कन्नौज, एबीपी गंगा। प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल है। यहां पिछले कुछ सालों से लगातार समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है। जब-जब लोकसभा चुनाव हुए तब-तब ये सीट चर्चा में रही। खास बात है कि यहां हारने वाले कुछ उम्मीदवारों ने भी चर्चा बटोरी है। हार के बावजूद पार्टी की तरफ से इन नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी।
शीला दीक्षित को दिल्ली और केरल में मिली बड़ी जिम्मेदारी देश की राजधानी दिल्ली की लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने 1989 में कन्नौज लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। मैदान में उनके मुकाबले जनता दल के छोटे सिंह यादव थे। वीवीआईपी सीट पर हुए यह चुनाव एक तरफा रहा और शीला 53,833 वोट से चुनाव हार गई। कन्नौज में हार के बाद शीला दीक्षित को कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली बुला लिया और संगठन की जिम्मेदारी दी। शीला ने भी आलाकमान के भरोसे को गलत नहीं ठहराया। उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराई और खुद मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद शीला लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। 2014 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया गया। हालांकि, कुछ महीने बाद उन्होंने राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया।
टीएन चतुर्वेदी बने राज्यपाल साल 1991 में जनता पार्टी के उम्मीदवार छोटे सिंह यादव के मुकाबले भाजपा के टीएन चतुर्वेदी थे। छोटे सिंह ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की और चतुर्वेदी को करीब 60 हजार वोट से शिकस्त दी। हार के बावजूद भाजपा ने चतुर्वेदी को तोहफा दिया। तत्कालीन बाजपेयी सरकार ने उन्हें राज्यपाल बनाकर कर्नाटक भेजा।