उत्तराखंड में 2027 का विधानसभा चुनाव भले ही अभी एक साल दूर हो, लेकिन अनुसूचित जाति (एससी) वोट बैंक को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है. राज्य की राजनीति में पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ रहा एससी वर्ग आज भी मैदान में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. दिलचस्प बात यह है कि जहां मैदान में कांग्रेस एससी सीटों पर मजबूत स्थिति में नजर आती है, वहीं पहाड़ी इलाकों में कांग्रेस इन सीटों पर लगातार संघर्ष करती दिख रही है.
एससी वोटरों का वितरण और सीटों की स्थिति
राज्य में अनुसूचित जाति मतदाताओं की हिस्सेदारी करीब 17 से 18 प्रतिशत के बीच मानी जाती है. कुल 13 एससी आरक्षित विधानसभा सीटों में से 10 सीटें पहाड़ी क्षेत्रों में हैं, और फिलहाल इन सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. इसके उलट हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर की तीन एससी आरक्षित सीटें—झबरेड़ा, भगवानपुर और बाजपुर—कांग्रेस के खाते में हैं. यही वे जिले हैं, जहां बीजेपी अपेक्षाकृत कमजोर मानी जाती है. ऐसे में सत्ता की हैट्रिक की कोशिश कर रही बीजेपी के लिए एक-एक सीट बेहद अहम हो जाती है.
राजनीतिक रणनीतियां और मतदाता झुकाव
बीजेपी के भीतर इस बात को लेकर मंथन तेज है कि एससी समाज तक दोबारा कैसे प्रभावी ढंग से पहुंच बनाई जाए. पार्टी नेतृत्व मानता है कि 2014 के बाद एससी वोट बैंक में आंशिक सेंध जरूर लगी, लेकिन यह पकड़ अभी स्थायी नहीं हो पाई है. खासकर कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए ‘संविधान बचाओ अभियान’ के बाद बीजेपी को आशंका है कि एससी मतदाता एक बार फिर कांग्रेस की ओर झुक सकते हैं. मैदानी इलाकों में आज भी एससी वोटर्स की बीजेपी से दूरी पार्टी के लिए चिंता का विषय बनी हुई है.
वहीं कांग्रेस का दावा है कि संविधान, आरक्षण और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे एससी समाज को फिर से मजबूती से पार्टी के साथ जोड़ेंगे. पार्टी नेताओं का मानना है कि मैदान की सीटों पर उनकी पकड़ बरकरार रहेगी और पहाड़ में भी हालात बदले जा सकते हैं.
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक पहाड़ में एससी सीटों पर कोर वोटर के अभाव में बीजेपी अब तक सवर्ण वोटों की गोलबंदी और बिखराव की रणनीति के जरिए जीत दर्ज करती आई है. यदि यही रणनीति मैदान में अपनाई गई तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. वजह यह कि मैदान में भीम आर्मी अपनी चुनावी जमीन तलाश रही है और बसपा पहले से ही सक्रिय है. ऐसे में वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा है. कुल मिलाकर, 2027 के विधानसभा चुनाव में एससी वोट बैंक की भूमिका निर्णायक रहने वाली है, और यही वजह है कि इस वर्ग को साधने की सियासत अभी से तेज हो चुकी है.