कोरोना महामारी ने पूरे देश को प्रभावित किया है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भी इससे अछूते नहीं हैं. एबीपी गंगा के मंच पर 'कोरोना काल का कर्मयोग' e-कॉन्क्लेव में राजनेताओं से लेकर स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी बात रखी. e-कॉन्क्लेव में डॉक्टरों ने बताया कि  कोरोना के निपटने के लिए किस तरह के प्रयास किए गए हैं. 


डॉक्टरों ने रखी अपनी बात
e-कॉन्क्लेव में एपेक्स अस्पताल वाराणसी के चेयरमैन डॉ एसके सिंह ने कहा कि ये काल भयंकर तूफान जैसा था जो डरावना और दुखदायी था. उन्होंने कहा कि इस चुनौती को हमने स्वीकार किया और 2020 के कोराना काल से बहुत कुछ अनुभव लिए. पिछले अनुभवों को लेकर कोरोना 2.0 में जल्दी से तैयार होकर सेवाएं दीं लेकिन ये तूफान इतना बड़ा था कि सारी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह गईं.  


e-कॉन्क्लेव में जमुना सेवा सदन एवं रिसर्च सेंटर के डॉक्टर अश्विनी टंडन ने कहा कि कोरोना काल में ऐसा भी वक्त देखा जब लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी. हमने मरीजों को एडमिट कर इलाज किया जो खुशी की बात है. 


e-कॉन्क्लेव में जगत फार्मा बरेली के डॉक्टर मंदीप बासु ने कहा कि कुछ लोगों ने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद आंखों की समस्या हुई. डॉक्टर ने कहा कि जो लोग अभी कोरोना का इलाज करवा रहे हैं उनको अपनी आंखों का भी खास ध्यान देना होगा. लोग एटी बयोटिक, स्टेरॉयड का इस्तेमाल करने से बचें. या फिर डॉक्टर की सलाह जरूर लें.  


आरके नेत्रालय वाराणसी के डॉक्टर आरके ओझा ने कहा कि मुझे लगभग प्रैक्टिस करते हुए 20 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है लेकिन मैंने इतना विकट समय नहीं देखा है. मुरादाबाद के डॉक्टर मोहम्मद शोएब ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पताल में बेड के लिए लोगों ने दिल्ली से भी फोन किए.


e-कॉन्क्लेव में डावर फुटवियर इंडस्ट्री के पूरन डाबर ने कहा कि कोरोना विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी है. औद्योगिक क्षेतेर भी इस त्रासदी से गुजर रहा है. इस त्रासदी के लिए किसी सरकार या व्यवस्था को दोष देना ठीक नहीं है. महामारी के दौर में सरकार से अलग लोगों को खुद भी कुछ करना चाहिए. लोगों के लिए अपने स्तर पर काम किए हैं. 


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