लखनऊः उत्तर प्रदेश में कोरोना के घटते मामलों से राजधानी में कोविड मरीजों की अस्पताल में भर्ती का संकट भी दूर हुआ है. अब कोविड रोगियों को अस्पताल में बेड के लिए न तो भटकने की ज़रूरत है और न ही किसी सिफारिश की. लेकिन इस राहत में सिर्फ कोरोना के घटते मामले ही नहीं बल्कि सरकार के प्रयास भी बड़ी वजह हैं. राजधानी में कई नए कोविड हॉस्पिटल शुरू करने के साथ ही बेड बढ़ाने का काम भी जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने तेजी से किया है.


केजीएमयू में 200 से ज्यादा बेड खाली


कुछ दिन पहले तक सबसे बड़े कोविड हॉस्पिटल KGMU में मरीज भर्ती करने के लिए मंत्री से लेकर सांसद, विधायक, आला अधिकारी फोन कर सिफारिश लगाते थे. लेकिन अब इसी KGMU में करीब 225 बेड खाली हैं. इसके अलावा बलरामपुर जो कि डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल है, यहां पर कोरोना संक्रमितों के लिए 300 बेड की व्यवस्था है. कुछ दिन पहले तक यहां सारे बेड कोविड मरीजों से भरे थे. लेकिन आज यहां करीब 125 बेड खाली हैं.


विवेकानंद पालीक्लिनिक में भी अब कोविड मरीजों के लिए बेड की कमी नहीं है. अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए आरक्षित 93 बेड में 35 खाली हैं. कोविड के नोडल डॉ. विशाल सिंह ने बताया कि पहले क्रिटिकल केअर बेड के लिए 3 से 4 दिन की वेटिंग थी. लेकिन अब संकट नहीं है.


अन्य अस्पतालों में भी खाली बेड


वहीं डॉ. राम मनोहर लोहिया के डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल में मरीजों के लिए 200 बेड हैं. कोरोना के पीक के समय यहां आये दिन मरीजों को बेड के लिए मना किया जा रहा था. लेकिन अब यहां 89 बेड खाली पड़े हुए हैं. इसमे क्रिटिकल केयर के भी बेड हैं. लखनऊ के हाई क्लास निजी अस्पताल मेदांता में 10 बेड खाली हैं.


खत्म हो रही है बेड की मारामारी


इसी तरह अपोलो के कोविड हॉस्पिटल में भी बेड की मारामारी खत्म हो चुकी है. यहां कोविड मरीजों के लिए 65 बेड हैं. फिलहाल करीब 10 फीसदी बेड खाली हैं. कोरोना के घटते मामलों की वजह से बेड को लेकर मारामारी किस कदर कम हुई है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि इंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेन्टर में पहले के मुकाबले कई गुना कम कॉल आते हैं. इसी इंटीग्रेटेड कंट्रोल सेंटर से मरीजों को बेड का आवंटन होता है.


ICCC में ही एक हॉल से अस्पतालों के बेड की मॉनिटरिंग होती है. बेड आवंटित किए जाते हैं. यहां एक स्क्रीन है जिस पर अस्पतालों के नाम और उनमें बेड की स्थिति दिखती है. कोरोना के पीक पर ये हालात थे कि एक बेड की मांग आने पर सभी के हाथ पांव फूल जाते थे. वजह ये की सभी बेड भरे नज़र आते. लोगों को घंटों नहीं बल्कि 2-3 दिन तक इंतज़ार करना पड़ता था. कई मरीजों की तो बीएड मिलने से पहले ही मौत हो जाती. वहीं आज हालात में काफी सुधार हुआ है. आज यहां जब किसी को बेड के लिए कॉल आता है तो 3 से 4 अस्पताल तक का विकल्प मिलता है. वहीं डीएम के अनुसार इस समय पर्याप्त ऑक्सीजन बैक अप है.


 


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