UP News: कहते हैं बीहड़ों का एक रास्ता राजनीति के गलियारे तक भी पहुंचता है जिस पर बहुत से लोगों ने चलने की कोशिश की. लेकिन सबके सफर उस शिखर पर नहीं पहुंचते हैं. दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने अपनी बंदूक से कानपुर देहात में एक ऐसा सामूहिक नरसंहार किया, जिससे फूलन पूरी दुनिया में चर्चित हो गई और फिर डकैत से सांसद बनी फूलन देवी ने सियासत भी की. जिसके नाम से लोग थर्रा जाते थे आज उसी दस्यु से सांसद बनी फूलन देवी की, 95 साल की मां बदहाली की कगार से गुजर रही है और दाने दाने को मोहताज हो गई है.


जालौन जिले कालपी तहसील के शेखपुर गुढ़ा गांव जहां फूलन देवी ने जन्म लिया था, फूलन आज इस दुनिया में नहीं है. लेकिन उसकी 95 साल की बूढ़ी मां मूला देवी आज बद से बदतर हालत में हैं. एक-एक दाने के लिए आज मूला देवी पिछले दो माह से मोहताज हैं. दरअसल, मूला देवी की बढ़ती उम्र और बुढ़ापे ने उनकी हाथों की लकीरों को समय के साथ धुंधला कर दिया है. जिसके चलते उन्हें सरकारी कोटे से मिलने वाला सरकारी राशन अब नहीं मिल पा रहा है. सरकार का मिलने वाला ये राशन कोटे पर बिना अंगूठे के निशान के नहीं दिया जाता है. अब न तो मूला देवी इस उम्र में कंट्रोल तक जाने के योग्य हैं और न ही वह ने अंगूठे के निशान वाले मशीन में आती हैं, जिसके चलते उन्हें राशन भी नहीं मिल रहा है.


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कैसे कट रही जिंदगी?
दस्यु सुंदरी फूलन देवी की मां आज अपनी छोटी बेटी रामकली के बेटे मोहन निशान के सहारे अपनी जिंदगी के अखरी पल काट रही हैं. दरअसल, फूलन देवी 5 बहने थीं, जिसमें से तीन बहने अब इस दुनिया में नहीं है तो वहीं रामकली भी अब जिंदा नहीं है. लेकिन उनके बेटे मोहन भी उसी गांव में रहते अहिन्नोर आने हिस्से में आने वाले राशन से मूला देवी को कुछ निवाले दे देते हैं. हालांकि मूला देवी के हिस्से में एक यूनिट के हिसाब से कुल 5 किलों राशन ही मिलता था, लेकिन अब ये एक यूनिट राशन भी उनके नसीब ने नहीं है.


वहीं मूला देवी के नाती मोहन का कहना है कि आज की उनकी नानी की हालत बहुत खराब है. उनकी देखभाल वही करते हैं लेकिन अब जो उन्हें राशन मिलता था वो भी बंद कर दिया गया है. उन्होंने कालपी तहसील के एसडीएम को भी अपनी आप बीती बताई है. लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला मोहन का कहना है. निषादों की राजनीति करने वाले कई नेता हमारे यहां आए, उनसे मिले उन्हें आश्वासन भी दिया. लेकिन अपनी सियासी रोटियां सेकते रहे और उनकी नानी एक रोटी के लिए परेशान चल रही हैं.


बता दें कि फूलन देवी ने 1983 में अपना आत्मसमर्पण किया था और ये समर्पण तमाम शर्तों के साथ हुआ था. 1994 में जेल से छूटे के बाद फूलन ने सियासत में कदम रखा और सांसद बनी. महज 38 साल की उम्र में उसकी हत्या कर दी गई. 2022 में चुनाव के दौरान घर-घर फूलन की मूर्तियां बाटी गई, लेकिन ये सब सियासत के खेल थे. आज फूलन देवी की मां को कोई ये पूछने वाला नहीं है कि उसने खाना खाया है या नहीं.