Mukhtar Ansari News: गैंगस्टर से राजनेता बने मुख्तार अंसारी को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया है. लेकिन उसकी मौत के बाद के बाद भी उसकी दबंगई के कई किस्से लोगों की जुबान पर है. इनमें से एक मामला इंश्योरेंस कंपनियों को चूना लगाने का है. वरिष्ठ पत्रकार मनीष मिश्रा ने एबीपी लाइव से बातचीत में ये पूरा कहानी बताई. 


मनीष मिश्रा ने बताया कि 2002-03 में मुख्तार अंसारी का काफिला लखनऊ से गाजीपुर की तरफ जा रहा था और कृष्णानंद राय का काफिला गाजीपुर से लखनऊ आ रहा था तभी लखनऊ के कैंट इलाके में कटरी के पुल के पास दोनों का आमना-सामना हो गया और अचानक गोलीबारी शुरू हो गई. पहली फायरिंग कृष्णानंद राय की तरफ से हुई. इस घटना के वक्त मुख्तार अपनी पत्नी के साथ था. इसके बाद दोनों तरफ से गोलीबारी हुई. इसमें एक गोली मुख्तार की सफारी गाड़ी की छत को भेदते हुए अंदर घुस गई थी. 


ऐसे लगाता था इंश्योरेंस कंपनी को चूना
मनीष मिश्रा कहते हैं कि गोली छत में लगने से गाड़ी कोई खास डैमेज नहीं हुआ था. गाड़ी में चलने में कोई दिक्कत नहीं थी, गाड़ी में कोई और नुकसान भी नहीं हुआ था और इसकी भरपाई गाड़ी को डेंट पेंट करके की जा सकती थी, जिसमें कुछ एक हजार रुपये की लागत आती लेकिन, मुख्तार अंसारी का रुतबा इतना था कि उसने इंश्योरेंस कंपनी को गाड़ी भेजी और गाड़ी को टोटल लॉस में दिखाने की बात कही.


जिस टाटा सफारी से मुख्तार चलता था वो 7 से 7.50 लाख की उस समय आती थी. उसका दबाव इतना था कि इंश्योरेंस कंपनी उस गाड़ी का टोटल लॉस देने से मना नहीं कर पाई और डैमेज में टोटल लॉस दिखाते हुए मुख्तार को कंपनी ने पूरा भुगतान किया. इसके बाद नियम मुताबिक पुरानी गाड़ी इंश्योरेंस कंपनी की हो जाती है और वो उस गाड़ी का ऑक्शन करके अपना पैसा जब वसूलने की कोशिश करती है, तो मुख्तार कहता है कि अब इस गाड़ी का ऑक्शन सिर्फ पेपर में होगा और बाद में औने-पौने दाम में उसने वो गाड़ी फिर से ले ली. 


कई बार इसी तरह वसूली रकम
इस तरह मुख़्तार के पास एक गाड़ी के दाम में दो-दो गाड़ियां हो गईं. ऐसा ही एक और क़िस्सा मुख्तार की पत्नी BH 786 नंबर की गाड़ी का भी है. मुख्तार की पत्नी इसी जिप्सी से चलती थी, ये गाड़ी रमेश कुमार के नाम पर थी पर इसका पता मुख्तार का विधायक निवास B 107 दारुल सफा था. इस गाड़ी में एक बार कुछ दिक्कत आई तो ये गाड़ी लखनऊ के फैजाबाद रोड स्थित वर्कशॉप भेजी गई. 


कंपनी की तरफ गाड़ी बनाने का क्लेम बनाकर भेजा गया. ये एस्टीमेट 90 हजार का था. इसी दौरान मुख्तार के आदमी शाहिद ने इंश्योरेंस कंपनी से कहा कि ये क्लेम 90 हजार नहीं, टोटल लॉस का होगा. जब कंपनी ने कहा कि वो ऐसा नहीं कर सकते, इसके लिए रिजनल ऑफिस भेजना होगा तो शाहिद ने कहा, जहां भेजना हो भेजो पर उसे पूरा क्लेम चाहिए. 


बात रीजनल ऑफिस तक गई तो मुख्तार अंसारी का एक पत्र रीजनल ऑफिस में जाता है जिस पर लिखा था कि यह गाड़ी हमारे परिवार की है और उसका टोटल क्लेम हमें चाहिए. इस पत्र की बात जब मीडिया में बाहर आई तो अगले ही दिन शाहिद ने मीडिया में पत्र आने के भय से उस पत्र को रिजिनल ऑफिस से वापस ले लिया. हालांकि इसके बावजूद उस गाड़ी का टोटल लॉस क्लेम हुआ और मिला भी.


वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि यह सिलसिला एक बार का नहीं था, कई बार ऐसा हुआ जब छोटी से छोटी किसी खराबी पर मुख्तार अंसारी अपनी गाड़ियों का टोटल लॉस लेता था और फिर एक गाड़ी से दो-से तीन गाड़ियां लेता रहता था. हालांकि ऐसी कहानी अकेले मुख्तार की नहीं है, मुख्तार सरीखे अन्य माफिया भी इस तरीके का काम करते रहे हैं.


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