रुड़की: उत्तराखंड के चमोली जिले में हुए जलप्रलय के बाद से ग्लेशियर पर शोध करने वाले वैज्ञानिक भी अब चिंतित दिखाई देने लगे हैं. आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों का कहना है कि 2013 में केदारनाथ में हुई त्रासदी और चमोली जिले में आई आपदा काफी अलग है.


आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिक प्रोफेसर अजंता गोस्वामी का कहना है हिमालयी क्षेत्रों में हजारों ग्लेशियर लेख है लेकिन इनके शोध करने के लिए भारत में एक भी ग्लेशियरलॉजी इंस्टीट्यूट नहीं है जो ग्लेशियर पर स्टडी कर सके. हालांकि अलग-अलग जगहों पर लोग अपने-अपने तरीके से स्टडी कर रहे है.


शोध के लिए एक इंस्टीट्यूट जरूरी


आईआईटी के वैज्ञानिकों का कहना हैं कि ग्लेशियरलॉजी कम्युनिटी का ये मानना है कि ग्लेशियरों के शोध के लिए एक इंस्टीट्यूट का खोलना बहुत जरूरी है ताकि समय-समय पर पूरे हिमालय की मॉनिटरिंग होती रहे. उन्होंने कहा वो सिर्फ दो-चार ग्लेशियरों को स्टडी कर पाते है और जिन ग्लेशियर के टूटने का खतरा रहता है उन तक वो नहीं पहुंच पाते हैं. इसलिए ऐसे हादसे हो रहे हैं.


बता दें कि सात फरवरी को चमोली जिले के जोशीमठ में ऋषिगंगा और धौली नदियों में ग्लेशियर टूटने से क्षेत्र में भारी तबाही मची है. वहीं आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों का कहना है कि सर्दियों का सीजन है. इस समय घाटी में पानी बहुत कम है. वहीं पहले यहां लैंडस्लाइड जगह खाली हो गई थी और वहीं बर्फ इकट्ठा हो गई थी, जिससे ये आपदा आई है.


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