Raebareli Martyr Rajendra Yadav: रायबरेली जिले का एक ऐसा शूरवीर जिसने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना को ना सिर्फ धूल चटाई बल्कि दुश्मनों के छक्के भी छुड़ाए. दुर्गम पहाड़ियों पर अपनी अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ते हुए युद्ध को जीत के मुहाने पर पहुंचा दिया और जब विजय पताका फहरी तो रायबरेली का ये लाल सदा-सदा के लिए भारत माता की गोद में सो गया. हम बात कर रहे हैं डलमऊ तहसील स्थित एक छोटे से गांव मुतवल्ली पुर में जन्मे वीर राजेंद्र कुमार यादव की. 


1984 में सेना में हुए भर्ती
डलमऊ तहसील के मुतवल्ली पुर गांव में सन 1966 में राजेंद्र कुमार ने जन्म लिया था. ग्रामीण अंचलों में ही अपनी माध्यमिक तक की पढ़ाई पूरी करते-करते राजेंद्र कुमार सन 1984 में सेना में भर्ती हो गए. राजेंद्र शुरू से ही देश सेवा का जज्बा अपने दिल में लेकर लगन के साथ सेना में भर्ती होने के लिए प्रयास कर रहे थे. कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात राजेंद्र कुमार की मेहनत और काबिलियत के दम पर जल्द ही उनको नायक बना दिया गया. 
 
जंग के मैदान में हुए शहीद
सेना में भर्ती होने के 3 साल बाद सन 1987 में ही ललिता देवी के साथ राजेंद्र कुमार का विवाह हो गया. राजेंद्र कुमार के दो बेटे अतुल यादव और रजत यादव और एक बेटी अनीता यादव हुए. पूरा परिवार काफी खुश था लेकिन 1999 के कारगिल युद्ध में राजेंद्र कुमार यादव लड़ाई लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए थे. शहादत  की सूचना जैसे ही रायबरेली पहुंची तो परिजनों के साथ-साथ पूरे जिले में शोक की लहर फैल गई. 


देश के लिए दी जान 
एक किसान परिवार में पले बढ़े राजेंद्र कुमार यादव अपने परिवार में सबसे लगनशील और होनहार बच्चों में एक माने जाते थे. यही कारण रहा कि माध्यमिक शिक्षा पूरी करते-करते राजेंद्र कुमार ने अपनी मंजिल हासिल कर ली. राजेंद्र कुमार का पहला और आखिरी सपना सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना था. जिसको चरितार्थ करते हुए एक सपूत की तरह वास्तव में लड़ते-लड़ते भारत माता की गोद में सदा-सदा के लिए सो गया.


आज भी गमगीन है परिवार 
राजेंद्र कुमार यादव का जैसे ही जिक्र आता है अभी भी उनकी पत्नी ललिता देवी और बच्चे फफक-फफक कर रो पड़ते हैं. ललिता देवी को आज भी 1999 का वो पत्र याद है जो लड़ाई के समय का था. जिसमें लिखा था कि लड़ाई समाप्त होने वाली है, मैं जल्दी घर आऊंगा. इस बात को बताते हुए ललिता देवी का कलेजा फट जाता है. राजेंद्र कुमार के सबसे छोटे बेटे रजत यादव को इस बात का हरदम मलाल है कि वो अपने पिता का ठीक से चेहरा भी नहीं देख पाया. रजत 3 साल का था जब उसके पिता शहीद हुए थे.


शहादत पर परिवार को है गर्व 
राजेंद्र कुमार की यादें आज भी उनके परिवार में बसती हैं. सरकार की तरफ से मिले गए धन से गांव से शहर अपने बच्चों को लाकर ललिता देवी किसी तरह परवरिश की. बड़ा बेटा इस समय मर्चेंट नेवी में है, बेटी का उन्होंने बड़ी मशक्कत के साथ ब्याह कर दिया है जबकि छोटा बेटा अभी पढ़ाई पूरी कर रहा है. ललिता देवी और उनके बच्चों को राजेंद्र यादव की शहादत पर गर्व तो है ही लेकिन एक पति व पिता की छत्र छाया ना होने का खालीपन व कमी भी महसूस होती है.


सरकार पूरा करेगी वादा 
ललिता देवी की मानें तो उन्होंने अपने जीवन में कभी भी ये नहीं सोचा था कि उनके पति इतनी जल्दी उनका साथ छोड़ जाएंगे. उनके ना रहने के बाद ललिता देवी अपने को काफी कमजोर समझ रही थी लेकिन हालातों और समय की मांग के चलते उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश का पूरा जिम्मा उठाया. जिसमें सरकार ने भी काफी मदद की. लेकिन, एक बात का मलाल आज भी ललिता देवी को है कि प्रशासन द्वारा उन्हें 5 बीघे भूमि आवंटित करने का वादा किया गया था लेकिन अभी तक ना तो किसी जनप्रतिनिधि ने ही और ना ही प्रशासन ने ही इस ओर नजरें इनायत की हैं. जबकि, ललिता देवी के दोनों बच्चों के बीच महज 10 बिस्वा जमीन ही है जो एक परिवार के पालन पोषण के लिए पर्याप्त नहीं मानी जाती है. ललिता देवी को अभी भी सरकार व प्रशासन से उम्मीद है कि उसको दिए वादे को प्रशासन पूरा करेगा.



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