देवभूमि उत्तराखंड में आज सावन के दूसरे सोमवार को भारी बारिश के बीच शिव मंदिरों में भक्तों का सैलाब देखने को मिला है, सुबह से ही तमाम शिवभक्त जल अभिषेक करने शिव मंदिर पहुंच रहे हैं. सभी शिवालय भगवान भोलेनाथ के जयकारों से गूंज रहे हैं.

भोलेनाथ के भक्तों के लिए सावन का महीना बेहद खास होता है, उत्तराखंड में महादेव के कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां शिव भक्त जलाभिषेक के लिए पहुंचे. 

ब्रह्मपुत्र दक्ष की प्राचीन राजधानी कनखल वह पुण्य भूमि है, जिस पर दक्ष के विराट यज्ञ का आयोजन किया गया था. मां भगवती सती ने अपमान की ज्वाला में जलकर अपनी प्राणों की आहुति दी थी. यज्ञ के समय इस भूमि पर विष्णु, ब्रह्मा 84 हजार ऋषियों और असंख्य देवताओं के चरण पड़े थे. 

सावन महीने में दक्षेश्वर बनकर आते हैं महादेवभगवान शिव दक्ष पुत्री सती से ब्याह करने यक्ष गंधर्व और किन्नरों के साथ आए थे. भगवान शिव अपना वचन निभाने सावन के महीने में दक्षेश्वर बनकर यहां आते हैं. यह वही भूमि है जिसने देश की 52 शक्तिपीठों का निर्माण किया.

इसी भूमि पर ऋषियों ने स्वर्ग से इधर पहली बार आदरणीय मंथन से यज्ञग्नि उत्पन्न की थी. भगवती के माया नगरी कनखल का शिवत्व केंद्र आकाश में है और महामाया का शक्ति पूजन पाताल में इन्हीं शक्तियों की डोर ब्रह्मांड को बांधे हुए हैं. 

इसी पूर्ण भूमि पर शिव दक्ष सुता सती को बिहाने तो आए थे राजा दक्ष के जीवित रहते फिर दोबारा नहीं आए इसी पावन भूमि पर ब्रह्मा विष्णु इंद्र नारद आदि देवताओं कैसा 84000 ने आणि मंथन से यज्ञाग्नि उत्पन्न की थी, वहीं अरज दक्ष को अपना दिया हुआ वचन निभाने के लिए भगवान शिव हर सोमवार यहां आते है.

यहीं हुई थी 52 शक्तिपीठों की उत्पत्तिकहा जाता है कि मायापुरी के कनखल में स्थित शीतला मंदिर में माता सती का जन्म हुआ था, यज्ञ कुंड में होने के बावजूद उनकी पार्थिव है. शिव गण वीरभद्र ने जिस स्थान पर रखी थी उसे आज के समय में माया देवी कहते हैं. कहा जाता है यहीं से भारत के 52 शक्तिपीठों का जन्म हुआ था.

शीतला मंदिर सटीकुंड माया देवी चंडी देवी और मनसा देवी मंदिर को मिलकर शक्ति के पांच ज्योतिर्द स्थल बनते हैं. इनका केंद्र आदि पीठ माया देवी के गर्भ स्थल अर्थात पटल को माना जाता है, जिसका केंद्र आकाश है. यह दक्षेश्वर, बिलेश्वर, नीलकेश्वर, वीरभद्र और नीलकंठ पांच ज्योतिरुष स्थलों का केंद्र नीलेश्वर और नीलकंठ से और नीलकंठ से जुड़े ऊंचे कैलाश अर्थात आकाश पर है.

सावन में भक्तों पर बरसती है कृपाशिव और शक्ति के ये दसों ज्योतिर केंद्र सावन के महीने में कांवड़ भरने आए शिव भक्तों पर दसों स्थलों से कृपा वृष्टि करते है. दसों स्थलों की कृपा होने पर ही शिवभक्त कांवड़ियों की गंगा यात्रा अपने अपने अभीष्ठ शिवालयों तक सकुशल संपन्न हो पाती है.

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