Gyanvapi Hearing In Allahabad HighCourt : उत्तर प्रदेश स्थित ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मंगलवार 6 फरवरी 2024 को सुनवाई हुई.  सुनवाई की शुरुआत मुस्लिम पक्ष की दलीलों से हुई. अब इस मामले की सुनवाई 7 जनवरी 2024 यानी बुधवार को होगी.  मस्जिद कमेटी के वकील फरमान नकवी 2 फरवरी को हुई अपनी बहस को आगे बढ़ाई. मस्जिद कमेटी के वकील फरमान नकवी कोर्ट में कहा कि जिला जज ने जब व्यास परिवार की अर्जी को 17 जनवरी को डीएम को रिसीवर बनाए जाने का आदेश जारी कर निस्तारित कर दिया था फिर उसके बाद इस उसी अर्जी मुकदमे को आगे बढ़ाते हुए तहखाना में पूजा अर्चना शुरू किए जाने का आदेश जारी नहीं किया जा सकता. 


कोर्ट ने उनसे 17 और 31 जनवरी दोनों ही दिनों के आदेश पेश करने को कहा. नकवी ने उसे कोर्ट को दिखाया और दोनों आदेशों को पढ़कर सुनाया है. कोर्ट ने पूछा है कि 1993 में तहखाना बंद होने के समय क्या स्थिति थी. वहां पूजा होती थी या नहीं या वह जगह मस्जिद के हिस्से में आती थी. मस्जिद कमेटी की तरफ से कहा गया है कि 1993 से पहले तहखाना में किसी तरह की कोई पूजा नहीं होती थी. यह बात 1968 के एक मुकदमे में पहले भी साफ हो चुकी है.


सूट सिविल जज की कोर्ट में पेश किया गया- नकवी
मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने कहा कि यह सूट सिविल जज की कोर्ट में पेश किया गया था. जिला जज ने इसे अपने यहां ट्रांसफर कर ऑर्डर पास किया. नकवी अभी कोर्ट में व्यास परिवार की उस अर्जी को पढ़ रहे हैं, जिस पर कोर्ट ने आदेश जारी किया था.


मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने कहा कि वाराणसी के डीएम ने 31 जनवरी के जिला जज के आदेश को लेकर बेहद जल्दबाजी में काम किया. उन्होंने सिर्फ 7 से 8 घंटे में तहखाना खुलवाया. वहां साफ सफाई कराई और पूजा भी शुरू करा दी. वह यह नहीं बता सकेंगे कि इतनी जल्दी उन्हें आदेश की कॉपी कैसे प्राप्त हुई. नकवी ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस बारे में वाराणसी कोर्ट और डीएम को मिले आदेश के सभी रिकॉर्ड समन कर लिए जाएं तो सच्चाई सामने आ जाएगी. यह सब कुछ कानून के दायरे में नहीं हुआ है.


नकवी ने दलील दी कि जिस तहखाना को लेकर विवाद है, वह पहले मस्जिद का ही हिस्सा था. बाद में वहां बैरिकेडिंग कर दी गई थी. यह बात हमने अपने पहले की आपत्तियों में भी कई बार कहा है. 1993 से अब तक हिंदू पक्ष का भी यहां कब्जा नहीं रहा.


मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने नकवी से पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट से आए असलम भूरे केस के संपत्तियों की रक्षा करने के आदेश के मामले से यह मामला अलग तो नहीं जा रहा है.  


नकवी ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के असलम भूरे केस के आदेश का उल्लंघन है. डीएम यह बताएं कि उन्हें आधिकारिक तौर पर आदेश की जानकारी कैसे हुई. उन्हें अदालत के आदेश की प्रमाणित कॉपी कब प्राप्त हुई और कब उन्होंने तहखाना को खोलकर उसमें साफ सफाई करने का आदेश दिया और कितने समय में पूजा की तैयारी कराई गई.


नकवी ने कहा कि अंतिम तौर पर मुकदमे का निपटारा होने तक पूजा अर्चना का आदेश देने का फैसला गलत था. जिला जज का फैसला सही नहीं है.


इस पर जस्टिस अग्रवाल ने कहा है कि आप यह बताइए कि तहखाना कब आपके कब्जे में था या वह आपकी संपत्ति है. अगर आप यह साबित कर दीजिए कि तहखाना पर आपका कब्जा था तो मैं आपकी यह अपील मंजूर कर लूंगा. पूजा शुरू कराए जाने का फैसला अंतिम नहीं है, यह एक अंतरिम व्यवस्था है.


नकवी का कहना है कि मैंने कोर्ट के सामने अपनी आपत्तियां रख दी हैं. वहां बैरिकेडिंग सिर्फ इसलिए की गई थी, ताकि कानून व्यवस्था कायम रहे और उसे कोई खतरा पैदा ना हो. इसके बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने दलीलें पेश की.


हिन्दू पक्ष ने क्या कहा?
विष्णु शंकर जैन ने कहा कि कोर्ट में बहस के दौरान तमाम ऐसी बातें कही जा रही हैं, जो अपील में है ही नहीं. 31 जनवरी के पूजा अर्चना शुरू किए जाने के आदेश का आधार 17 जनवरी को डीएम को रिसीवर के तौर पर नियुक्त किए जाने का फैसला है, जिसे मुस्लिम पक्ष ने चुनौती ही नहीं दी. इस पर जस्टिस अग्रवाल ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आप सिर्फ यह बताइए कि 17 जनवरी के आदेश के साथ ही जब अर्जी निस्तारित हो गई तो 31 जनवरी का फैसला कैसे आ गया. इस पर जैन ने कहा कि 17 जनवरी के आदेश को 30 जनवरी तक किसी भी बिंदु पर कहीं भी चुनौती नहीं दी गई.


जस्टिस अग्रवाल ने पूछा क्या 17 जनवरी के पुराने आदेश को ही 31 जनवरी को संशोधित कर दिया गया. इस पर जैन ने बताया कि दोनों पक्षों को सुनने के बाद दूसरा आदेश जारी किया गया. जैन का कहना है कि जिला जज ने पूजा अर्चना का आदेश काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को देकर अंतरिम राहत दी है. दोनों अर्जियों में अलग-अलग राहत मिली हैं.


कोर्ट ने जैन से पूछा क्या मुकदमे का अंतिम निपटारा होने के बाद भी अलग से कोई आदेश जारी किया जा सकता है. जैन ने कहा कि सीपीसी की धारा 151 के तहत कोर्ट को इसकी शक्ति है. जिला जज की कोर्ट ने अपने विवेक का प्रयोग कर आदेश जारी किया है. जैन ने कहा मेरे वकील के पास तहखाने का वास्तविक कब्जा था, क्योंकि चाबियां उसी के पास रखी हुई थी.


कोर्ट ने पूछा कि अगर ऐसा है तो फिर आपने मुकदमा दाखिल कर पूजा की अनुमति मांगने में 31 साल की देरी क्यों लगाई ? अदालत ने विष्णु शंकर जैन से पूछा कि ज्ञानवापी से जुड़े तमाम मुकदमे अदालत में लंबित है. कुल कितने मुकदमे अभी चल रहे हैं .इस पर जैन ने बताया कि कुल आठ मुकदमे विचाराधीन है. जैन ने यह भी कहा कि तहखाने में काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को अधिकार मिलने पर हमारे मुवक्किल भी पूजा कर पाएंगे.


आदेश पारित करने का अधिकार था- जैन
जैन ने कहा जिला जज के यहां मुकदमा ट्रांसफर करने का अनुरोध हमने ही किया था. मुकदमे के ट्रायल के दौरान अदालत पक्षकारों को राहत देती हैं. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है. जिला जज को धारा 151 के तहत आदेश पारित करने का अधिकार था, इसीलिए उन्होंने किया.


इससे पहले जैन ने कोर्ट में कहा कि व्यास तहखाने पर मुस्लिम पक्ष का कब्जा नहीं था. इस पर कोर्ट ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के असलम भूरे केस का हवाला देकर सरकार पर भरोसा रखने की बात कह रहे हैं. इस पर जैन ने कहा कि भूरे का केस सिविल मुकदमें पर रोक नहीं लगाता. इस तरह के तमाम सिविल मुकदमे सुप्रीम कोर्ट तक गए हैं.


जैन ने यह भी कहा था कि यह कहना गलत है कि जिला जज ने अपने रिटायरमेंट के दिन फैसला सुनाने की वजह से आदेश पारित करने में जल्दबाजी की. उन्होंने कोर्ट को बताया कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के तमाम ऐसे जजेज की लिस्ट है, जिन्होंने अपने रिटायरमेंट के दिन अहम मामलों पर फैसले सुनाए है.