हिंदूओं के लिए चित्रकूट धार्मिक स्थानों में से एक है. यहां के कण-कण में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की यादें बसी हुई हैं. चित्रकूट धाम मंदाकनी नदी के किनारे बसा हुआ है. एक समय यहां अशोक के काफी पेड़ हुआ करते थे जिसके कारण इस स्थान का नाम चित्रकूट पड़ा. चित्रकूट मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर है इसे संतो की नगरी भी कहा जाता है. चित्रकूट संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ पर्वतीय दृष्यों का अनुपम केंद्र है.

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चित्रकूट का इतिहास


प्राचीन काल में चित्रकूट कौशल साम्राज्य के अंतर्गत आता था. चित्रकूट का  पुरात्तत्विक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है. 6 मई साल 1997 में बांदा जिले से काट कर एक अलग छत्रपति शाहू जी महाराज नगर नाम से जिला बनाया गया.


इस जिलें में कर्वी और मऊ तहसीलें शामिल थीं. 4 सितंबर साल 1998 को इस जिले का नाम बदलकर चित्रकूट रख दिया गया. यह जिला उत्तरी विध्य श्रृंखला में स्थित है. प्रत्येक अमावस्या के दिन यहां लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं.


चित्रकूट में दीवाली, शरद-पूर्णिमा, मकर-संक्रांति और रामनवमी में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं.


भगवान श्री राम से है संबंध


चित्रकूट धाम प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है. यहीं पर भगवान राम माता सीता और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल के वनवास के दौरान 11 साल यहीं रहे थे.


गोस्वामी तुलसीदास ने चित्रकूट का वर्णन करते हुए लिखा है कि जब संसार में अंधेरा छा जाएगा उसके बावजूद भी भगवान राम की कृपा से चित्रकूट को कुछ नहीं होगा. पौराणिक कथाओं के अनुसार सती अनसुइया ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को चित्रकूट में ही जन्म दिया था.


चित्रकूट में पैदा हुए थे तुलसीदास


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसीदास का जन्म चित्रकूट में हुआ था. उनके पिता आत्माराम दुबे एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण थे. जन्म लेने के साथ ही तुलसीदास ने राम नाम का उच्चारण किया था जिसके बाद उनका नाम रामबोल पड़ गया था. तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस, हनुमान चालीसा, गीतावली और तुलसी दोहावली समेत अन्य कई महाकाव्यों की रचना की.  


पर्यटक स्थल



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  • अनसुइया आश्रम

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  • स्फटिक शिला


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