Land subsidence in Uttarakhand: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ शहर में भू धंसाव की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है. रूड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) के इंजीनियरों ने जोशीमठ की 2,364 इमारतों का सर्वेक्षण किया, जिसमें 37 प्रतिशत इमारतों को 'उपयोग योग्य', 20 प्रतिशत को 'अप्रयोग योग्य' और एक प्रतिशत को 'तोड़े जाने योग्य' घोषित किया गया है.

भू धंसाव की स्थिति को देखते हुए कम से कम 23 इमारतों को गिराने की सिफारिश की गई है, जबकि 470 से अधिक इमारतों को असुरक्षित माना गया है. यह सर्वेक्षण जनवरी 2023 में अचानक जमीन में आई दरारों और पानी के तेज बहाव के बाद शुरू किया गया था, जिसने कई घरों, होटलों और सड़कों को नुकसान पहुंचाया.

CBRI के सर्वेक्षण में कई कमियां सामने आईजोशीमठ अलकनंदा नदी के पास गढ़वाल हिमालय में स्थित है और यह बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब, औली और फूलों की घाटी जैसे धार्मिक और पर्यटन स्थलों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है. CBRI टीम के अनुसार, अधिकांश इमारतें निर्माण के राष्ट्रीय कोड (National Building Code of India, 2016) का पालन नहीं करतीं. 99 प्रतिशत इमारतें "गैर-इंजीनियर्ड" हैं, जिनका निर्माण तकनीकी दिशा-निर्देशों के अनुरूप नहीं हुआ है.

सर्वेक्षण में कई कमियां सामने आई हैं, जैसे कच्ची या अधपकी ईंटों का उपयोग, भारी लकड़ी की छतों और मोटी दीवारों के बीच कमजोर जोड़, बिना रीनफोर्समेंट के ऊंची इमारतें, घटिया निर्माण गुणवत्ता, छोटे कंक्रीट कॉलम और बिना पर्याप्त सपोर्ट की दीवारें. CBRI के प्रमुख वैज्ञानिक अजय चौरसिया ने बताया कि भवनों के आसपास जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं होने से जमीन धंस सकती है, जिससे इमारत की स्थिरता पर प्रभाव पड़ता है.

भू धंसाव को लेकर भूवैज्ञानिक ने क्या बोला?CBRI ने जोशीमठ की इमारतों की एक "भवन संवेदनशीलता मानचित्र (building vulnerability map) तैयार किया है, जिसे प्रशासनिक और नीतिगत निर्णयों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. टीम का कहना है कि इस नक्शे को भूवैज्ञानिक और जल भूवैज्ञानिक मानचित्रों के साथ जोड़ने से एक समग्र जोखिम मानचित्र तैयार किया जा सकता है, जो पूरे क्षेत्र की व्यापक सुरक्षा योजना के लिए आवश्यक है.

जोशीमठ में जमीन धंसने को लेकर चिंताएं कोई नई नहीं हैं. 1976 में एक वैज्ञानिक समिति ने इस क्षेत्र को पुराने भूस्खलन क्षेत्र में स्थित बताया था और भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी. 2010 में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के भूवैज्ञानिक पियूष रौतेला ने चेतावनी दी थी कि जोशीमठ में निरंतर जमीन धंसने के संकेत मिल रहे हैं, और अगर चट्टानों के नीचे से अचानक पानी निकाला गया, तो स्थिति और बिगड़ सकती है.

जोशीमठ के पुनर्विकास के लिए 1700 करोड़ रुपये किए मंजूरजनवरी 2023 की दरारों के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने विशेषज्ञों की बैठक बुलाई और जोशीमठ के लिए एक जोखिम-संवेदनशील योजना बनाने की आवश्यकता जताई. जोशी मठ को लेकर राज्य सरकार भी चिंतित है. लगातार जोशीमठ में लोगों के विस्थापन और उनकी सुरक्षा को लेकर काम किया जा रहा है. खुद सीएम धामी इस विषय को गंभीरता से देख रहे हैं. चारधाम यात्रा मार्ग होने के चलते भी यह विषय काफी गंभीर है. इसलिए इसको और भी संवेदनशील दृष्टि देखा जा रहा है. 

वहीं केंद्र सरकार ने जोशीमठ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करते हुए पुनर्विकास के लिए 1700 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं. जिससे जोशीमठ क्षेत्र में नए घर, सड़कें, जल निकासी और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण होगा. सरकार का कहना है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किए जा रहे निर्माण कार्य जोशीमठ को सुरक्षित और स्थिर भविष्य की ओर ले जाएंगे. यह परियोजना आपदा के बाद पुनर्निर्माण का एक आदर्श मॉडल बन सकती है.

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