UP Election 2022: आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी एक बार उसी रणनीति पर काम कर रही है जिस रणनीति ने उसे 2014, 2017 में यूपी जैसे बड़े राज्य में भारी जीत दिलाई. वहीं अगर बीजेपी के मुकाबले विपक्षी दलों की बात करें तो विपक्ष भी इस चुनाव में एक अलग रणनीति के साथ उतर रहा है. आइए जानते हैं बीजेपी ने कैसे उत्तर प्रदेश में 2014 और 2017 में भारी संख्या में वोट हासिल किए थे. 

बीजेपी ने झोंकी ताकतअगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में जुटी बीजेपी ने यूपी में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन से चार बार यूपी का दौरा कर रहे हैं. हजारों करोड़ों की सौगात दे रहे हैं, फिर चाहे कुशीनगर एयरपोर्ट हो पूर्वांचल एक्सप्रेसवे हो, जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट हो, या आने वाले दिनों में गोरखपुर का खाद कारखाना हो, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर हो, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे हो. ये ऐसे प्रोजेक्ट है जिनका आने वाले कुछ दिनों में शिलान्यास और लोकार्पण होना है. एक तरफ तो प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक हर दिन अलग-अलग जिलों में जाकर तमाम योजनाओं की सौगात दे रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने सभी मोर्चों को भी चुनावी अभियान में उतार दिया है. चाहे महिला मोर्चा हो जो लगातार प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कमल शक्ति संवाद कार्यक्रम के जरिए महिलाओं को बीजेपी से जोड़ रही है. वहीं महिला मोर्चा लगातार महिलाओं को पार्टी का सदस्य बना भी रही है. 

10 लाख युवाओं को पार्टी से जोड़ने का है लक्ष्यइसके अलावा अगर युवा मोर्चा की बात करें तो युवा मोर्चा भी प्रदेश के अलग-अलग जिलों में युवोत्थान कार्यक्रम कर रहा है. वहीं 10 लाख युवाओं को पार्टी के साथ जोड़ने का लक्ष्य भी युवा मोर्चा को मिला हुआ है. वहीं भले ही सरकार ने तीन कृषि कानून वापस ले लिए हो लेकिन पार्टी का किसान मोर्चा लगातार अलग-अलग जिलों में ट्रैक्टर रैली निकालकर किसानों को यह बताने में जुटा है कि उनकी सरकार ने किस तरीके से किसानों की आय को दोगुना करने का काम किया है. वही ओबीसी मोर्चा लगातार अलग-अलग जातियों का सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलन कर रहा है. अनुसूचित मोर्चा भी अपनी जाति के लोगों को बीजेपी से जोड़ने में जुटा है. 403 विधानसभाओं में बीजेपी प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन पहले ही कर चुकी है.

पिछले चुनाव में ये थी रणनीतिबीजेपी ने अपनी पुरानी रणनीति अपनाना शुरू कर दिया है. पार्टी हर दिन प्रेस कांफ्रेंस करके विरोधी दलों पर निशाना साधने की. 2014 के लोकसभा चुनाव 2017 के विधानसभा चुनाव या फिर 2019 के लोकसभा चुनाव रहे हो बीजेपी ने इस रणनीति को हमेशा अपनाया है और 2022 के चुनाव से पहले भी अब पार्टी इसी रणनीति को फिर से अपना रही है . प्रदेश कार्यालय पर हर दिन सुबह सुबह या तो सरकार के मंत्री या सांसद, या फिर पार्टी के बड़े पदाधिकारी मीडिया को ब्रीफ कर विरोधियों पर निशाना साधते हैं.

अखिलेश ने बढ़ाया कुनबावहीं अगर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की बात करें तो अखिलेश यादव ने अपने कुनबे को गठबंधन के सहारे खूब मजबूत खूब किया है. लगभग 12 दल अखिलेश यादव के साथ उनके गठबंधन में हैं, लेकिन अगर सियासी गतिविधियों की बात करें तो अखिलेश यादव खुद जो विजय रथ निकाल रहे हैं वह तक कुछ जिलों में ही पहुंचा है, उनके सहयोगी जनवादी सोशलिस्ट पार्टी ने लखनऊ में अभी तक केवल एक बड़ी रैली की है. उनके एक और सहयोगी महान दल के केशव देव मौर्य ने फिलहाल दो या तीन जिलों में ही बड़ी रैलियां की हैं. जबकि सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर अब तक केवल दो जिलों में ही अखिलेश यादव के साथ संयुक्त रैली कर पाए हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने किसान पटेल यात्रा अलग-अलग जिलों में निकाली हालांकि वह भी समाप्त हो चुकी है.

विपक्ष भी दिखा रहा दामपिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राजपाल कश्यप ने पिछड़ों को साथ लाने के लिए कई जिलों में सम्मेलन किया लेकिन फिलहाल अब वह सम्मेलन समाप्त हो चुके हैं. जबकि अगर कांग्रेस की बात करें तो प्रियंका गांधी वाड्रा ने अब तक कुछ जिलों में बड़ी रैलियां की हैं. जबकि पार्टी ने जो प्रतिज्ञा यात्रा निकाली थी वह यात्रा भी समाप्त हो चुकी है. हालांकि पार्टी ने जो अभियान शुरू किया था उसमें वह तेजी नहीं दिख रही है. जाहिर सी बात है इन चुनाव में हर सियासी दल की कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जाए और इसके लिए सबसे जरूरी है कि कौन जनता के बीच अपनी पैठ बना पाता है और इसीलिए जनसभाएं रैलियां प्रचार लोकतंत्र में काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं.

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