UP Nagar Nikay Chunav 2023: यूपी में सपा-आरएलडी ने विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा, लेकिन निकाय चुनाव में दोनों के रास्ते फिलहाल अलग अलग नजर आ रहें हैं. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) निकाय चुनाव में प्रचार नहीं कर रहें हैं तो पश्चिम यूपी में जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) भी उन्ही की राह पर हैं. अब जयंत के सामने ऐसी क्या मजबूरी है जो वो अखिलेश की राह पर चल रहें हैं. आरएलडी के नेता और कार्यकर्ता निराश हैं कि ऐसे कैसे 2024 में बात बनेगी, जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ पश्चिमी यूपी के सहारनपुर से शंखनाद कर चुके हैं.


जिस निकाय चुनाव को 2024 का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है आखिर इस टेस्ट को देने में जयंत और अखिलेश को इंट्रेस्ट क्यों नहीं हैं. जयंत और अखिलेश की जिस जोड़ी ने पश्चिमी यूपी की हवा कुछ बदली वो जोड़ी फिलहाल पश्चिमी यूपी से दूरी बनाए है. अब अखिलेश यादव ने चुनाव प्रचार न करने का फैसला किया तो जयंत चौधरी भी अखिलेश यादव की राह पर निकल पड़े. अब पश्चिमी यूपी के बड़े नेताओं में शुमार जयंत चौधरी की ऐसी क्या मजबूरी है जो उन्हें भी अखिलेश की राह पर आगे बढ़ना पड़ रहा है. 


पश्चिम में निकाय की लड़ाई, किस मोड़ पर आई?
ऐसे हालातों में यही कहा जा रहा है कि गठबंधन ने बीजेपी के लिए खुला मैदान छोड़ दिया, क्योंकि सीएम योगी पश्चिमी यूपी के सहारनपुर से चुनावी शंखनाद करके संदेश दे चुके हैं कि पश्चिमी यूपी उनके लिए कितना अहम है. अब सपा प्रत्याशी की बात हो या आरएलडी की सभी बड़े नेताओं के ना आने से मायूस हैं. मेरठ नगर निगम महापौर सीट पर सपा गठबंधन प्रत्याशी सीमा प्रधान और उनके पति विधायक अतुल प्रधान पूरी ताकत झोंक रहें हैं, लेकिन यदि अखिलेश और जयंत मेरठ आ जाते तो हवा बहुत कुछ बदल जाती, सीमा प्रधान से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सीएम और पीएम ऐसे चुनाव में भी आ रहें हैं तो प्रधानी में आएं, हमारे नेताओं को हम पर भरोसा है.


पश्चिमी यूपी कितना महत्वपूर्ण हैं पहले आपको ये बताते हैं


- पश्चिम में चार नगर निगम आते हैं, जिनमें मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर और मुरादाबाद शामिल हैं.


- 58 नगरपालिका और 88 नगर पंचायत इस पश्चिम में आती हैं.


- लोकसभा की 14 महत्वपूर्ण सीट भी इसी पश्चिम से आती हैं.


अब जब पश्चिमी यूपी इतना महत्वपूर्ण है तो भी जयंत चौधरी ने इससे दूरी क्यों बना रखी है. जबकि मिशन 2024 में निकाय चुनावों के बीच से होकर ही दिल्ली का रास्ता जाएगा. इस बारे में आरएलडी नेताओं का कहना है कि जरूरत पड़ेगी तो जयंत चौधरी को बुला लेंगे लेकिन कब इस बात का जवाब नहीं है.


जयंत और अखिलेश की पश्चिमी यूपी से दूरी और निकाय चुनाव में प्रचार ना करने की मजबूरी पर बीजेपी के नेता फायर नजर आ रहे हैं. बीजेपी के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम ने गठबंधन को घेरा और कह डाला कि अखिलेश, जयंत को डिक्टेट करके काम करा रहें हैं जो ज्यादा दिन नहीं चलेगा और गठबंधन टूट जाएगा. उन्होंने अखिलेश यादव को माफियाओं का नेता तक बता डाला कि पश्चिम में सबका सूपड़ा साफ है यहां आकर क्या करेंगे.


हालांकि सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व एमएलसी राकेश यादव का कहना है कि गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ रहा है बीजेपी से मुकाबला ही नहीं है, जबकि बीजेपी नेता संगीत सोम में बयान पर उन्होंने भी पलटवार कर दिया कि बीजेपी में भी माफिया भरे पड़े हैं.


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सपा और आरएलडी प्रत्याशी आमने सामने हैं
पश्चिमी यूपी के तमाम जिलों में सपा और आरएलडी प्रत्याशी आमने सामने हैं. अब जयंत और अखिलेश के सामने मजबूरी ये भी है कि आखिर किसके लिए वोट मांगे, लेकिन गठबंधन के दोनों ही सहयोगियों का यहां न आना कई सवाल जरूर खड़े कर रहा है.


जयंत और अखिलेश यादव ने मिलकर जिस पश्चिम की हवा बदली उसी पश्चिम में दोनों नेताओं का बदला रुख कई सवाल खड़े कर रहा है, सीएम योगी ने सहारनपुर में शंखनाद करके ये बता दिया था कि निकाय चुनाव बीजेपी के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अखिलेश की दूरी और उसके पीछे जयंत की मजबूरी कार्यकर्ताओं को अखर जरूर रही है, अब सवाल उठ रहा है कि जिस निकाय से 2024 की तैयारी आसानी से की जा सकती है, उसी को मुश्किल क्यों बनाया जा रहा है.