Birju Maharaj: कथक सम्राट पद्मविभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज का 83 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके जाने के साथ ही ऐसा लगता है जैसे एटा जिले के जलेसर के घुंघरुओं की खनखनाहट भी हमेशा के लिए खामोश हो गई. जलेसर के घुंघरुओं से पंडित बिरजू महाराज का एक अलग ही रिश्ता था. वो हमेशा यहीं से अपने लिए घुंघरू मंगाया करते थे. 


बिरजू महाराज का जलेसर से था खास रिश्ता


पंडित बिरजू महाराज का कथक डांस सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी उनके मुरीद थे. पैरों में घुंघरू बांधकर जब वो स्टेज पर परफॉर्म किया करते थे, तो उनके घुंघरुओं की खनखनाट से पूरा समां बंध जाया करता था. उनके साथ जलेसर के घुंघुरुओं के भी पूरी दुनिया के पटल पर पहचान मिली थी. यहां के घुंघरुओं से उन्हें बेहद लगाव था. बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि जलेसर में बने घुंघरू ही पंडित बिरजू महाराज की पहली पसंद हुआ करते थे. जलेसर के निर्माता और एक्सपोर्टर आशीष गुप्ता बताते हैं कि पंडित बिरजू महाराज का जलेसर से और यहां के घुंघरूओं से बहुत बड़ा लगाव था. उनका कभी भी कोई प्रोग्राम होता था तो वे जलेसर से घुँघरू मंगाते थे. 


देश-दुनिया में मशहूर हैं जलेसर के घुंघरू


एटा जनपद के जलेसर को घुंघरू नगरी भी कहा जाता है. भारत समेत कनाडा, यूएस, जर्मनी, इंग्लैंड जैसे तमाम देशों में यहां के ही घुंघरुओं को सप्लाई किया जाता है. इनके अलावा दक्षिण के मंदिरों, मठों और नृत्य अकादमियों में इनकी काफी मांग रहती है. जानकर बताते हैं कि यहां बने घुंघरुओं की खनक सबसे अलग और देर तक गूंजने वाली होती हैं. इस खनक के पीछे यहां की मिट्टी का योगदान है. जिस मिट्टी से इनके सांचे बनाए जाते हैं वो कहीं और नहीं मिलती. 


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