समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का जौनपुर दौरा खत्म हो चुका है. इससे पहले वो अपना विजय रथ लेकर कुशीनगर और गाजीपुर भी गए थे. पूर्वांचल के इन जिलों में अखिलेश यादव के दौरे यह दिखाते हैं कि सपा के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश कितना महत्वपूर्ण है. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सपा को पूर्वांचल से बहुत उम्मीदें हैं, इसलिए वह इस इस इलाके में खुद को मजबूत करने में जुटी हुई है. 


किसके किसके साथ है सपा का समझौता


जौनपुर में दो दिन के दौरे में भी अखिलेश ने बिखरे हुए पिछड़े वर्ग के वोट को समेटने का प्रयास किया. उन्होंने कहा भी कि वो छोटे दलों को साथ लेकर बीजेपी को सत्ता से हटाएंगे. सपा ने ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा के अलावा संजय चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) और महानदल से भी समझौता है, जो नोनिया और कुशवाहा जाति के लोगों की पार्टियां हैं. इन जातियों की पूर्वांचल के जिलों में अच्छी-खासी आबादी है. इसके अलावा भी वह पिछड़े वर्ग के महत्वपूर्ण नेताओं को अपनी ओर करके दूसरी जातियों को भी साधने की कोशिश कर रही है. 


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ओमप्रकाश राजभर 2017 के चुनाव में बीजेपी के साथ थे. राजभर की कमी की भरपाई के लिए निषाद पार्टी से हाथ मिलाया है. इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक दूसरी बड़ी पिछड़ी जाति निषाद, केवट, मल्लाह और बिंद की पार्टी माना जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, कुशीनगर, जौनपुर, देवरिया, महराजगंज, गाजीपुर, आजमगढ़, भदोही, मीर्जापुर, वाराणसी और उसके आसपास के इलाकों में काफी आबादी है. माना जाता है कि 125 से अधिक सीटों पर इन जातियों का प्रभाव है. 


कौन दिलाएगा सपा को निषाद वोट?


सपा ने निषाद वोटों में हिस्सेदारी के लिए जमुना निषाद के परिवार और पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद को साथ लिया है. जमुना निषाद का निषादों में अच्छी पैठ थी. उनकी मौत के बाद उनका परिवार सपा के साथ रहा है. सपा को उम्मीद है कि जमुना निषाद का परिवार और रामभुआल निषाद उसे निषाद वोटों में हिस्सेदारी दिलाएंगे. 


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पूर्वांचल के सबसे बड़े बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी के बेटे और बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी और उनके भाइयों ने पिछले दिनों सपा की सदस्यता ली. यह भी पूर्वांचल में सपा के लिए संजीवनी बन सकता है. हरिशकंर तिवारी की पूर्वांचल के ब्राह्मणों में अच्छी पैठ है. ऐसी खबरें आती रही हैं कि योगी आदित्यनाथ की सरकार से ब्राह्मण नाराज हैं. अगर यह नाराजगी सच साबित हुई तो इसका फायदा सपा को मिल सकता है. लेकिन ब्राह्मणों की अभी पहली पसंद बीजेपी ही है. वहीं बसपा भी सतीश चंद्र मिश्र के जरिए ब्राह्मणों को अपनी ओर करने में जुटी हुई है.


बीजेपी को 2017 के चुनाव में पूर्वांचल से बहुत अधिक ताकत मिली थी. पूर्वांचल की 160 में से 115 सीटें उसने जीत ली थीं. लेकिन सपा की इस रणनीति से उसे अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने में दिक्कत हो सकती है. सपा अध्यक्ष अखिलेश की विजय रथ यात्रा में पूर्वांचल में जैसी भीड़ नजर आ रही है, उससे सपा उत्साहित है. लेकिन यह भीड़ वोट में बदल पाती है या नहीं, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे.