उत्तराखंड के कुमाऊं के रामनगर इलाके में भूगर्भीय हलचल को लेकर वैज्ञानिकों ने गंभीर संकेत जारी किए हैं. विशेषज्ञों के अनुसार यदि इस क्षेत्र में बड़ा भूकंप आया तो दाबका और कोसी नदी अपने मार्ग बदलते हुए आपस में मिल सकती हैं. यह बदलाव सिर्फ नदियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे लैंडस्केप और मानव बस्तियों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में आयोजित एक कार्यशाला के दौरान यह महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई.

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आईआईटी कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जावेद मलिक ने बताया कि क्षेत्र में कई सक्रिय फाल्ट लाइनें मौजूद हैं, जिनमें कालाढूंगी फाल्ट लाइन और हाजीपुर फाल्ट लाइन प्रमुख हैं. इनमें से कालाढूंगी फाल्ट लाइन लगभग 50 किलोमीटर लंबी है और मेन फ्रंटल थ्रस्ट (एमएफटी) का अहम हिस्सा मानी जाती है. यह वही फाल्ट लाइन है जिससे 1505 और 1803 जैसे विनाशकारी भूकंप जुड़े हुए हैं. डॉ. जावेद के अनुसार, इस फाल्ट लाइन में बड़े भूकंप के कई अवशेष मिले हैं, जो भविष्य में बड़े भूंकपीय खतरे का संकेत देते हैं.

भूकंप के दौरान धरातल की संरचना में हो सकता है बदलाव

उन्होंने बताया कि भूकंप के दौरान धरातल की संरचना में बड़ा बदलाव हो सकता है, जिसके चलते दाबका और कोसी नदी का बहाव क्षेत्र बदलकर दोनों नदियां आपस में मिल सकती हैं. ऐसा बदलाव पहले भी हो चुका है—आज जो दाबका और बौर नदी का बहाव क्षेत्र दिखाई देता है, वह पूर्व में बिल्कुल अलग था. पुराने भूकंपों ने इनके मार्ग में बड़े परिवर्तन किए थे.

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'भूकंप का लैंडस्केप और मानव बस्तियों की बसावट पर पड़ता असर'

विशेषज्ञ मानते हैं कि भूगर्भीय अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि भूकंप केवल धरती हिलाने तक सीमित नहीं होते, बल्कि वे पूरे लैंडस्केप और मानव बस्तियों की बसावट पर गहरा असर डालते हैं. इसलिए इन बदलावों को समझना और उन्हें ध्यान में रखकर विकास योजनाएं बनाना बेहद जरूरी है.

फाल्ट लाइनों पर निर्माण को लेकर चेताया

डॉ. जावेद मलिक ने फाल्ट लाइनों पर निर्माण को लेकर भी चेताया. उन्होंने कहा कि पृथ्वी की परत में मौजूद इन दरारों के ऊपर बड़े निर्माण नहीं होने चाहिए. गुजरात में फाल्ट लाइनों को पहले से चिन्हित कर उनके आसपास बफर जोन बनाए गए हैं, जिससे निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सके. 

उत्तराखंड में भी इसी तरह का प्रयास आवश्यक है ताकि संभावित भूंकपीय खतरे से जनहानि को रोका जा सके. विशेषज्ञों का मत है कि समय रहते चेतावनी और वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर नीतियां बनाईं जाएं, अन्यथा भविष्य में आने वाला कोई बड़ा भूकंप क्षेत्र की नदियों, भू-आकृति और मानव जीवन में व्यापक बदलाव ला सकता है.