंह का कहना है कि केंद्र और यूपी सरकार की मनमानी और बेरोज़गारी से लोग इतने नाराज़ है कि कमल को इस बार सीधे कीचड़ में फेंकने की तैयारी में हैं. उनका दावा है कि केशव के चुनाव लड़ने पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ेगा.


राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी का कहना है कि शहर उत्तरी के मिजाज़ के आधार पर यह माना जा सकता है यहां केशव को अपने बड़े सियासी कद, क्षेत्र में किये गए विकास के कामों और विपक्षी वोटों के बिखराव का फायदा मिल सकता है. हालांकि उनके मुताबिक़ यहां से विधानसभा के सदन में पहुंचकर केशव कई संदेश देना चाहेंगे. उनका दावा है कि सपा-बसपा का इस सीट पर अभी तक खाता न खुलना और कांग्रेस का कमज़ोर जनाधार केशव मौर्य के लिए मुफीद साबित हो सकता है. वैसे अगर केशव मौर्य इस उत्तरी सीट से चुनाव लड़ते हैं तो यहां के मौजूदा विधायक का रुख क्या होगा, यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा.


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