लखनऊ: मुंबई की 5 महीने की तीरा और मेरठ की डेढ़ साल की ईशानी की ही तरह गोरखपुर की साढ़े छह साल की मासूम गरिमा बचपन से ही लाइलाज बीमारी स्‍पाइनल मस्‍कुलर एट्रोफी (एसएमए) से ग्रसित है. वो अपने पैरों पर चलने का सपना देखती है, लेकिन चल नहीं सकती है. गरिमा उर्फ परी के इलाज के लिए 22 करोड़ रुपये के इंजेक्‍शन की दरकार है. लेकिन तीरा के जैसी किस्‍मत परी की नहीं है क्‍योंकि तीरा कामत के आईटी कंपनी में कार्यरत पिता मिहिर और फ्रीलांस इलेस्‍ट्रेटर मां प्रियंका की तरह उसके निजी चिकित्‍सक की कार चलाने वाले पिता की इतनी हैसियत नहीं है कि वो इतने रुपये जुटा पाएं या फिर सोशल मीडिया पर लोगों से मदद की गुहार लगा सकें.


बचपन से ही बिमारी से है ग्रसित


गोरखपुर के शाहपुर आवास विकास कॉलोनी के रहने वाले मुक्तिनाथ गुप्‍ता निजी चिकित्‍सक की कार चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं. साल 2011 में मुक्तिनाथ की शादी कुशीनगर की रहने वाली ममता गुप्‍ता के साथ हुई, तो परिवार में खुशियां भी आईं. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले 9 साल के अन‍िकेत और 6 साल की गरिमा उर्फ परी का भरा-पूरा परिवार है. 6 साल पहले 3 अक्‍टूबर 2014 को परी का जन्‍म हुआ, तो मुक्तिनाथ और ममता ने उसे लेकर ढेर सारे सपने भी संजोए. लेकिन, 5 महीने बाद जब उसके शरीर के निचले हिस्‍से में कोई हलचल नहीं दिखी, तो पति-पत्‍नी को चिंता सताने लगी.


दिल्ली के एम्स में चला बिमारी का पता


परी के पिता मुक्तिनाथ गुप्‍ता बताते हैं कि वे बच्‍ची को इलाज के लिए डॉक्‍टर के पास लेकर गए लेकिन, डॉक्टर्स ने कैल्शियम और विटामिन की गोली देने के बाद सब कुछ ठीक होने की बात कही. जब परी बड़ी होने लगी, तो करवट नहीं ले सकती थी. उसका कमर से नीचे का हिस्‍सा काम नहीं करता है, न ही वह अपने पैरों पर चल सकती और न ही उठ-बैठ सकती. ऐसे में वो पूरी तरह से माता-पिता पर निर्भर हो गई. कई जांच और चेकअप कराने के बाद भी बीमारी का गोरखपुर के चिकित्‍सक पता नहीं कर पाए. इसके बाद वे उसे लेकर एम्‍स दिल्‍ली गए. वहां पर डॉक्टर्स ने बताया कि उसे स्‍पाइनल मस्‍कुलर एट्रोफी (एसएमए) जैसी गंभीर बीमारी है.


पीएम मोदी और सीएम योगी से मदद की गुहार


अब परिजन पीएम मोदी और सीएम योगी से मदद की गुहार लगाते हुए कहते हैं कि उनकी हैसियत नहीं है कि बेटी परी का इलाज करा सकें. सरकार उनकी मदद करे. जिससे उनकी बेटी अपने पैरों पर चल सके. ये बीमारी 10 लाख लोगों में से किसी एक को होती है. इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा है. दुनिया के कुछ अस्‍पतालों में ही इसका इलाज होता है. इसमें जीन थेरेपी होती है. बीमारी के इलाज के लिए 16 करोड़ रुपये के इंजेक्‍शन की दरकार है. इस पर भारत सरकार 6 करोड़ रुपये टैक्‍स लेती है. यानी कुल 22 करोड़ रुपये. प्राइवेट कार चालक मुक्तिनाथ के पास इतने रुपये नहीं हैं कि वे परी का इलाज करा सकें. स्विट्जरलैंड की कंपनी नोबार्टिस के बनाए जाने वाला जोल्‍जनसमा इंजेक्‍शन हाल ही में चर्चा में आया है. इसकी कीमत 16 करोड़ रुपये है.


एसएमए टाइप-1 से है ग्रस्त


परी की मां ममता गुप्‍ता बताती हैं कि परी का जन्‍म 3 अक्‍टूबर 2014 को हुआ. जन्‍म के पांच महीने बाद ही लगा कि उसे कोई दिक्‍कत है. वो करवट नहीं ले सकती है. बिस्‍तर पर पलट भी नहीं रही थी. उस समय बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इलाज चला, लेकिन डॉक्‍टर बीमारी पकड़ नहीं सके. परी की उम्र बढ़ने के साथ ही बीमारी के लक्षण सामने आने लगे. वो पूरी तरह से निढाल रहने लगी. साल 2017 में वो दो साल की हुई, तब वे उसे लेकर एम्‍स दिल्‍ली गए. वहां पर डॉक्‍टरों ने उसके पैर की मांसपेशियों को काटकर जांच के लिए भेजा.


ममता बताती हैं कि उसके बाद जांच रिपोर्ट में पता चला कि उसे रेयर बीमारी ‘एसएमए टाइप-1’ है. मासूम गरिमा उर्फ परी एलकेजी में पढ़ती है. न्‍यूरो सर्जन डॉ. अजय कुमार सिंह अपने ड्राइवर मुक्तिनाथ की बेटी गरिमा की पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं. उनकी मदद से ही वो सेंट्रल एकेडमी में प्‍ले-वे में पढ़ रही है. वे पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ से मदद की गुहार लगाते हुए कहती हैं कि वे उनकी बेटी का इलाज कराने में मदद करें. जिससे उनकी बेटी चलने-फिरने और अपना काम करने के साथ भविष्‍य बना सकें.


डॉ. सपना सिंह कर रही मुफ्त इलाज


बीते पांच साल से परी का निःशुल्‍क इलाज कर रहीं पीडियाट्रीशियन और बाल रो‍ग विशेषज्ञ डॉ. सपना सिंह कहती हैं कि वे पिछले पांच साल से उसका इलाज कर रही हैं. उसे प्रोग्रेसिव स्‍पाइनल मस्‍कुलर एट्रोफी की गंभीर बीमारी है. इससे मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है. उसमें ताकत नहीं रह जाती है. कमर के नीचे का हिस्‍सा काम नहीं करता है. उसे बार-बार निमोनिया हो जाता है.


एसएमए मांसपेशियों को खराब कर देने वाली एक रेयर बीमारी है. ये बीमारी जीन में होती है. ये जीन में तंत्रिका तंत्र के सुचारु रूप से काम करने के लिए जरूरी प्रोटीन के निर्माण को बाधित कर देता है. जिसमें तंत्रिका तंत्र नष्‍ट होने लगता है. इसमें पीड़ित की मांसपेशियां कमजोर होने लगती है. शरीर में पानी की कमी होने लगती है. मरीज को सांस लेने में दिक्‍कत होती है. मरीज इतने अक्षम हो जाते हैं कि उन्‍हें सांस लेने के लिए भी एक समय बाद वेंटिलेटर की जरूरत पड़ने लगती है. इस बीमारी से पीड़ित मरीज को लंबे समय तक वेंटिलेटर पर नहीं रखा जा सकता है.


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