UP News: बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और पहचान के लिए जाना जाता है. कई संस्कृतियों से लोग आज भी अनभिज्ञ हैं. जालौन में शरद पूर्णिमा पर अनोखी परंपरा निभाई जाती है. कुंवारी कन्याएं एक रक्षक के पैरों को पखारती हैं. बरसों पुरानी परंपरा का पालन पूरे बुंदेलखंड में बड़े ही धूमधाम से किया जाता. पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा पर टेसू और झिंझिया का अनोखा विवाह होता है. जालौन में बरसों पुरानी परंपरा आज भी निभाई जाती है. टेसू और झिंझिया का विवाह संपन्न होने के बाद बुंदेलखंड में शादियों की सहालग शुरू हो जाती है.


कुंवारी कन्याएं एक रक्षक के पूजती हैं पैर!


पौराणिक कथाओं के अनुसार भामासुर (सुआटा) नाम का एक राक्षस हुआ करता था. राक्षस कुंवारी कन्याओं को बंधक बनाकर अपनी पूजा कराता था. अपने पैर छुलवा कर उनसे जबरन शादी करता था. जिससे परेशान होकर कुंवारी कन्याओं ने भगवान कृष्ण की आराधना की. भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर कुंवारी कन्याओं को वरदान दिया कि राक्षस का अंत टेसू नाम का वीर योद्धा करेगा. बाद में भामासुर राक्षस ने राजकुमारी झिंझिया सहित कई कुंवारी कन्याओं को बंधक बना लिया और उनसे शादी करने लगा.


लेकिन भगवान के वरदान स्वरूप वीर योद्धा टेसू ने भामासुर नामक राक्षस का अंत कर सभी कन्याओं को मुक्त कराया और राजकुमारी झिझिया से विवाह किया. जब राक्षस का अंत हुआ तब शरद पूर्णिमा की रात थी. मरने से पहले राक्षस भामासुर ने भगवान की आराधना की. उसकी आराधना पर भगवान ने दर्शन देकर वर मांगने को कहा. राक्षस ने कुंवारी कन्याओं से पैर पूजने का वर मांगा. तब से शरद पूर्णिमा पर कुंवारी कन्याओं का सुआटा नामक राक्षस के पैर पूजने की परंपरा पड़ गई.


जालौन में शरद पूर्णिमा पर अनोखी परंपरा


पांव पूजने के बाद कन्याएं टेसू और झिझियां की शादी कराती हैं और टेसू जैसे वीर पति पाने की मनोकामना करती हैं. टेसू और झिझियां का विवाह कार्यक्रम पूरे एक महीने चलता है. इस दौरान कुंवारी लड़कियां मटके में छेद कर दीप जलाती हैं और घर-घर जाकर धन मांगती हैं.




बाद में शरद पूर्णिमा पर लड़कियां सुआटा राक्षस की गोबर से प्रतिमा भी बनाती हैं. जालौन में त्योहार को परम्परागत तरीके से मनाया जाता है. कार्यक्रम में गली मुहल्ले के सभी लोग बढ-चढ कर भाग लेते हैं. महिलाएं झिझिया की शादी पर मंगल गीत गाती हैं और झिझिया को सिर पर रखकर नाचती हैं. बाद में कुंवारी लड़कियां राक्षस की पूजा करती हैं. इसी तरह लड़के भी लकडी और कागज से टेसू का पुतला बनाते हैं और घर-घर जाकर चन्दा मांगते हैं.


शरद पूर्णिमा पर बारात लेकर झिंझिया के घर पहुंचते हैं. घर में धूमधाम से टेसू झिंझिया का विवाह सम्पन्न कराया जाता है. पूरा विवाह परम्परागत तरीके से सम्पन्न कराया जाता है. बाराती और जनाती पक्ष को भोजन भी कराया जाता है. भोजन के बाद लड़के जमकर आतिशबाजी करते हैं. इस तरह की अनोखी परंपरा को बुंदेलखंड में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है. 


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