उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ कैबिनेट (Yogi Adityanath) के दो मंत्री बीजेपी का दामन छोड़ दिया है. ये दोनों मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बड़े चेहरे हैं. इसके बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में तूफान आ गया है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन दोनों नेताओं के बीजेपी (BJP) छोड़ने से उसका पिछड़ी जातियों में आधार कमजोर होगा. आइए जानते हैं कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानभा चुनाव में ओबीसी का वोट किस पार्टी को कितना मिला है.


बीजेपी को कितना मिला ओबीसी वोट


पहले बात करते हैं बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को मिले ओबीसी वोटों की. थिंक टैंक सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को 27 फीसदी यादवों, 53 फीसदी कोइरी-कुर्मी और अन्य ओबीसी का 61 फीसदी वोट मिला था. वहीं अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो 23 फीसदी यादवों ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को वोट किया था. वहीं 80 फीसदी कोइरी-कुर्मी मतदाताओं और 72 फीसदी अन्य ओबीसी मतदाताओं ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को वोट किया था. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में केवल 10 फीसदी यादव मतदाताओं ने, 57 फीसदी कोइरी-कुर्मी मतदाताओं और 61 फीसदी अन्य ओबीसी मतदाताओं ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को वोट किया था. 


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बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 312 विधानसभा सीटों पर अपना परचम लहराया था. इससे पहले बीजेपी कभी भी इतनी अधिक सीटें नहीं जीत पाई थी.


समाजवादी पार्टी को कितना मिला ओबीसी वोट


वहीं अगर समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दलों को मिले ओबीसी मतों को देखे तो 2014 के लोकसभा चुनाव में 53 फीसदी यादवों, 17 फीसदी कोइरी-कुर्मी और 23 फीसदी अन्य ओबीसी जातियों के वोट इस गठबंधन को मिले थे. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 फीसदी यादवों, 14 फीसदी कोइरी-कुर्मी और 18 फीसदी अन्य ओबीसी जातियों ने सपा और उसके सहयोगियों को वोट किया था. सपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा के साथ मिलकर लड़ा था. 


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साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 66 फीसदी यादवों, 18 फीसदी कोइरी-कुर्मी और 12 फीसदी अन्य ओबीसी जातियों ने सपा और उसके सहयोगियों को वोट किया था. समाजवादी पार्टी ने सत्ता में रहते हुए 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. लेकिन जनता ने इस गठबंधन को नकार दिया था. सपा को 44 और कांग्रेस को केवल 7 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था.