Khalang Forest News: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में नाला पानी के पास खलांग में 2 हजार पेड़ो को काटे जाने की बात सामने आने के बाद से स्थानीय लोग प्रदर्शन कर रहे है. लगातार इस बात का विरोध हो रहा है कि इन पेड़ो को न कटा जाए. इसको लेकर लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है.इस अभियान को धीरे-धीरे जनसमर्थन मिलने लगा है. इन लोगों के साथ अब कई राजनीतिक,सामाजिक, जन संगठन से जुड़े लोग और क्षेत्रीय निवासी भी जुटने लगे है.


दरअसल इस क्षेत्र में एक बड़ा जलाशय बनाने की बात कही जा रही है, जिसके लिए 2000 पेड़ काटे जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. फिलहाल वन विभाग द्वारा पेड़ों पर लाल निशान लगाए गए है और इस योजना के लिए टेंडर प्रक्रिया भी शुरू की जा चुकी है.  दरअसल, इस क्षेत्र में जिन पेड़ों को काटा जाना है उन पर वन विभाग के कर्मचारी लाल निशान लगा चुके हैं. वहीं पेड़ों पर नंबरिंग होने के बाद स्थानीय लोगों का विरोध शुरू हो गया है.यहां के स्थानीय लोगों ने खलंगा में पर्यावरण बचाने के लिए एक विशेष अभियान छेड़ दिया है. 


क्या बोली वन संरक्षक कहकशां नसीम
यमुना वृत्त वन संरक्षक कहकशां नसीम से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि खलंगा में वॉटर ट्रीटमेंट पर रिजर्व वायर के लिए योजना को फिलहाल सैद्धांतिक मंजूरी नहीं मिली है. साल 2020 में ही इस पर प्रपोजल आ गया था. लेकिन तब से अब तक फिलहाल औपचारिकताओं को ही पूरा किया जा रहा है. उन्होंने आगे बताया कि लोगों का यह विरोध पेड़ों पर नंबरिंग होने के बाद शुरू हुआ है. हालांकि अभी यह योजना यहां पर आएगी.  इस पर कोई भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. 


2 हजार पेड़ों पर की गई नंबरिंग
 वन विभाग इस योजना को किसी दूसरी जगह पर शुरू किए जाने के लिए कुछ और क्षेत्र का विकल्प भी दे चुका है. हालांकि,पेयजल विभाग तकनीकी कारणों से इसी जगह को योजना के लिए सबसे बेहतर मान रहा है.इस योजना के तहत 2000 पेड़ों पर नंबरिंग की गई है. लेकिन अभी इस योजना की सैद्धांतिक मंजूरी भी नहीं हुई है तो अभी योजना को लेकर स्थिति बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं है. इस योजना पर यहां करीब 5 से 6 हेक्टेयर वन क्षेत्र लगा है. लेकिन यदि योजना यहां शुरू भी होती है तो यहां 2000 पेड़ काटे जाएंगे यह तय नहीं है,


खलंग का अपना एक बड़ा इतिहास 
आपको बता दे की देहरादून में खलांग का अपना एक ऐतिहासिक दर्जा हैट यहां इसको गोरखाओं के शोर्य के लिए जाना जाता है. इसका अपना एक बड़ा इतिहास है. खलंगा नाम भारत के इतिहास में भी दर्ज है. ये क्षेत्र अंग्रेजों की शर्मनाक हार के लिए याद किया जाता है.खलंग मैं 1814 में ब्रिटिश आर्मी और गोरखाओं के बीच एक भीषण युद्ध हुआ था, उस समय के अत्याधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश हुकूमत के हजारों सैनिकों ने गोरखाओं पर हमला कर दिया था. इस क्षेत्र में शरण लिए हुए गोरखा अचानक हुए इस आक्रमण से हैरान रह गए थे.


1815 में हुई थी गोरखा रेजीमेंट की स्थापना
ऐसा बताया जाता है कि उस समय केवल 600 गोरखा सैनिक की यहां मौजूद थे. बावजूद इसके गोरखाई ने ऐसा शौर्य दिखाया कि ब्रिटिश सैनिक युद्ध भूमि छोड़ने कर भाग खड़े हुए. उस दौरान गोरखा सैनिकों के द्वारा करीब 781 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया था. सैनिक उस समय तलवार और खुखरी लेकर अंग्रेज सैनिकों पर चढ़ बैठे थे. बड़ी बात यह है कि खुद अंग्रेज भी इस लड़ाई के बाद गोरखाओं के शौर्य की गाथा गाने लगे थे और उन्होंने गोरखा सैनिकों की बहादुरी को देखकर इसके ठीक 1 साल बाद 1815 में गोरखा रेजीमेंट की स्थापना की थी.


युवाओं ने खुद को बनाया वन प्रहरी
 यहां पर लड़ाई गोरखाओं ने वीर बलभद्र के नेतृत्व में लड़ी थी और इस लड़ाई की ऐतिहासिक जीत के बाद खलंगा में खलंगा वॉर मेमोरियल की स्थापना की गई थी.इसी ऐतिहासिक जंगल को बचाने के लिए आज स्थानीय लोग लड़ रहे है.यहां लोगो ने इन सभी पेड़ो पर लाल धागे या कहे कलावा बांध दिया है. महिलाओं ने इन पेड़ो को अपना भाई बना लिया है. जबकि युवाओं ने इन पेड़ो के लिए खुद को वन प्रहरी बना लिया है. अब इस इलाके में स्थानीय लोग लगातार पहरा दे रहे है. ताकि वन विभाग यहां पर अचानक से आकर के पेड़ों को न काट दे.


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