उत्तर प्रदेश में आलू की बंपर पैदावार ने केंद्र और राज्य सरकार की टेंशन बढ़ा दी है. आलू की कीमत को लेकर यूपी में सियासी घमासान मचा हुआ है. किसान नेता राकेश टिकैत ने चेतावनी दी है कि अगर 20 मार्च तक समस्या का समाधान नहीं हुआ तो दिल्ली में महापंचायत बुलाई जाएगी और वहीं पर सरकार से हिसाब लिया जाएगा. आलू के दाम नहीं मिलने पर कई जिलों में किसानों ने प्रदर्शन भी किया है.


इसी बीच योगी सरकार ने आलू खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है. सरकार ने कहा है कि कोल्ड स्टोरेज में रखे आलू को 650 रुपए क्विंटल में सरकार खरीदेगी. सरकार ने कानपुर, कन्नौज समेत 7 जिलों में खरीद की व्यवस्था भी शुरू कर दी है. सरकार ने दावा किया है कि आलू को दूसरे देशों में भी निर्यात किया जाएगा.


यूपी सरकार ने कहा है कि नेपाल से आलू को लेकर समझौता हो चुका है. जल्द ही किसानों से आलू खरीद कर नेपाल भेजा जाएगा. मिडिल-ईस्ट के देशों में भी आलू को भेजा जाएगा. इधर, सपा का आरोप है कि सरकार आलू किसानों को नियमों में उलझा दी है. आलू की साइज को देखकर सरकार खरीद रही है, जो बेमानी है. 


आलू पर अभी बवाल क्यों मचा है?
आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश का सबसे अग्रणी राज्य है. यहां देश के कुल आलू का 35 फीसदी उत्पादन होता है. उत्तर प्रदेश के आगरा, कासगंज, फर्रुखाबाद, कानपुर, हरदोई, उन्नाव, एटा, इटावा, मैनपुरी, अलीगढ़, कन्नौज, फिरोजोबाद, बाराबंकी और मथुरा में आलू का उत्पादन सबसे अधिक होता है.


राज्य में आलू का उत्पादन 3 सीजन (रबी, खरीफ और खरीफ हिल्स) में होता है. रिपोर्ट के मुताबिक इस बार आलू का बंपर उत्पादन हुआ है और पैदावार ने अब तक के सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिए हैं. राज्य में इस साल 242 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा का उत्पादन हुआ है. 


शुरू में सरकार इसे मॉनिटरिंग करने में फेल्योर रही. मामला विधानसभा पहुंचा और अखिलेश यादव ने सरकार की घेराबंदी कर दी. इसके बाद सरकार डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में एक कमेटी बनी, जिसके सुझाव पर यूपी में आलू उत्पादन का मूल्य तय किया गया है.


किसानों का कहना है कि सरकार ने जो मूल्य निर्धारित किया है, वो लागत से काफी कम है. सरकार ने 650 रुपए प्रति क्विंटल आलू खरीदने का ऐलान किया है, जबकि किसानों का कहना है कि उत्पादन में 900-1000 रुपए प्रति क्विंटल का खर्च हुआ है. 


यूपी में आलू की कीमत पर जारी संग्राम सियासी दलों की खेल भी बिगाड़ सकती है. यूपी में आलू की खेती का अपना राजनीति गणित है. आइए इसे विस्तार से समझते हैं...


यूपी में आलू उत्पादन का गणित जानिए...
यूपी में आलू उत्पादन अक्टूबर से दिसंबर तक, जनवरी से अप्रैल और मई से सितंबर तक तीन सीजन में होता है. किसान आलू का उत्पादन कर उसे कोल्ड स्टोरेज में रख देता है. इसके बदले किसानों को कोल्ड स्टोरेज मालिक को किराया देना होता है. प्रति क्विंटल यह किराया 125 रुपया है.


किसान अपने अनुसार आलू को कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर बेचने का काम करता है. इससे किसानों को बढ़िया मुनाफा मिलता था और लागत भी निकल जाती थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं. 


सरकारी खरीद के ऐलान के बाद भी किसानों के आलू क्यों नहीं खरीदे जा रहे हैं? इस सवाल पर किसान नेता परमजीत सिंह कहते हैं- सरकारी एजेंसियों ने आलू को तीन ग्रेडिंग में बांट रखा है.
1. किर्री आलू जो 20 से 25 एमएम का होता है. 
2. गुल्ला आलू जो 25 एमएम से 30 एमएम होता है.
3. बड़ा आलू जो 35 से 50 एमएम का होता है.


बंपर पैदावार के बावजूद किसान परेशान क्यों, 4 वजह...


1. रूस समेत यूरोप ने आलू लेने से इनकार किया- मेरठ के सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि और प्रद्यौगिकी विभाग के प्रोफेसर रमेश सिंह पत्रकारों से कहते हैं- 2014 से ही यूपी के आलू का विश्व की सबसे बड़ी मंडियों में निर्यात नहीं हो पा रहा है. इसकी वजह रूस का एक दावा है. रूस ने भारत सरकार को पत्र लिखकर यूपी के आलू में ब्राउन रस्ट पुटेटो ट्यूमर मार्क होने की शिकायत की थी. 


सरकार ने इस शिकायत को अनदेखा कर दिया. रूस ने इसकी शिकायत 22 बार भारत सरकार से की. मगर, सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया. इसके बाद रूस समेत यूरोपीय देश ने यूपी के आलू लेने से इनकार कर दिया. इस वजह से यूपी का आलू विश्व के बाजारों में नहीं जा पा रहा है. सरकार अगर एक्टिव होती है, तो इसका निदान निकल सकता है.


2. सरकार आलू खरीद पर कन्फ्यूज- आलू उत्पादन के बाद सरकार ने इसको लेकर तुरंत कोई ठोस कदम नहीं उठाया. मामला जब विधानसभा में गूंजा तो सरकार ने आनन-फानन में आलू खरीदने की घोषणा कर दी. आलू खरीद के लिए काउंटर लगाए जा रहे हैं, लेकिन कई जिलों में किसानों की शिकायत है कि अधिकारी खरीद के नियमों में उलझा रहे हैं. 


किसानों का आरोप है कि काउंटर पर आलू के साइज को देखा जा रहा है, तब सरकारी कीमत मिल रही है. सरकारी कीमत को लेकर भी सवाल है. किसानों का कहना है कि सरकार ने आनन-फानन में आलू की कीमत तय कर दी है. सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव ने कहा है कि आलू का मूल्य 1500 रुपए किया जाए.


3. कोल्ड स्टोरेज की कमी- एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश मेंआलू संरक्षण के लिए 8800 के आसपास कोल्ड स्टोरेज बनाया गया है. उत्तर प्रदेश में कोल्ड स्टोरेज की संख्या 2000 के आसपास है. 


उत्पादन की रफ्तार जिस तरह से बढ़ रही है, उस स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की संख्या नहीं बढ़ रही. कोल्ड स्टोरेज की संख्या नहीं बढ़ने की वजह से किसान आलू को सुरक्षित तरीके से स्टोर नहीं कर पा रहे हैं. परेशानी की एक वजह यह भी है.


4. जलवायु परिवर्तन और गर्मी का बढ़ना- पहले किसान आलू को मई और जून तक संरक्षित करके रखते थे, लेकिन अब गर्मी बढ़ने की वजह से नमी आ जाती है और आलू खराब हो जाता है. 


फरवरी और मार्च में ही पुटेटो बेल्ट के अधिकांश जिले में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच गया है.  फरवरी में ही तापमान बढ़ने की मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है. 


2001 में हो गई थी संसद ठप्प पर हालात अब भी नहीं बदले
आलू की कीमत को लेकर पहले भी सियासी युद्ध छिड़ चुका है. 2001 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा सांसदों ने आलू की कीमत को लेकर संसद ठप्प कर दिया था. 22 फरवरी 2001 को संसद में प्रधानमंत्री के भाषण के बाद सपा, कांग्रेस और राजद के सांसदों ने आलू खरीद का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था.


उस वक्त सरकार ने संसद में कहा था कि कमेटी बनाकर आलू किसानों का स्थाई निदान निकाला जाएगा. संसद में सरकार के इस बयान का 22 साल पूरा हो चुका है. इस दौरान कई सरकारें बदली. कृषि मंत्री बदला, लेकिन समस्या का हल नहीं निकल पाया.


2014 में बीजेपी के तत्कालीन स्टार प्रचार नरेंद्र मोदी ने आगरा की एक रैली में आलू किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर कीमत देने का ऐलान किया था. आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक फसल की लागत का पचास प्रतिशत ज्यादा दाम मिले. 


आलू खरीद पर राजनीति तेज, 2 बयान...


1. दिनेश प्रताप सिंह, मंत्री- सपा सरकार में आलू किसानों की समस्या का निदान नहीं किया गया. इसलिए आलू किसानों ने उनकी सरकार बदली. योगी आदित्यनाथ की सरकार में आलू किसानों का ध्यान रखा गया है. यही वजह है कि आलू किसानों ने सरकार को दोबारा अपना समर्थन दिया.


2. अखिलेश यादव, नेता प्रतिपक्ष- सरकार आलू खरीदने का वादा कर रही है, लेकिन यह झूठ है. भाजपा सरकार में यूपी के आलू उत्पादक किसानों की मुख्य 2 समस्याएं है. पहला आलू की लागत का लगातार बढ़ते जाना और दूसरा कम दाम मिलने से लागत निकालना भी मुश्किल. यूपी में अबकी बार, आलू बदलेगा सरकार. 


आलू बेल्ट का राजनीतिक समीकरण
यूपी में आलू का उत्पादन जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे सरकार भी टेंशन में आ जाती है. इसकी वजह आलू बेल्ट का राजनीतिक गणित है. यूपी में आलू बेल्ट दक्षिण-पश्चिम के 14 जिलों को मिलाकर बना है. सरकार भले किसानों के मुद्दे का समाधान न करे, लेकिन उसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है.


इन जिलों में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं, जो किसी भी दल के सियासी समीकरण के लिए महत्वपूर्ण है. 2019 में 14 में से 13 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. बीजेपी के लिए यह अब तक की रिकॉर्ड जीत है. 


2014 में सपा को 14 में से 3 सीटों पर जीत मिली थी. शिवपाल यादव की सपा में वापसी के बाद अखिलेश की नजर पुटेटो बेल्ट पर ही है. मुलायम के जमाने में पुटेटो बेल्ट की 70-80 फीसदी सीटें सपा के पास होती थी. अखिलेश की कोशिश उन सीटों की हासिल करने की भी है.


पुटेटो बेल्ट की अधिकांश सीटों पर आलू किसान और उनका परिवार ही जीत और हार तय करती है. इसलिए सरकार भी न्यूनतम समर्थन मूल्य के जरिए इन किसानों को साधने की कोशिश में जुटी है. 


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