सपा (Samajwadi Party) प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) इन दिनों विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन करने में व्यस्त हैं. इस दौरान वो अपनी छवि निखारने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं. वो बाहुबलियों से परहेज करते नजर आ रहे हैं. यह बात उस समय साफ हुई जब उन्होंने बाहुबली विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को पहचानने से ही इनकार कर दिया. राजा भैया (Raja Bhaiya) अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री रह चुके हैं.


राजा भैया को पहचानने से इनकार 


अखिलेश यादव एक निजी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रतापगढ़ गए थे. वहां उनसे राजा भैया के जनसत्ता दल के साथ गठबंधन को लेकर सवाल किया गया था. इस पर उन्होंने पूछा कि ये कौन हैं. उनका यह जवाब यह बताने के लिए काफी था कि वो अपनी नई छवि गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. वह भी ऐसे समय जब कुछ दिन पहले ही राजा भैया ने सपा के संस्थापक अखिलेश यादव से मुलाकात की थी. इसके बाद से ही माना जा रहा था कि सपा राजा भैया के साथ गठबंधन करेगी. 


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सपा ने 2012 में उत्तर प्रदेश में पहली बार अपने दम पर बहुमत हासिल किया था. सपा ने यह चुनाव मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में लड़ा था. उन दिनों अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव सपा के प्रदेश अध्यक्ष थे. मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अखिलेश यादव को बैठा दिया था. अगले साल होने वाला चुनाव ऐसा पहला विधानसभा चुनाव होगा जो सपा पूरी तरह से अखिलेश यादव के नेतृत्व में लड़ेगी. 


समाजवादी पार्टी का मुलायम युग


सपा पर जब मुलायम सिंह यादव का नियंत्रण था तो हर तरह की छवि वाले लोगों का पार्टी में स्वागत होता था. सपा उनको टिकट भी देती थी. इस तरह माफिया और दबंग छवि वाले लोग भी सपा का टिकट पा जाते थे. दरअसल उत्तर प्रदेश में 2007 से पहले सरकार बनाने के लिए हर विधायक जरूरी होता था. सरकार बनने के बाद उनका पूरा ख्याल भी रखा जाता था. उन्हें मंत्री पद भी दिया जाता था. राजा भैया मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव दोनों की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. उन्हें बीजेपी ने भी मंत्री बनाया था.


सपा पर नियंत्रण हासिल करने के बाद अखिलेश यादव दबंग और माफिया छवि वाले लोगों से दूरी बनाते नजर आ रहे हैं. साल 2017 के चुनाव से पहले पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी और उनके भाई सपा में शामिल हो गए थे. लेकिन अखिलेश यादव के विरोध की वजह से पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. उन्हें बाद में बसपा ने शरण दी थी. 


अखिलेश राज में कठोर हुई सपा


इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा ने इलाहाबाद के माफिया अतीक अहमद का टिकट पहले काट दिया था. लेकिन बाद में उन्हें श्रावस्ती से उम्मीदवार बनाया. इसी तरह 2017 के चुनाव में उन्हें कानपुर कैंट सीट से टिकट देने की घोषणा की गई थी. लेकिन अंतिम समय में उनका टिकट काटकर मोहम्मद हसन रूमी को दे दिया गया. कहा जाता है कि अखिलेश यादव के विरोध की वजह से ही सपा ने अखिलेश यादव से दूरी बनाई. अतीक 2004 में सपा के टिकट पर फूलपुर से लोकसभा का चुनाव भी जीत चुके थे.


राजा भैया को लेकर अखिलेश यादव ने प्रतापगढ़ में जो बयान दिया, उससे लगता है कि वो अपनी छवि को लेकर काफी सतर्क हैं. वो नहीं चाहते हैं कि विरोधी दल उन पर माफिया और दबंगों का साथ लेने का आरोप लगाएं. 


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