उत्तर प्रदेश के बाहुबली विधायकों की सूची में रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया का नाम प्रमुखता से आता है. वो प्रतापगढ़ की भदरी रियासत के राजकुमार हैं. यह राजपरिवार तो बहुत पहले से ही राजनीति में सक्रिय रहा है. लेकिन चुनावी राजनीति में उतरने वाले राजा भैया इस परिवार के पहले व्यक्ति हैं. राजा भैया के पिता और दादा भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं. लेकिन उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा. 


रजवाड़ों की राजनीति


राजा भैया अभी प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से विधायक हैं. वो 1993 से लगातार इस सीट से निर्दल जीत रहे हैं. वो बीजेपी और सपा की सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश में सरकार किसी भी पार्टी की हो राजा भैया का जलवा जरा भी कम नहीं हुआ. सिवा मायावती की सरकार को छोड़कर. मायावती ने बीजेपी के एक विधायक की शिकायत पर राजा भैया को उस धारा के तहत गिरफ्तार करवा दिया था, जो आतंकवादियों पर लगाई जाती है. मायावती उनके खिलाफ इतनी सख्त थीं कि उन्होंने राजा भैया के 600 एकड़ में फैले तालाब के चप्पे-चप्पे की तलाशी करवाई जाती थी, बाद में तालाब को पक्षी अभ्यारण्य घोषित करवा दिया था. इस अभ्यारण्य में मायावती सरकार ने एक गेस्ट हाउस भी बनवा दिया था.  


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राजा भैया के दादा बजरंग बहादुर सिंह ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था. वो पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति थे. वो हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे. कोई संतान न होने की वजह से बजरंग बहादुर सिंह ने राजा भैया के पिता उदय प्रताप सिंह को गोद लिया था. उदय प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद की राजनीति में तो सक्रिय रहे, लेकिन विधानसभा या लोकसभा का चुनाव कभी नहीं लड़े. राजा भैया इस राज परिवार के पहले ऐसे सदस्य हैं जो चुनावी राजनीति में हैं.


संविधान में क्या राजा-क्या प्रजा


देश में 26 जनवरी 1950 से लागू हुए संविधान ने राजा और प्रजा को एक बराबर कर दिया था. लेकिन कई राजा-रजवाड़े आज भी अपनी पुरानी अकड़ के साथ जीते हैं. राजा भैया भी उन्हीं में से एक हैं. उनके घर में उनका दरबार आज भी लगता है. लोग अपनी समस्याएं लिए राजा भैया के दरबार में आते हैं. इनमें घर-परिवार से लेकर जमीन-जायजाद तक की समस्याएं होती हैं. राजा भैया के दरबार में उनका तुरत-फुरत समाधान हो जाता है. 


राजा भैया पहली बार 1993 में कुंडा के विधायक बने थे. कुंडा से उनकी जीत का सिलसिला पिछले 5 बार से जारी है. अब राजा भैया और कुंडा एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं. भदरी रियासत का यह राजकुमार कुंडा में अपराजेय है. कहा जाता है कि राजा भैया के खिलाफ कोई स्थानीय व्यक्ति चुनाव में खड़ा भी नहीं होना चाहता है. साल के 2017 के चुनाव में बीजेपी और बसपा को राजा भैया के खिलाफ लड़ने के लिए पड़ोसी कौशांबी जिले से उम्मीदवार लेकर आना पड़ा था. सपा के तो वो करीबी मित्र हैं, इसलिए उसने उनके खिलाफ उम्मीदवार ही नहीं उतारा. राजा भैया ने 2017 में बीजेपी के जानकी शरण को 1 लाख 3 हजार 647 वोट के अंतर से हराया था. राजा भैया को 1 लाख 36 हजार 597 और जानकी शरण को 32 हजार 950 वोट मिले थे. यह जीत उत्तर प्रदेश के विधानसभा में सबसे अधिक वोटों के अंतर से हुई जीतों में दूसरे नंबर पर थी.


छह बार से निर्दलीय जीत रहे राजा भैया ने इस बार जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नाम से अपनी एक पार्टी ही बना ली है. उन्होंने 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है. उन्होंने कहा है कि अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ते हैं तो उनकी पार्टी उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी. 


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