Gorakhpur Ramazan 2024 News Today: रमजान के मुकद्दस महीने में रोजा रखने से परिवार में हंसी-खुशी और बरकत आती है. आमतौर पर रमजान मुस्लिमों का त्योहार है, लेकिन गोरखपुर में एक हिंदू व्यक्ति, जो बरसों से रोजा रखकर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहे हैं. पेशे से व्यापारी 63 वर्षीय लाल बाबू के पिता भी रोजा रखते रहे हैं. वे उसी परंपरा को पिछले 38 सालों से आगे बढ़ा रहे हैं. वे पूरी शिद्दत के साथ रोजा रखते हैं और मुस्लिम भाईयों के साथ इफ्तार भी करते हैं.  


गोरखपुर के जगन्नाथपुर में परिवार के साथ रहने वाले 63 वर्षीय लाल बाबू गुप्ता की घंटाघर से रायगंज की ओर जाने वाली रोड पर खिलौने और अन्य सामानों की दुकान है. उनके परिवार में पत्नी गीतांजलि के अलावा 22 साल का बेटा करण और दो बेटियां 16 साल की साक्षी और 14 साल की आराध्‍या है. वे हनुमान जी के परम भक्त हैं.


14 साल की उम्र से रख रहे रोजा? 


लाल बाबू का जन्‍म गोरखपुर के जगन्नाथपुर मोहल्ले में 1958 में हिन्दू परिवार में हुआ था, लेकिन हर साल रमजान के महीने में लाल बाबू रोजेदार बन जाते हैं. लाल बाबू के पिता गंगा प्रसाद भी रोजा रखते थे और उनके बाद लाल बाबू 14 साल की उम्र से उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. रोजा रखने के दौरान वे सेहरी से लेकर इफ्तार तक पूरी शिद्दत से करते हैं. शाम को वे अपने मुस्लिम दोस्तों के साथ पूरे परंपरागत ढंग से रोजा खोलते हैं.


मन्नत पूरी होने पर खुदा से किया वादा


इस उमस भरी गर्मी के रोजे में मुसलमान भाईयों के साथ लाल बाबू पूरी अकीदत के साथ रोजा रह रहे हैं. उनका रमजान और रोजे पर इतना विश्वास है कि विधिवत सूर्योदय पूर्व में सेहरी और सूर्योदय पश्चात इफ्तार के अतिरिक्त रोजे में दी जाने वाली सदका-फितरा का भी वे विधिवत पालन करते है. लाल बाबू के पिता भी 30 रोजे रखते थे. उन्‍होंने ये मन्नत मांगी थी कि यदि उनका कोई व्यवसाय हो जाए, तो वे अल्लाह की रजा के लिए रोजे रखेंगे. जुबान से निकली फरियाद खुदा ने कुबूल की और उन्हें घंटाघर पर एक अच्छी दुकान मिली, जिसमें उन्होंने खिलौनों का व्यवसाय शुरू किया.


''कारोबार खूब फला-फूला''


लाल बाबू ने कहा कि रब की रहमत से यह कारोबार खूब फला-फूला. आज इसी दुकान पर लाल बाबू और उनका बेटा दुकानदारी करते है. गंगा प्रसाद की मृत्यु के बाद रोजा रखने की इस परंपरा को उनके पुत्र लाल बाबू बखूबी अंजाम दे रहे हैं. लाल बाबू हनुमान जी के भी परम भक्त हैं और हर मंगलवार को वे व्रत रखते हैं. रोजे के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में इनको खूब पता है. इनके रोजे रखने की जानकारी मिलने के बाद इनके मुस्लिम पड़ोसी और सहयोगी भी काफी खुश हुए. वे इनका इसमें पूरा सहयोग करते हैं. इनके पड़ोसियों लाल बाबू को हिन्‍दू-मुस्लिम एकता की मिसाल मानते हैं. वे कहते हैं कि इनके जैसे लोगों की बदौलत ही देश में अमन कायम है.


लालबाबू को देखकर इनका बेटा करण भी रोजा रखने की ख्वाहिश रखता है. हर रोज शाम को अपनी दुकान और पड़ोसी मुस्लिम भाईयों की दुकान पर लाल बाबू इफ्तार करते हैं. वे बेहद सादगी के साथ 30 दिन का रोजा रखकर ईद के दिन मस्जिद में भी जाते हैं. लाल बाबू की यह आस्‍था लोगों को एक नई आशा और समाज में भाईचारे का पैगाम दे रही है.


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