UP News: जब भी उत्तर प्रदेश में बिजनेस, कॉर्पोरेट ऑफिस या स्टार्टअप्स की बात होती थी तो सबकी जुबान पर सिर्फ एक ही नाम होता था नोएडा या ग्रेटर नोएडा, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह तस्वीर तेजी से बदली है. अब उत्तर प्रदेश की स्टार्टअप क्रांति राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) से निकलकर प्रदेश के टियर-2 (Tier-2) शहरों में अपनी जड़ें जमा रही है. लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर और मेरठ जैसे शहर अब सिर्फ ऐतिहासिक या धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये 'इनोवेशन के नए केंद्र' बनकर उभर रहे हैं.

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आंकड़े क्या कहते हैं?

ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश में स्टार्टअप्स की संख्या में भारी उछाल आया है. राज्य में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या 10,000 के पार जा चुकी है, और दिलचस्प बात यह है कि इनमें से लगभग 50% स्टार्टअप्स अब टियर-2 और टियर-3 शहरों से आ रहे हैं. यह बदलाव 'यूपी स्टार्टअप नीति 2020' के लागू होने के बाद और भी तेज हुआ है, जिसमें छोटे शहरों में इन्क्यूबेटर्स (Incubators) स्थापित करने पर विशेष जोर दिया गया है.

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कानपुर और लखनऊ: इनोवेशन के लीडर

आईआईटी (IIT) कानपुर की मौजूदगी के कारण कानपुर पहले से ही तकनीक का केंद्र था, लेकिन अब यहाँ फिनटेक, साइबर सिक्योरिटी और डिफेंस टेक्नोलॉजी से जुड़े स्टार्टअप्स तेजी से बढ़ रहे हैं. वहीं, राजधानी लखनऊ अब 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' (AI) और 'हेल्थटेक' (Healthtech) स्टार्टअप्स का गढ़ बनता जा रहा है. यहाँ के युवा उद्यमी स्थानीय समस्याओं का ग्लोबल समाधान ढूंढ रहे हैं.

वाराणसी और गोरखपुर में भी बदलाव की लहर

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एग्री-टेक (Agri-tech) और हैंडलूम से जुड़े स्टार्टअप्स ने रफ्तार पकड़ी है. यहां पारंपरिक 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' (ODOP) को ई-कॉमर्स और नई तकनीक के साथ जोड़कर नए बिजनेस मॉडल तैयार किए जा रहे हैं. गोरखपुर जैसे शहरों में भी युवा अब नौकरी मांगने के बजाय अपना उद्यम शुरू करने में रुचि दिखा रहे हैं.

टियर-2 शहर क्यों बन रहे हैं पहली पसंद?

विशेषज्ञों का मानना है कि स्टार्टअप्स के टियर-2 शहरों की तरफ शिफ्ट होने के कई बड़े कारण हैं:1.  कम लागत: मेट्रो शहरों के मुकाबले यहाँ ऑफिस का किराया और मैनपावर की लागत काफी कम है, जिससे स्टार्टअप्स का 'बर्न रेट' (खर्च) कम हो जाता है.2.  बेहतर कनेक्टिविटी: एक्सप्रेस-वे के जाल और नए एयरपोर्ट्स ने इन शहरों की कनेक्टिविटी को दिल्ली और मुंबई जैसा बना दिया है.3.  लोकल टैलेंट: पहले अच्छे टैलेंट को बड़े शहरों का रुख करना पड़ता था, लेकिन अब 'वर्क फ्रॉम होम' और स्थानीय अवसरों के कारण टैलेंट अपने शहरों में रुककर काम करना पसंद कर रहा है.

सरकार का सहयोग

राज्य सरकार ने इन शहरों में इनोवेशन हब बनाने के लिए कई यूनिवर्सिटीज के साथ हाथ मिलाया है. सीड कैपिटल (Seed Capital) की मदद और आसान नियमों के चलते युवाओं के लिए अपनी कंपनी रजिस्टर करना और चलाना आसान हो गया है.

विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश की 1 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने के सपने को पूरा करने में अब सिर्फ बड़े औद्योगिक शहर नहीं, बल्कि ये टियर-2 शहर ही असली 'ग्रोथ इंजन' साबित होंगे. यूपी अब बदल रहा है और इस बदलाव की कमान उसके छोटे शहरों के हाथ में है.