Bundelkhand News: बुंदेलखंड और चंबल की घाटी का जब-जब जिक्र होता है तो यहां सालों तक रहे डाकुओं के आतंक को भला कौन भूल सकता है. एक वक्त था, जब यहां से गुजरते हुए लोगों के कलेजे कांपते थे कि न जाने कहां से कोई डाकू आ जाए और उसके साथ कोई अनहोनी हो जाएगा. अब भले ही यहां डाकुओं का अंत हो चुका है, लेकिन  यहां के झांसी में डाकुओं को लेकर एक अनोखी परंपरा चल उठी है. 


बुंदेलखंड के झांसी जिले में स्थानीय लोग डाकुओं की परंपरा को आज भी जिंदा रखे हुए हैं, दरअसल ये असली डाकू नहीं होते बल्कि उनकी एक्टिंग करते हुए यहां से गुजरने वाले लोगों से चंदा इकट्ठा करते हैं. यहां के लोग इसे स्वांग या नाटक कहते हैं. इसमें युवा डाकुओं की तरह कपड़े पहनकर हाथ में नकली बंदूक और हाथियार लेकर हाईवे पर खड़े हो जाते हैं और यहां से गुजरने वाले लोगों से पैसे लेते हैं. 


डकैत बनकर लोगों से लेते हैं चंदा
ये नकली डकैत, डाकुओं की तरह काले कपड़े पहनते हैं और मुंह पर काला कपड़ा बांधते हैं ताकि इन्हें कोई पहचान न सके, इसके बार नकली हथियारों के बल पर राहगीरों को रोक लेते हैं. हालांकि एक पल को यहां से गुजरने वाले अंजान लोग डर सकते हैं, लेकिन आसपास के लोगों को इस परंपरा के बारे में पता है. इसलिए ऐसे कम ही होता है. 


दिल्ली से पहले शुरू होता है स्वांग
बुंदलेखंड में ये परंपरा दिवाली से कुछ दिन पहले से शुरू हो जाती है.  चंबल में डाकुओं के खात्मे के बाद पिछले कई सालों से ये अनोखी परंपरा चली आ रही है. जो लोग इसके बारे में जानते हैं वो चुपचाप मुस्कुराते हुए जो भी चंदा देना चाहें, देकर चले जाते हैं और जो लोग नहीं जानते उन्हें युवा शांति से समझाते हैं और उनकी जो इच्छा हो वो चंदा देने के लिए कह देते हैं. इस तरह से बुंदेलखंड में डाकुओं की दहशत वाली अनूठी परपंरा चली आ रही है. 


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