भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष पद का ऐलान जल्द होने की संभावना है. 13 दिसंबर को राजधानी लखनऊ में नामांकन होगा और 14 दिसंबर को यूपी बीजेपी चीफ के नाम का ऐलान हो सकता है.
बीजेपी की स्थापना से अब तक यूपी के अध्यक्षों की बात करें तो कुल 14 अध्यक्ष हुए हैं. इसमें अभी तक कलराज मिश्र के अलावा कोई ऐसा अध्यक्ष नहीं रहा जो 2 बार पद पर आसीन हुआ हो. सन् 1980 में माधो प्रसाद त्रिपाठी से शुरू हुआ कारवां फिलहाल चौधरी भूपेंद्र सिंह तक पहुंचा है. 14 दिसंबर को बीजेपी किसे अध्यक्ष चुनेगी यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन उससे पहले हम आज आपको बताते हैं कि 14 अध्यक्षों में से पार्टी ने किस वर्ग को कब-कब जिम्मेदारी सौंपी.
1. माधो प्रसाद त्रिपाठी- यूपी बीजेपी अध्यक्ष की लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है माधो प्रसाद त्रिपाठी का है. सन् 80 में बीजेपी के अध्यक्ष बने माधो वर्ष 1984 तक इस पद पर बने रहे. लोकसभा के सदस्य रहे माधो की ही अगुवाई में बीजेपी ने यूपी में अपनी जमीन बनाने की शुरुआत की.
2. माधो प्रसाद त्रिपाठी के बाद बीजेपी ने कल्याण सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी. वह सन् 1984 से 1990 तक बीजेपी की यूपी इकाई के अध्यक्ष रहे. लोधी समाज से आने वाले कल्याण सिंह बाद में 19 महीनों के लिए राज्य के सीएम थे. कुछ वर्षों तक बीजेपी से मनमुटाव के चलते वह पार्टी से दूर रहे. एक बार वर्ष 1999 और फिर 2009 में वह बीजेपी से दूर हो गए. हालांकि वर्ष 2014 में केंद्र में सत्ता आने के बाद कल्याण की वापसी बीजेपी में हुई और वह राजस्थान और हिमाचल के राज्यपाल रहे.
3. कल्याण सिंह के बाद बीजेपी ने कलराज मिश्रा को भी 6 वर्षों के लिए यूपी बीजेपी चीफ का जिम्मा सौंपा. वह सन् 1991 से 1997 तक अध्यक्ष पद रहे. यह वही दौर था जब राज्य में मंडल और कमंडल की सियासी लड़ाई ने रफ्तार पकड़ ली थी. इसी दौर में अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को कारसेवकों ने गिराया था.
4. कलराज मिश्रा के बाद बीजेपी ने राजनाथ सिंह पर भरोसा जताया. वह 3 वर्षों के लिए राज्य इकाई के मुखिया बने. मार्च 1997 से जनवरी 2000 तक यूपी बीजेपी चीफ रहे राजनाथ 2 वर्षों तक साल 2002 तक सीएम रहे. क्षत्रिय वर्ग से आने वाले राजनाथ बाराबंकी स्थित हैदरगढ़ से दो बार विधायक भी चुने गए थे.
5. राजनाथ सिंह के बाद मीरजापुर निवासी ओम प्रकाश सिंह यूपी बीजेपी चीफ बने. यूपी सरकार में बतौर काबीना मंत्री अपनी सेवाएं दे चुके कुर्मी समाज से आने वाले सिंह सात बार विधायक थे. वह जनवरी 2000 से अगस्त 2000 तक सिर्प 7 महीने के लिए अध्यक्ष रहे.
6. ओम प्रकाश के बाद एक बार फिर कलराज मिश्रा के हाथ में कमान आई और वह 2 वर्षों तक यूपी बीजेपी चीफ थे. वर्ष 2000 से 2000 तक वह पार्टी की यूपी इकाई के मुखिया रहे.
7. कलराज मिश्र के दूसरे कार्यकाल के बाज बीजेपी ने विनय कटियार को पार्टी में यूपी का जिम्मा सौंपा. कुर्मी समाज से आने वाले विनय कटियार को राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरों में गिना जाता है. कटियार उस वक्त अध्यक्ष बने जब देश में लोकसभा चुनाव के लिए धीरे-धीरे माहौल बनना शुरू हो गया था. वह वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के दो महीने बाद तक यूपी बीजेपी चीफ रहे.
8. कटियार के बाद पार्टी ने केशरीनाथ त्रिपाठी को अध्यक्ष चुना. जुलाई 2004 से सितंबर 2007 तक अध्यक्ष रहे केशरी नाथ त्रिपाठी यूपी विधानसभा के स्पीकर रहे और बाद में मिजोरम, बिहार (अतिरिक्त प्रभार) और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी बने. त्रिपाठी पांच बार बतौर विधायक चुनकर यूपी विधानसभा पहुंचे थे.
9. त्रिपाठी के बाद बीजेपी ने डॉ. रमापति राम त्रिपाठी को अध्यक्ष चुना. वर्ष 2007 से 2010 तक यूपी बीजेपी चीफ रहे राम पति राम त्रिपाठी देवरिया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद भी रह चुके हैं. वह 2 बार यूपी विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं.
10. रमापति राम त्रिपाठी के बाद बीजेपी ने सूर्य प्रताप शाही के कंधों पर यूपी की जिम्मेदारी सौंपी. मई 2010 से 2012 के अप्रैल तक यूपी बीजेपी अध्यक्ष रहे शाही फिलहाल योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. भूमिहार समाज से आने वाले शाही सन् 1985 से अब तक वह पांच बार यूपी विधानसभा के सदस्य चुने जा चुके हैं.
11. शाही के बाद बीजेपी ने लक्ष्मीकांत वाजपेयी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया. वाजपेयी चार वर्षों तक बीजेपी के अध्यक्ष रहे. इन्हीं के कार्यकाल में पहली बार बीजेपी ने यूपी के लोकसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल की थी.
12. वाजयेपी के बाद बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य पर भरोसा जताया. वर्ष 2014 के चुनाव में सांसद बने केशव केवल 1 साल तक अध्यक्ष रहे. केश अप्रैल 2016 से अगस्त 2017 तक अध्यक्ष रहे. उन्हीं के कार्यकाल में पहली बार यूपी में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. सरकार गठन में वह राज्य के डिप्टी सीएम बने. मौर्य समाज से आने वाले केशव संगठन और सरकार में समन्वय के सख्त पैरोकार माने जाते रहे हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी के पिछड़ने के बाद उनका बयान काफी चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने संगठन को सरकार से बड़ा बताया था.
13. केशव के बाद बीजेपी ने महेंद्र नाथ पांडेय को अध्यक्ष बनाया था. पांडेय के कार्यकाल में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 62 सीटें हासिल की थी. जो वर्ष 2014 के चुनाव के मुकाबले 9 सीटें कम थीं. पांडेय 2 बार सांसद रहे और केंद्र सरकार में मंत्री भी थे. पांडे अगस्त 2017 से जुलाई 2019 तक यूपी बीजेपी के अध्यक्ष रहे.
14. पांडेय के बाद बीजेपी ने यूपी में स्वतंत्र देव सिंह को पार्टी का अध्यक्ष चुना. उनकी अगुवाई में बीजेपी राज्य में दोबारा सरकार बनाने में सफल हुई थी. हालांकि वर्ष 2017 के मुकाबले बीजेपी की सीटें घटी थीं. कुर्मी समाज से आने वाले स्वतंत्र देव सिंह जुलाई 2019 से अगस्त 2022 तक अध्यक्ष रहे. बाद में वह योगी सरकार में काबीना मंत्री बने.
15. चौधरी भूपेंद्र सिंह वर्ष 2022 में बीजेपी अध्यक्ष बने. उत्तर प्रदेश विधानमंडल में विधान परिषद् के सदस्य सिंह की अगुवाई में बीजेपी वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के इंडिया अलायंस से बुरी तरह पिछड़ी और वह 33 सीटों पर सिमट गई. अध्यक्ष बनने से पहले वह योगी सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री सेवाएं दे रहे थे. 2024 में इंडिया अलायंस से पिछड़ने के बाद जब उसी वर्ष में जब करीब 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए तो पार्टी ने 6 पर जीत हासिल की. जाट समाज से आने वाले भूपेंद्र के बारे में माना जाता है कि पश्चिमी यूपी में उनकी पकड़ अच्छी है.
वर्ष 1980 से साल 2025 तक बीजेपी ने यूपी में विभिन्न प्रयोग किए. 45 साल के संगठनात्मक इतिहास में बीजेपी ने यूपी में सबसे ज्यादा 6 ब्राह्मण अध्यक्ष दिए. इसके साथ ही 3 कुर्मी, 1 लोधी, 1 मौर्य , 1 भूमिहार और 1 अध्यक्ष जाट बिरादरी से दिया.
यूपी में बीजेपी के अगले अध्यक्ष को लेकर चर्चाएं तेज है और दावा है कि बीजेपी फिर किसी गैर यादव ओबीसी चेहरे पर भरोसा जता सकती है. रेस में पांच नाम चल रहे हैं जिसमें से तीन ओबीसी औऱ 2 ब्राह्मण है. ओबीसी वर्ग से बात करें तो कुर्मी समाज से पंकज चौधरी,बीएल वर्मा और लोधी से धर्मपाल लोधी का नाम रेस में है. इसके अलावा ब्राह्मण चेहरे में बस्ती से पू्र्व सांसद और असम प्रभारी हरीश द्विवेदी और महामंत्री गोविंद शुक्ला का नाम चर्चा में है.
यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इन पांच नामों से किस पर आखिरी मुहर लगाती है.