Former MLC Brijesh Singh News: पूर्वांचल के माफिया डॉन व पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह के खिलाफ 36 साल पहले हुए नरसंहार मामले में दाखिल अर्जी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में फाइनल सुनवाई पूरी हुई. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है और दीपावली की छुट्टियों के बाद अदालत अपना फैसला सुनाएगी. सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हीरावती नाम की महिला ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी.


बता दें कि हीरावती के पति, दो देवर और चार मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. इस हत्या का आरोप माफिया बृजेश सिंह और उसके साथियों पर लगा था. पीड़िता ने अपनी अपील में जिला कोर्ट वाराणसी के फैसले को चुनौती दी थी और जिला कोर्ट ने अपने 2018 में दिए गए फैसले में सभी 13 आरोपियों को बरी कर दिया था. कोर्ट ने इन्हें गवाहों के बयान में भिन्नता होने के आधार पर बरी कर दिया था. 


वहीं हीरावती द्वारा की गई अपील में जघन्य हत्या के मामले में बरी हो चुके माफिया बृजेश सिंह को सजा दिए जाने की मांग की गई है. बता दें कि बृजेश सिंह पर वाराणसी जिले के बलुआ पुलिस स्टेशन में मुकदमा दर्ज है, जिसमें आईपीसी की धारा 148, 149, 302, 307, 120बी एवं आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत एफआईआर दर्ज है.


36 साल पहले हुए इस हत्याकांड में पीड़िता की बेटी शारदा भी घायल हुई थी. इस अपील में कहा गया है कि जिला कोर्ट ने उसके बयान पर गौर नहीं किया. ट्रायल कोर्ट में उसका भी बयान दर्ज किया गया था. दलील दी गई है कि घटना में घायल पीड़िता चश्मदीद गवाह थी और ट्रायल कोर्ट ने उसके बयान पर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने कहा कि घटना के समय अंधेरा था. पुलिस की जांच में लालटेन और टॉर्च सहित घटना के दौरान रोशनी के लिए इस्तेमाल हुई सामग्रियों की फर्द बनाई गई थी. खुद विवेचक ने बयान दिया था कि उसने आरोपी बृजेश सिंह को घटना के समय पकड़ा था. इसके बावजूद कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया. इसलिए ट्रायल कोर्ट का फैसला सही नहीं है


इस हत्याकांड में परिवार के सात लोगों की हत्या मामले में पुलिस किसी को भी सजा नहीं दिला पाई, जबकि हत्याकांड का चश्मदीद गवाह मौजूद था. विवेचक द्वारा दर्ज बयान ट्रायल कोर्ट में पढ़ा ही नहीं गया. हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में आरोपी बृजेश सिंह ने खुद को बेगुनाह बताया है. वाराणसी के सिकरौरा कांड में 7 लोगों की हत्या के सभी 13 अभियुक्तों को बरी करने के जिला कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की कई तारीखों में सुनवाई हुई. पीड़ित पक्ष की दलील थी कि ट्रायल कोर्ट ने घटना में घायल व पीड़ित के बयान को नजरअंदाज किया गया है. अगर घायल के बयान पर विचार किया गया होता तो अदालत आरोपियों को बरी नहीं करती.


बता दें कि चंदौली जिले में 36 साल पहले 1987 में सामूहिक नरसंहार हुआ था. माफिया बृजेश सिंह को 7 लोगों की हत्या के मामले में आरोपी बनाया गया था. ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट बृजेश सिंह को 2018 में बरी कर चुका है. 


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