उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का बख्शी तालाब इन दिनों एक अनोखी मिसाल पेश कर रहा है. यहाँ पिछले 53 वर्षों से आयोजित हो रही रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाईचारे का जीता-जागता प्रतीक बन चुकी है. इस वर्ष की रामलीला में भी मुस्लिम समाज के युवाओं ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाकर समाज को यह संदेश दिया कि धर्म से ऊपर इंसानियत और एकता है.
राम का किरदार निभाने वाले साहिल खान ने बड़ा संदेश दिया. उन्होंने कहा, हर इंसान स्वतंत्र है. कोई चाहे तो ‘आई लव मुहम्मद’ बोले, कोई चाहे तो ‘आई लव राम’. सबसे जरूरी है कि हम एक-दूसरे की आस्था और भावनाओं का सम्मान करें. यही हमारी असली ताकत है.
इस रामलीला में मोहम्मद कैस लक्ष्मण, फरहान अली सीता, और सलमान खान रावण बने. वहीं छोटे राम की भूमिका अब्दुल खान, और छोटे लक्ष्मण की भूमिका कृष्णा प्रजापति ने निभाई. मंच पर हनुमान बने सोनू वर्मा, अंगद बने नीरज गुप्ता, बाली बने अभिषेक, सुग्रीव बने विमलेश वर्मा, जबकि अहिरावण की भूमिका रामस्वरूप प्रजापति ने निभाई. मंथरा बने ठाकुर प्रसाद, सुपर्णखा बने विनीत गौतम, अक्षय कुमार बने अजय मौर्य और परशुराम का अभिनय सतीश मौर्य ने किया. इस रामलीला से पिछले 49 सालों से साबिर खान जुड़े हैं उन्होंने भी गंगा जमुनी सन्देश दिया.
पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था अवॉर्ड
ये रामलीला अपने आप मे बेहद खास है क्योंकि इसे 2000 में उस वक्त के मौजूदा पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने इस रामलीला को राष्ट्रीय एकता अवॉर्ड भी दिया था. लोग बताते हैं कि आज से कुछ साल पहले जब रमजान और दशहरा एक साथ पड़े थे, तब मंचन बीच में रोककर रोजेदारों के लिए इफ्तार का इंतज़ाम किया गया था. नमाज़ के बाद मंचन फिर शुरू हुआ और पूरा माहौल भाईचारे और उत्साह से भर गया.
सामाजिक एकता का मंच बन चुकी है बख्शी तालाब की रामलीला
रामलीला के दौरान मेले जैसी रौनक रहती है. तीन दिन तक हर जाति और धर्म के लोग एक साथ बैठकर रामलीला का आनंद लेते हैं, बच्चों के साथ झूले झूलते हैं और मेल-जोल बढ़ाते हैं. यही वजह है कि बख्शी तालाब की रामलीला केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का मंच बन चुकी है.