नई दिल्ली: कृष्ण जन्मभूमि पर दावे की याचिका मथुरा सिविल कोर्ट ने स्वीकार नहीं की है. कोर्ट ने कहा कि याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करने के पर्याप्त आधार नहीं हैं. याचिका में कहा गया था कि 1968 में अवैध समझौते के तहत भगवान कृष्ण का असली जन्मस्थल शाही मस्ज़िद को दे दिया गया.


कोर्ट ने कहा कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत सभी धर्मस्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली रखी जानी है. इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामले को अपवाद रखा गया था.


वादी पक्ष की आरे से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीशंकर जैन और अधिवक्ता विष्‍णु शंकर जैन ने बताया कि उन्होंने बाहरी व्यक्तियों द्वारा यहां इस मसले पर याचिका दाखिल किए जाने से संबंधित सवाल पर अदालत को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 16 एवं 20 का हवाला दिया ओर कहा कि यह हर भारतीय नागरिक का अधिकार है कि वह कहीं भी किसी भी जनपद में अपनी फरियाद कर सकता है.


उन्होंने बताया कि याचिका की सुनवाई के लिए अदालत में राम मंदिर से संबंधित मामले में न्यायालय के फैसले के पैरा 116 का हवाला दिया और कहा कि मंदिर निर्माण की संकल्पना अमिट ओर अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. महामना मदन मोहन मालवीय आदि द्वारा ली गई यह संकल्पना मंदिर निर्माण के पश्चात भी कायम है.


उन्होंने बुधवार की सुनवाई में श्री कृष्ण जन्मस्थान और कटरा केशवदेव परिसर में भगवान कृष्ण का भव्य मंदिर बनाए जाने से संबंधित इतिहास का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए कहा कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को शाही ईदगाह प्रबंधन समिति से किसी भी प्रकार का कोई हक ही नहीं था. इसलिए उसके द्वारा किया गया कोई भी समझौता अवैध है. जिसके साथ शाही ईदगाह निर्माण के लिए कब्जाई गई भूमि पर उसका कब्जा अनधिकृत है.


उन्होंने कृष्ण सखी के रूप में याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री की मांग का समर्थन करते हुए संपूर्ण भूमि का कब्जा श्रीकृष्ण विराजमान को सौंपने का अनुरोध किया है.


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